Sunday, November 7, 2010

क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह क्या ही है स्तब्ध निशा!

Saturday, November 6, 2010

दीपावली तो आज है... कल तो लक्ष्मीपूजा थी...

दीपावली तो आज है... कल तो लक्ष्मीपूजा थी...

अधिकतर लोग लक्ष्मीपूजा के दिन को ही दीपावली समझते हैं जबकि वास्तव में दीपावली लक्ष्मीपूजा के दूसरे दिन का नाम है।

आप सभी को दीपावली की अनेकों अनेक शुभकामनाएँ!

deepavali greetings on orkut

Diwali Diyas

diwali lamps

Friday, November 5, 2010

दिवाली की दिली शुभकामनाए और एक और दुर्लभ किन्तु मधुर छत्तीसगढ़ी गाना रफी साहब की आवाज में

दीपावली के इस शुभ बेला में माता महालक्ष्मी आप पर कृपा करें और आपके सुख-समृद्धि-धन-धान्य-मान-सम्मान में वृद्धि प्रदान करें!

मोहम्मद रफी की आवाज में दुर्लभ किन्तु मधुर छत्तीसगढ़ी गानाः




यूट्यूब लिंकः

http://www.youtube.com/watch?v=OAZb8tmuZUA

Thursday, November 4, 2010

सुख-समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक दीपावली


Festival Greetings
संसार में भारत ही ऐसा देश है जहाँ पर वर्ष भर में अनगिनत त्यौहार मनाए जाते हैं जिनमें दीपावली सबसे बड़ा त्यौहार होता है। त्यौहार का अर्थ है खुशी मनाना। जब पेट भरा होता है और गाँठ में अतिरिक्त पैसा होता है तो आदमी को मस्ती सूझती है। जाहिर है कि भारत में प्रायः लोग समृद्ध होते थे याने कि लोगों का पेट भरा होता था और गाँठ में भरपूर पैसे होते थे इसीलिए मस्ती करने के लिए अधिकतर त्यौहारों का प्रचलन हुआ। आप ही सोचिए कि बेहाल आदमी भला क्या त्यौहार मनाएगा?

किन्तु त्यौहारों का उद्देश्य मात्र मस्ती करना ही नहीं होता था बल्कि त्यौहारों के अन्य अनेक उद्देश्य हुआ करते थे जैसे कि अपनी संस्कृति, सभ्यता, परम्परा आदि को बनाए रखना, मर्यादा बनाए रखना, स्वच्छता का ध्यान रखना आदि। जहाँ दिवाली में लक्ष्मी-पूजन का उद्देश्य है अपनी संस्कृति, सभ्यता, परम्परा आदि को बनाए रखना वहीं छोटों के द्वारा बड़ों का चरणस्पर्श तथा बड़ों के द्वारा उन्हें आशीर्वाद देना मर्यादा को बनाए रखना है और पूरे घर की साफ-सफाई, लिपाई-पुताई आदि स्वच्छता का ध्यान रखना है। दीपावली में ही घर की दीवालों को पेंट करने के पीछे कारण यह होता है कि चार माह की बरसात घरों की सुन्दरता को नष्ट कर चुकी होती है अतः घर का फिर से काया-पलट करना आवश्यक होता है। जहाँ रंग-रोगन से घरों की सुन्दरता फिर से लौट आती है वहीं पूरे घर की सफाई करने से तथा अंधेरे घर में फैली धूल-गंदगी खत्म हो जाती है बीमारी फैलाने वाले कई प्रकार के कीटाणुओं का नाश हो जाता है।

वास्तव में देखा जाए तो दीपावली मुख्यतः फसल काटने का त्यौहार है। कृषक अपने परिश्रम का फल फसल के रूप में पाकर आनन्द तथा उल्लास से सराबोर हो जाते हैं और त्यौहार मनाते हैं। चूँकि अन्न लक्ष्मी देवी का एक रूप है अतः दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है।

कुछ और जानकारी

दीपावली शब्द "दीप" (दिया) तथा "आवली" (कतार) शब्दों के मेल से बना है अर्थात् दीपावली का अर्थ है "दिये की कतार"।

दीपावली को "लक्ष्मी पूजा" के नाम से भी जाना जाता है। लक्ष्मी पूजा के दिन घरों के द्वारों पर सभी दिशाओ की ओर अनेकों दिये आलोकित किये जाते हैं। ।

दीपावली रोशनी का त्यौहार है। दिया या प्रकाश बुराई पर भलाई के विजय का प्रतीक है।

दीपावली हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक चन्द्रमास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है जो कि अंग्रेजी कैलेन्डर के अनुसार अक्टूबर या नवम्बर महीने में आता है।

लक्ष्मी पूजा के पूर्व का दिन "नर्क चतुर्दशी" कहलाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर पर विजय प्राप्त किया था। नर्क चतुर्दशी के दिन घरों के द्वारों पर दक्षिण दिशा की ओर चौदह दिये आलोकित किये जाते हैं।

लक्ष्मी पूजा के दूसरे दिन "गोवर्धन पूजा" मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र को पराजित किया था।

दीपावली मनाने के कुछ अन्य कारणः

जैन धर्म के अनुसार भगवान महावीर को 15 अक्टूबर १५५२७ (ईसवी पूर्व) के दिन, जो कि दीपावली का दिन था, निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। (अंग्रेजी विकीपेडिया http://en.wikipedia.org/wiki/Diwali#In_Jainism)

सिख समुदाय के लोग अनेकों कारण से दीपावली का त्यौहार मनाते हैं। इस दिन उनके छठवें गुरु, गुरु हरगोविंद जी, को 52 हिन्दू राजाओ के साथ कारागार से मुक्ति मिली थी और वे अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर में मत्था टेकने गये थे जहाँ पर अनेकों दिये प्रकाशित करके उनका स्वागत किया गया था।

कहा जाता है किस चौदह वर्ष का वनवास काट कर भगवान श्री रामचन्द्र जी दीपावली के दिन ही अयोध्या वापस लौटे थे और अनेकों दीप प्रज्जवलित कर के उनका स्वागत किया गया था।

स्कन्द पुराण के अनुसार देवी शक्ति ने भगवान शिव का आधा शरीर प्राप्त करने के लिये 21 दिनों का व्रत किया था जिसका आरम्भ कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी से हुआ था और उन्हें दीपावली के दिन व्रत का फल मिला था।

Wednesday, November 3, 2010

मोहम्मद रफी की आवाज में दुर्लभ किन्तु मधुर छत्तीसगढ़ी गाना

सन् 1965 में पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म बनी थी "कहि देबे सन्देश"। फिल्म के निर्माता थे मनु नायक। "कहि देबे सन्देश" का संगीतकार मलय चक्रवर्ती ने इस फिल्म में अत्यन्त ही मधुर एवं कर्णप्रिय संगीत प्रदान किया था किन्तु वे गीत आज दुर्लभ हो गए हैं।

प्रस्तुत है उसी फिल्म कहि देबे सन्देश का गीत जिसे मोहम्मद रफी साहब ने मधुर आवाज प्रदान किया थाः

Monday, November 1, 2010

फटाके याने कि आतिशबाजी याने कि आग का खेल-तमाशा

सदियों से न केवल हमारे देश में बल्कि विश्व के प्रायः देशों में उत्सव या खुशी के अवसर पर आतिशबाजी अर्थात् फटाके चलाने की परम्परा रही है। फटाके से उत्पन्न कर्णभेदी ध्वनी जहाँ मनुष्य को एक भयमिश्रित प्रसन्नता प्रदान करती है वहीं आग का सितारों के रूप में नाचना, ऊपर से नीचे गिरना मनुष्य को नयनाभिराम प्रतीत होता है। यह भी हो सकता है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में देवताओं के द्वारा आकाश से फूल बरसाने का उल्लेख आतिशबाजी के द्वारा आग का फूलों के रूप में आकाश से नीचे गिरने का सांकेतिक रूप हो।

आतिशबाजी उर्दू का शब्द है जिसमें "आतिश" का अर्थ होता है "आग" और "बाजी" का अर्थ है "खेल" या "तमाशा" याने कि "आतिशबाजी" का अर्थ हुआ "आग का खेल-तमाशा"। जहाँ अन्य समस्त प्राणियों के लिए आग भय की वस्तु है वहीं मनुष्य ने आग को भी खेल-तमाशे की वस्तु बना लिया; यह केवल मनुष्य के विलक्षण मस्तिष्क का ही कमाल है। हमें पता नहीं है कि मनुष्य ने आतिशबाजी की कला की खोज कब और कैसे की, हो सकता है कि आग में नमक पड़ जाने से जो चड़चड़ाहट होती है उसी ने मनुष्य का ध्यान आतिशबाजी की ओर आकर्षित किया हो। यह भी सम्भाव है कि कभी अनजाने में मनुष्य ने आग में कोई ऐसी वस्तु डाल दी हो जिसमें किसी रूप में शोरा (पोटेशियम नाइट्रेट) और गंधक रहा हो और उसके परिणामस्वरूप मनुष्य को आतिशबाजी की कला का ज्ञान हो गया हो।

अस्तु, माना जाता है कि इस कला का विकास चीन में लगभग दो हजार वर्ष पूर्व हुआ जहाँ से यह शनैः-शनैः पूरे विश्व में फैल गया। आतिशबाजी की कला के लिए बारूद का प्रयोग किया जाता है जो कि कोयला, गंधक और शोरा के चूरे का मिश्रण होता है। कालान्तर में आतिशबाजी को रंगीन करके और भी नयनाभिराम बनाने के लिए बारूद में पोटेशियम क्लोरेट (potassium chlorate), बेरियम (barium), स्ट्रोन्टियम नाइट्रेट (strontium nitrate), एल्युमीनियम (aluminium), मैग्नेशियम (magnesium) आदि को मिलाने का प्रचलन होने लगा नयनाभिराम, रंग-बिरंगी, चमकीली सितारों के रूप में आग के फौवारे छोड़ने वाले रॉकेट, गोले आदि फटाके बनाए जा सकें।

जहाँ फटाके हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं वहीं अनेक बार भयंकर दुर्घटनाओं के कारण भी बन जाते हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर फटाकों के निर्माण, क्रय-विक्रय आदि के लिए नियम-कानून बनाए गए। भारत में "भारतीय विस्फोट नियम" (Indian Explosives Rules) की शुरुवात पहली बार सन् 1940 में हुई जिसके अन्तर्गत् फटाकों के निर्माण एवं विक्रय के लिए लायसेंस का प्रावधान बनाया गया।

दिवाली की रात सम्पूर्ण भारत में अरबों-खरबों रुपयों के फटाके जल जाते हैं और प्रतिवर्ष फटाकों के खपत में 10% की वृद्धि हो जाती है। आपको शायद ही पता हो कि भारत में दिवाली की रात को तीन घण्टे के भीतर जितने फटाके चलते हैं उनका निर्माण करने के लिए शिवाकाशी में स्थित अनेक फटाके निर्माता कम्पनियों को तीन सौ से भी अधिक दिन लगते हैं। यद्यपि भारत में अनेक स्थानों में फटाके बनाने वाली फैक्टरियाँ हैं किन्तु सबसे अधिक फैक्टरियाँ शिवाकाशी में ही है क्योंकि वहाँ की कम वर्षा और शुष्क वातावरण इसके लिए अत्यन्त उपयुक्त है।

एक अरसे तक विश्व भर के देशों को फटाका निर्यात करने में चीन का एकाधिकार रहा है किन्तु अब भारत से भी अनेक देशों में फटाकों का निर्यात किया जाता है।