Wednesday, April 7, 2010

खल वन्दना

खल ...

अर्थात् दुष्ट ...

दुष्टता के मूल में व्यक्ति की हीन भावना ही होती है। हीन भावना से ग्रसित व्यक्ति जानता है कि उसमें बहुत सारी कमियाँ हैं और इसी कारण से वह भीतर ही भीतर क्षुब्ध रहता है। अपनी क्षुब्धता से प्रेरित हो वह अपनी कमियों को छिपाने के लिये विवश हो अन्य लोगों को यह दर्शाता है कि वह महान है। उसकी यह झूठी महानता उसमें अहंकार उत्पन्न करती है। और अहंकार से उत्पन्न होती है दुष्टता। दुष्ट व्यक्ति का कार्य होता है दूसरों को दुःख पहुँचाना। इसके लिये वह सदैव दूसरों को उकसाने, जलाने, भड़काने और कुण्ठाग्रस्त करने का प्रयास करते रहता है।

किन्तु हमारी संस्कृति में खल कि भी वन्दना करने की परम्परा रही है इसीलिये "रामचरितमानस" की रचना करते समय गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी खल-वन्दना की है। दुष्टों की वन्दना करते हुए वे कहते हैं किः

अब मैं सच्चे भाव से दुष्टों की वन्दना करता हूँ जो बिना किसी प्रयोजन के दायें-बायें होते रहते हैं। दूसरों की हानि करना ही इनके लिये लाभ होता है तथा दूसरों के उजड़ने में इन्हें हर्ष होता है और दूसरों के बसने में विषाद। ये हरि (विष्णु) और हर (शिव) के यश के लिये राहु के समान हैं (अर्थात् जहाँ कही भी भगवान विष्णु या शिव के यश का वर्ण होता है वहाँ बाधा पहुँचाने वे पहुँच जाते हैं)। दूसरों की बुराई करने में ये सहस्त्रबाहु के समान हैं। दूसरों के दोषों को ये हजार आँखों से देखते हैं। दूसरों के हितरूपी घी को खराब करने के लिये इनका मन मक्खी के समान है (जैसे मक्खी घी में पड़कर घी को बर्बाद कर देती है और स्वयं भी मर जाती है वैसे ही ये दूसरों के हित को बर्बाद कर देते हैं भले ही इसके लिये उन्हें स्वयं ही क्यों न बर्बाद होना पड़े)। ये तेज (दूसरों को जलाने वाले ताप) में अग्नि और क्रोध में यमराज के समान हैं और पाप और अवगुणरूपी धन में कुबेर के समान धनी हैं। इनकी बढ़ती सभी के हित का नाश करने के समान केतु (पुच्छल तारा) के समान है। ये कुम्भकर्ण के समान सोये रहें, इसी में सभी की भलाई है। जिस प्रकार से ओला खेती का नाश करके खुद भी गल जाता है उसी प्रकार से ये दूसरों का काम बिगाड़ने के लिये खुद का नाश कर देते हैं। ये दूसरों के दोषों का बड़े रोष के साथ हजार मुखों से वर्णन करते हैं इसलिये मैं दुष्टों को (हजार मुख वाले) शेष जी के समान समझकर उनकी वन्दना करता हूँ। ये दस हजार कानों से दूसरों की निन्दा सुनते हैं इसलिये मैं इन्हें राजा पृथु (जिन्होंने भगवान का यश सुनने के लिये दस हजार कान पाने का वरदान माँगा था) समझकर उन्हें प्रणाम करता हूँ। सुरा जिन्हें नीक (प्रिय) है ऐसे दुष्टों को मैं इन्द्र (जिन्हे सुरानीक अर्थात देवताओं की सेना प्रिय है) के समान समझकर उनका विनय करता हूँ। इन्हें वज्र के समान कठोर वचन सदैव प्यारा है और ये हजार आँखों से दूसरों के दोषों को देखते हैं। दुष्टों की यह रीत है कि वे उदासीन रहते हैं ( अर्थात् दूसरों को दुःख पहुँचाने के लिये यह नहीं देखते कि वह मित्र है अथवा शत्रु)। मैं दोनों हाथ जोड़कर प्रेमपूर्वक दुष्टों की वन्दना करता हूँ।

मैंने अपनी ओर से वन्दना तो की है किन्तु अपनी ओर से वे चूकेंगे नहीं। कौओं को बड़े प्रेम के साथ पालिये , किन्तु क्या वे मांस के त्यागी हो सकते हैं?

यह तो हुआ तुलसीदास जी के कथन का भावार्थ, अब मूल पाठ भी पढ़ लीजियेः

बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ॥
पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें॥
हरि हर जस राकेस राहु से। पर अकाज भट सहसबाहु से॥
जे पर दोष लखहिं सहसाखी। पर हित घृत जिन्ह के मन माखी॥
तेज कृसानु रोष महिषेसा। अघ अवगुन धन धनी धनेसा॥
उदय केत सम हित सबही के। कुंभकरन सम सोवत नीके॥
पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं॥
बंदउँ खल जस सेष सरोषा। सहस बदन बरनइ पर दोषा॥
पुनि प्रनवउँ पृथुराज समाना। पर अघ सुनइ सहस दस काना॥
बहुरि सक्र सम बिनवउँ तेही। संतत सुरानीक हित जेही॥
बचन बज्र जेहि सदा पिआरा। सहस नयन पर दोष निहारा॥
दो0-उदासीन अरि मीत हित सुनत जरहिं खल रीति।
जानि पानि जुग जोरि जन बिनती करइ सप्रीति॥

मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा। तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा॥
बायस पलिअहिं अति अनुरागा। होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा॥

Tuesday, April 6, 2010

गर्मी बढ़ रही है .. पारा चढ़ रहा है .. प्यास है कि बुझती ही नहीं ..

गर्मी के दिनों में प्रायः प्यास से कण्ठ सूखने लगता है। क्या करते हैं हम प्यास बुझाने के लिये? कोकाकोला, पेप्सी जैसे शीतल पेयों सेवन करके मुनाफाखोर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपनी गाढ़ी कमाई लुटाते हैं। इनके विज्ञापनों के (कु)प्रभाव के कारण हम अपनी कमाई लुटा कर खुश भी होते हैं। हमारा इस प्रकार से ब्रेनवाशिंग कर दिया गया है कि हमें प्याऊ में उपलब्ध शीतल जल हानिप्रद लगने लगता है और न जाने कितने दिनों पहले पैक किया हुआ सड़ा पानी लाभप्रद। हम पैसे देकर पानी खरीदते हैं।

पहले के समय में भी तो आखिर गर्मी के दिन आते थे और लोग उस गर्मी और लू से मुकाबला भी किया करते थे। उन्हें पता था कि गर्मी से मुकाबला करने के लिये प्रकृति ने हमें मौसमी फलों के रूप में बहुत से उपहार दिये हैं। आइये जानें इन मौसमी फलों के बारे में।

तरबूज

प्यास बुझाने के लिये सर्वोत्तम है तरबूज का सेवन करना। तरबूज जहाँ सुस्वादु होता है वहीं इसमें पानी की इतनी अधिक मात्रा होती है कि प्यासे आदमी को यह तरोताजा कर देता है। तरबूज खाने से जहाँ प्यास बुझती है वहीं यह कैंसर के खतरे से भी मुक्त करता है। इसके सेवन से प्रोटीन और फैट भी मिलता है। गर्मी के दिनों में बाजार में तरबूज अटे पड़े होते हैं और आपको आसानी से प्राप्य है।

खरबूज

तरबूज के जैसे ही खरबूज में भी पर्याप्त मात्रा में पानी होता है और इसे खाने से प्यास बुझती है।

ककड़ी और खीरा

ककड़ी और खीरा में पानी की पर्याप्त मात्रा होती है। इनमें पोटेशियम की भी मात्रा होती है जो कि आपके शरीर में मिनरल का संतुलन बनाये रखते हैं। इनके भीतर पाया जाने वाला स्ट्रोल कोलोस्ट्रोल के स्तर को कम करता है। चूँकि स्ट्रोल खीरे के छिलके में अधिक होता है, इसलिये इसे छिलके के साथ ही खाना अधिक लाभप्रद है।

प्याज

प्याज में पाये जाने वाले तत्व शरीर को लू से लड़ने की पर्याप्त क्षमता प्रदान करते हैं। यही कारण है कि गर्मी के दिनों में प्याज के सेवन का चलन परम्परागत रूप से चला आ रहा है। पुराने समय में तो लोग गर्मी की दोपहरी में निकलते समय कम से कम एक प्याज अपने साथ ही रख लिया करते थे।

टमाटर

टमाटर को लाल रंग प्रदान करने वाला रसायन लिंकोपेन गर्मियों में सूर्य के ताप से त्वचा की रक्षा करने की क्षमता प्रदान करता है। टमाटर विटामिन से भरपूर होते हैं और साथ ही साथ इसमें फैट की भी थोड़ी बहुत मात्रा पाई जाती है। कैंसर से लड़ने की शक्ति तो इसमें होती ही है।

स्ट्राबेरी

स्ट्राबेरी में पानी की पर्याप्त मात्रा होने के साथ ही साथ विटामिन सी भी भरपूर होता है। इसमें पाया जाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट्स सूर्य के प्रकाश से त्वचा की रक्षा करते हैं। कैंसर से रक्षा करने वाले तत्व भी इसमें विद्यमान होते हैं।

आम

गर्मी के दिनों की बात हो और आम की बात न हो तो बात ही अधूरी रह जाती है। आम ग्रीष्म ऋतु का प्रमुख फल है और इस फलों का राजा माना गया है। रसीले आमों में पाया जाने वाला पोटेशियम शरीर में मिनरल की कमी को पूरा करता है।

और अन्त में प्रस्तुत है सेनापति का ग्रीष्म ऋतु वर्णनः

वृष को तरनि तेज सहसौं किरन करि
ज्वालन के जाल बिकराल बरखत हैं।
तचति धरनि, जग जरत झरनि, सीरी
छाँह को पकरि पंथी पंछी बिरमत हैं॥
सेनापति नैकु दुपहरी के ढरत, होत
धमका विषम, जो नपात खरकत हैं।
मेरे जान पौनों सीरी ठौर कौ पकरि कोनों
घरी एक बैठी कहूँ घामैं बितवत हैं॥

Monday, April 5, 2010

यात्रा में निकलने के पहले

छुट्टियाँ बिताने के लिये पूरे परिवार के साथ यात्रा में जाने का शौक भला किसे नहीं होता। घूमने जाने के नाम से बच्चे सबसे अधिक रोमांचित होते हैं पर साथ ही साथ बड़े भी उत्साहित रहते हैं। पर अक्सर होता यह है कि लोग बिना किसी पूर्व योजना तथा तैयारी के यात्रा में निकल पड़ते हैं जिससे उन्हें अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। घूमने का सारा मजा किरकिरा हो जाता है। इसलिये अच्छा यही है कि पूरी तरह से सोच-समझ कर यात्रा की पूर्व योजना बनायें और समस्त तैयारियों के साथ ही यात्रा में निकलें।

पूर्व योजनाः
  • यात्रा में जाने की योजना पर्याप्त समय पहले ही बनायें और अपना कार्यक्रम निश्‍चित कर लें जैसे कि कहाँ जाना है, कब जाना है, वहाँ रहने के दौरान वहाँ का अनुमानित मौसम कैसा रहेगा इत्यादि।
  • यह भी विचार कर लें कि किस स्थान पर किस माध्यम से जायेंगे फ्लाइट, रेल या टैक्सी/बस से। यह भी तय कर लें कि किस स्थान में कितने दिनों तक ठहरना है।
  • अपने जेब को ध्यान में रखते हुये अपना बजट भी पहले ही निश्‍चित कर लें।
  • हवाई जहाज से घूमने की इच्छा भला किसे नहीं होती। आजकल कई कंपनियाँ पर्यटकों को सस्ते दर पर टिकिट देती हैं इसलिये पहले ही पता कर लें कि कौन सी कंपनी आपके बजट के अनुरूप दर पर टिकिट दे रही है।
  • सब कुछ तय हो जाने के बाद अपने जाने तथा आने के लिये फ्लाइट, रेल आदि के आरक्षण की उचित व्यवस्था कर लें। जहाँ तक हो सके होटल आदि की व्यवस्था भी पहले ही कर लें जिससे कि गंतव्य स्थान में पहुँचने के बाद जगह ढूँढने में आपका समय बर्बाद न हो। आजकल इंटरनेट की सुविधा होने से आरक्षण, होटल बुकिंग आदि कार्य घर बैठे ही आसानी के साथ किया जा सकता है।
  • यात्रा के दौरान अपने साथ ले जाने वाली वस्तुओं की सूची भी बना लें ताकि ऐन वक्‍त पर कोई चीज छूट न जाये।
तैयारियाँ
  • घर से निकलने के पहले निश्‍चित कर लीजिये कि टूथब्रश, टूथपेस्ट, साबुन, शैम्पू, तौलिया, शेविंग किट, बाल सँवारने के सामान आदि रख लिया गया है। प्रायः लोग इन्हीं चीजों को रखना भूल जाते हैं।
  • बुखार तथा दर्दनिवारक गोलियाँ, बैंडएड आदि जैसी कुछ आवश्यक दवाएँ और फर्स्ट-एड बाक्स रखना कदापि न भूलें। सम्पूर्ण यात्रा के दौरान कभी भी इनकी जरूरत पड़ सकती है।
  • एक छोटा टार्च, एक छोटा चाकू और एक छोटा ताला अपने साथ अवश्य रखें, ये यात्रा में बहुत काम आती हैं।
  • यद्यपि आजकल सभी पर्यटन स्थलों मे खान-पान की पर्याप्त व्यवस्था होती है, फिर भी अपने साथ कुछ हल्के नाश्ते का सामान भी रख लें।
  • अपने साथ अनावश्यक और भारी सामान कभी भी न रखें। छोटी-छोटी पैकिंग करें जिन्हें परिवार के लोग स्वयं ही उठा सकने में समर्थ हों क्योंकि यात्रा के दौरान अपने सामानों को स्वयं उठा कर ले जाने के अवसर अनेकों बार आते हैं।
कुछ सुझाव
  • महत्वपूर्ण कागजातों जैसे कि टिकिट, पासपोर्ट, क्रेडिट तथा एटीएम कार्ड्स, ड्राइव्हिंग लायसेंस आदि की छायाप्रति बनवा लें ताकि यदि कोई कागजात खो जाता है तो छायाप्रति से काम चलाया जा सके।
  • आवश्यकता से अधिक नगद रकम साथ न रखें और प्लास्टिक मनी अर्थात् क्रेडिट तथा एटीएम कार्ड्स का पूरा-पूरा उपयोग करें।
  • अपने सभी पैकिंगों पर अपना नाम व पता लिख दें, उनके भीतर भी अपने नाम व पते की स्लिप डाल दें।
  • परिचित लोगों के फोन नंबरों की सूची साथ रखें।
  • कहीं पर भी कूड़ा-करकट न फैलायें बल्कि उपयोग करने के बाद पालीथिन झिल्ली, डिस्पोजेबल गिलास आदि को कूड़ेदान में ही डालें।
  • नियम और कानून की अवहेलना ना करें।
  • हमेशा अपना व्यवहार सम्भ्रान्त रखें और अनजान लोगों पर एकाएक विश्‍वास न करें।
यदि आप उपरोक्‍त बातों का ध्यान रखेंगे तो आपको निश्‍चिंत होकर अपनी छुट्टियों तथा यात्रा का पूरा-पूरा मजा लेने का मौका अवश्य ही मिलेगा।

यात्रा सुविधा प्रदान करने वाली साइट्सः

Sunday, April 4, 2010

मौन मूर्खता को छिपाता है

मौन रह कर लोगों को सोचने दो कि तुम मूर्ख हो या नहीं, मुँह खोल कर उन्हे समझ जाने का अवसर मत दो कि तुम वास्तव में मूर्ख हो!

(Better to remain silent and be thought a fool, than to open your mouth and remove all doubt.)

Saturday, April 3, 2010

काम की लगे तो इस पोस्ट को पढ़ें ... अन्यथा बीच में ही छोड़ दें

कौन सी पोस्ट काम की है और कौन सी नहीं यह तो पाठक ही तय कर सकता है। कोई पोस्ट किसी के काम की होती है तो वही पोस्ट किसी अन्य के काम की नहीं होती। सुभाषित अर्थात् सद्‍वचन भी आजकल बहुत से लोगों को काम के नहीं लगते। इस पोस्ट में मैं कुछ अंग्रेजी के कुछ सुभाषितों को उनके हिन्दी अर्थ के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ इसलिये शायद कुछ लोगों को काम की लगे और कुछ को नहीं। इसीलिये पहले ही अनुरोध कर दिया कि यदि काम की लगे तो इस पोस्ट को पढ़ें, अन्यथा बीच में ही छोड़ दें।


Ability may get you to the top, but it takes character to keep you there.

योग्यता आपको सफलता की ऊँचाई तक पहुचा सकती है किन्तु चरित्र आपको उस ऊँचाई पर बनाये रखती है।


The foundation stones for a balanced success are honesty, character, integrity, faith, love and loyalty.

संतुलित सफलता के लिये ईमानदारी, चरित्र, अखंडता, विश्वास, प्रेम और निष्ठा नींव के पत्थर हैं।


Character is higher than intellect.

बुद्धि से चरित्र का स्थान ऊँचा है।


Weakness of attitude becomes weakness of character.

प्रवृति की दुर्बलता चरित्र की दुर्बलता बन जाती है।


If you want to judge a man's character, give him power.

किसी के चरित्र को परखना हो तो उसे अधिकार देकर देखो।

Friday, April 2, 2010

धकड़िक फकछक धकड़िक फकछक और सुहानी रात ढल चुकी ...

हम ऑटो में बैठे तो उसमें लगे एफएम रेडियो से गाना सुनाई पड़ा "सुहानी रात ढल चुकी ..."।

हम खुश हो गये कि चलो पुराना गाना सुनने को मिलेगा। पर ज्योंही बोल खत्म हुआ कि "धकड़िक फकछक" "धकड़िक फकछक"। ये कौन सा ताल है भाई? और ये क्या? "ना जाने तुम कब आओगे" के बदले "ना जाने तुम कब आओगे"? ये "आओगे" से जाओगे" कैसे हो गया?

गम्भीर अर्थ लिये हुए गानों के साथ बेमेल ताल और बीच-बीच में कुछ भी समझ में न आने वाले अंग्रेजी बोल। ये हैं आज के रीमिक्स गाने। धकड़िक फकछक धकड़िक फकछक .... दम्म दम्म ...। ये हैं आज के ताल। हमें तो ऐसा लगता है कि कोई सर के ऊपर हथौड़ा मार रहा है। पर किया ही क्या जा सकता है? यही आज की पसंद है।

क्या ये रीमिक्स दूसरों की संपत्ति पर दिन दहाड़े डाका नहीं है? एक डाकू क्या करता है? केवल दूसरों की संपत्ति को लूट खसोट कर अपना करार देने के सिवाय? आज पुराने गानों का रीमिक्स बनाने वाला भी लुटेरों की श्रेणी में ही तो आता है। उसके भीतर इतनी कल्पनाशीलता तो होती ही नहीं है कि कोई नई यादगार धुन का निर्माण कर सके, हाँ, दूसरों के द्वारा परिश्रम करके बनाये गये सुरीले धुनों को विकृत अवश्य कर सकता है।

आपको जानकारी होगी कि पुराने लोकप्रिय गीतों की रचना का श्रेय किसी एक व्यक्ति ने कभी भी नहीं लिया क्योंकि वे गीत सामूहिक परिश्रम के परिणाम थे। आज भी यदि आप में से किसी के पास पुराने गीतों के रेकार्ड (लाख या प्लास्टिक का तवा) तो आप उस पर छपे हुये विवरण में पढ़ सकते हैं कि गायक/गायिका - अबस, संगीत निर्देशक - कखग, गीतकार - क्षत्रज्ञ आदि आदि इत्यादि। मेरे कहने का आशय यह है कि एक फिल्मी गीत की संरचना किसी व्यक्तिविशेष की नहीं होती।

फिर इतने लोगों के परिश्रम से बनी संरचना को मनमाने रूप में बदल देने का अधिकार किसी को कैसे मिल जाता है?

एक घटना याद आ रही है। प्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र ने फिल्म श्री 420 के एक गीत में लिखा था -

"रातों दसों दिशाओं में कहेंगी अपनी कहानियाँ.........."

इसी पर संगीतकार जयकिशन और गीतकार शैलेन्द्र के बीच जोरदार तकरार हो गया था। जयकिशन का ऐतराज था कि दिशाएँ दस नहीं आठ होती हैं और शैलेन्द्र को शब्द बदलने के लिये दबाव डालने का प्रयास किया था। पर शैलेन्द्र अपने बोलों पर अड़े रहे। उन्होंने साफ साफ कह दिया कि तुम्हें धुन बनाने से मतलब होना चाहिये, गीत के बोलों से नहीं। गीत लिखना मेरा काम है और मैं जानता हूँ कि मुझे क्या लिखना है, यदि धुन बना सकते बनाओ अन्यथा किसी और से गीत लिखवा लो।

तात्पर्य यह कि वे गीतकार इतने स्वाभिमानी थे कि अपने लिखे गीत के एक शब्द में जरा भी परिवर्तन सहन नहीं कर पाते थे। (हमारे यहाँ पृथ्वी और आकाश को भी दिशा ही माना गया है और इस प्रकार से वास्तव में दस दिशायें ही होती हैं।)

हमारा प्रश्न यह है कि रीमिक्स बनाने वालों को गाने के ताल को बदलने के साथ ही साथ गीतकार के शब्दों को बदलने का अधिकार किसने दे दिया?

जिन गानों के रीमिक्स आज बन रहे हैं उनके गीतकार, संगीतकार, गायक, री-रेकार्डिंग तकनीशियन आदि में से प्रायः बहुतों का स्वर्गवास हो चुका है। क्या उनकी आत्मा इन रीमिक्स गानो को सुनकर रोती नहीं होंगी?

Thursday, April 1, 2010

किसे मूर्ख बना रहे हैं आप? ... हम तो पहले से ही मूर्ख हैं

हाँ भाई, हम स्वीकार कर रहे हैं कि हम पहले से ही मूर्ख हैं। अब आप खुद सोचें कि किसी मूर्ख को मूर्ख बनाकर आप खुद ही मूर्ख बनेंगे कि नहीं? आज हम "एप्रिल फूल डे" मना कर खुश हो रहे हैं यह हमारी मूर्खता नहीं है तो क्या है? क्या कोई बुद्धिमान अपनी संस्कृति, सभ्यता, रहन सहन आदि को भूल कर विदेशियों का अनुकरण कर सकता है? ऐसा काम तो सिर्फ मूर्ख ही करते हैं। अब तो आप समझ ही गये होंगे कि हम पक्के मूर्ख हैं। तो कृपया हम मूर्ख को और मूर्ख बना कर अपनी बुद्धि को बर्बाद करने की कोशिश ना करें।

मूर्ख होना हमारी नियति है; हम मूर्ख थे, मूर्ख हैं और मूर्ख ही रहेंगे।