Tuesday, December 7, 2010

गुरु – कबीर की दृष्टि में

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय॥

सब धरती कागद करूँ, लेखनि सब बनराय।
सात समुन्द की मसि करूँ, गुरु गुन लिखा ना जाय॥

कबिरा ते नर अंध हैं, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहि ठौर॥

यह तन विष की बेल री, गरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥

गुरु कुम्हार सिख कुम्भ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़त खोट।
भीतर से अवलम्ब है, ऊपर मारत चोट॥

जा के गुरु है आंधरा, चेला निपट निरंध।
अंधे अंधा ठेलिया, दोना­ कूप परंत॥

कबीर जोगी जगत गुरु, तजै जगत की आस।
जो जग की आसा करै, तो जगत गुरू वह दास॥

Sunday, December 5, 2010

भारत में सर्वाधिक लम्बा, ऊँचा और बड़ा (Longest, Highest and Largest in India)

  • सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग - राजमार्ग नं. 7 (वाराणसी से कन्याकुमारी)
  • सबसे लम्बी सड़क - ग्रांडट्रंक रोड
  • सबसे लम्बा सड़क का पुल - महात्मा गांधी सेतु (पटना)
  • सबसे लम्बी सुरंग - जवाहर सुरंग (जम्मू काश्मीर)
  • सबसे लम्बी नदी - गंगा
  • सबसे लम्बा रेलमार्ग - जम्मू से कन्याकुमारी
  • सबसे लम्बा प्लेटफॉर्म - खड़गपुर (पश्चिम बंगाल)
  • सबसे लम्बी तटरेखा वाला राज्य - गुजरात
  • सबसे लम्बा बाँध - हीराकुण्ड बाँध (उड़ीसा)
  • सबसे ऊँची चोटी - गॉडविन ऑस्टिन (K-2)
  • सबसे ऊँचा जलप्रपात - गरसोप्पा या जोग
  • सबसे ऊँचा बाँध - भाखड़ा नांगल बाँध
  • सबसे ऊँचा पत्तन - लेह (लद्दाख)
  • सबसे ऊँची मीनार - कुतुबमीनार
  • सबसे ऊँचा दरवाजा - बुलन्द दरवाजा
  • सबसे ऊँची मूर्ति - गोमतेश्वर
  • सबसे ऊँची झील - देवताल झील
  • सबसे ऊँची मार्ग - लेह-मनाली मार्ग
  • सबसे ऊँचा पशु - जिराफ
  • सबसे बड़ी झील (मीठे पानी की) - वूलर झील (काश्मीर)
  • सबसे बड़ी झील (खारे पानी की) - चिल्का झील (उड़ीसा)
  • सबसे बड़ा गुफा मन्दिर - कैलाश मन्दिर (एलोरा)
  • सबसे बड़ा रेगिस्तान - थार (राजस्थान)
  • सबसे बड़ा डेल्टा - सुन्दरवन
  • सबसे बड़ा प्राकृतिक बन्दरगाह - मुम्बई
  • सबसे बड़ा लीवर पुल - हावड़ा ब्रिज (कोलकाता)
  • सबसे बड़ा गुरुद्वारा - स्वर्ण मन्दिर (अमृतसर)
  • सबसे बड़ा तारामण्डल (प्लेनेटोरियम) - बिड़ला तारामण्डल (प्लेनेटोरियम)
  • सबसे बड़ी मस्जिद - जामा मस्जिद (दिल्ली)
  • सबसे बड़ा पशुओं का मेला - सोनपुर (बिहार)
  • सबसे बड़ा चिड़ियाघर - जूलॉजिकल गॉर्डन्स (कोलकाता)
  • सबसे बड़ा अजायबघर - कोलकाता अजायबघर

Saturday, December 4, 2010

क्या हम अपने अतीत से शिक्षा लेते हैं?

सन् 712 में मोहम्मद-बिन-कासिम बिलोचिस्तान की विस्तृत मरुभूमि को पार करके सिन्ध तक चला आया। केवल बीस वर्ष आयु वाले उस लुटेरे के मात्र छः हजार घुड़सवारों के समक्ष सिन्ध के राजा दाहिर के दस हजार अश्वारोही और बीस हजार पैदल सैनिकों की सेना टिक न सकी और राजा दाहिर मारा गया। उस दुर्दान्त लुटेरे ने न केवल भारत-भूमि को पदाक्रान्त किया बल्कि वह भारत से सत्रह हजार मन सोना, छः हजार ठोस सोने की मूर्तियाँ, जिनमें से एक मूर्ति तीस मन की थी, और असंख्य हीरे-मोती-माणिक्य लूट कर ले गया।

सन् 1000 से 1027 के बीच गज़नी के महमूद ने 17 बार आक्रमण किया और भारत भूमि को रौंदता रहा। सन् 1000 में प्रथम बार पंजाब में राजा जयपाल पर आक्रमण करने के बाद निरन्तर उसका साहस बढ़ते रहा तथा सन् 1025 में गुजरात के सोमनाथ मंदिर की अकूत धन-सम्पदा को वह लूट ले गया।

चौदहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया। तैमूर केवल पन्द्रह दिन भारत में रहा और लूट-खसोट और कत्ले-आम करके लौट गया।

इसके कोई सवा सौ वर्ष बाद बाबर ने आक्रमण किया। यद्यपि मुगलों द्वारा भारत को ही अपना घर बना लेने के कारण भारत की सम्पत्ति उनके काल में भारत में ही रही, किन्तु लूटा तो उन्होंने भी हमें।

भारत की अकूत धन-सम्पदा ने सदैव ही लुटेरों को आकर्षित किया किन्तु अनेक बार लुटने के बावजूद भी भारत माता की अकूत धन-सम्पदा में किंचित मात्र भी कमी नहीं आई। सोने की चिड़िया कहलाती थी वह! दूध-दही की नदियाँ बहती थीं उसकी भूमि में! रत्नगर्भा वसुन्धरा थी उसके पास! शाहजहाँ और औरंगजेब का जमाना आने तक भारत भूमि न जाने कितनी बार लुट चुकी थी पर उसकी अपार सम्पदा वैसी की वैसी ही बनी हुई थी। इस बात का प्रमाण यह है कि दुनिया का कोई भी इतिहासज्ञ शाहजहाँ की धन-दौलत का अनुमान नहीं लगा सका है। उसका स्वर्ण-रत्न-भण्डार संसार भर में अद्वितीय था। तीस करोड़ की सम्पदा तो उसे अकेले गोलकुण्डा से ही प्राप्त हुई थी। उसके धनागार में दो गुप्त हौज थे। एक में सोने और दूसरे में चाँदी का माल रखा जाता था। इन हौजों की लम्बाई सत्तर फुट और गहराई तीस फुट थी। उसने ठोस सोने की एक मोमबत्ती, जिसमें गोलकुण्डा का सबसे बहुमूल्य हीरा जड़ा था और जिसका मूल्य एक करोड़ रुपया था, मक्का में काबा की मस्जिद में भेंट की थी। लोग कहते थे कि उसके पास इतना धन था कि फ्रांस और पर्शिया के दोनों महाराज्यों के कोष मिलाकर भी उसकी बराबरी नहीं कर सकते थे। सोने के ठोस पायों पर बने हुए तख्त-ए-ताउस में दो मोर मोतियों और जवाहरात के बने थे। इसमें पचास हजार मिसकाल हीरे, मोती और दो लाख पच्चीस मिसकाल शुद्ध सोना लगा था, जिसकी कीमत सत्रहवीं शताब्दी में तिरपन करोड़ रुपये आँकी गई थी। इससे पूर्व इसके पिता जहांगीर के खजाने में एक सौ छियानवे मन सोना तथा डेढ़ हजार मन चाँदी, पचास हजार अस्सी पौंड बिना तराशे जवाहरात, एक सौ पौंड लालमणि, एक सौ पौंड पन्ना और छः सौ पौंड मोती थे। शाही फौज अफसरों की दो हजार तलवारों की मूठें रत्नजटित थीं। दीवाने-खास की एक सौ तीन कुर्सियाँ चाँदी की तथा पाँच सोने की थीं। तख्त-ए-ताउस के अलावा तीन ठोस चाँदी के तख्त और थे, जो प्रतिष्ठित राजवर्गी जनों के लिए थे। इनके अतिरिक्त सात रत्नजटित सोने के छोटे तख्त और थे। बादशाह के हमाम में जो टब सात फुट लम्बा और पाँच फुट चौड़ा था, उसकी कीमत दस करोड़ रुपये थी। शाही महल में पच्चीस टन सोने की तश्तरियाँ और बर्तन थे। वर्नियर कहता है कि बेगमें और शाहजादियाँ तो हर वक्त जवाहरात से लदी रहती थीं। जवाहरात किश्तियों में भरकर लाए जाते थे। नारियल के बराबर बड़े-बड़े लाल छेद करके वे गले में डाले रहती थीं। वे गले में रत्न, हीरे व मोतियों के हार, सिर में लाल व नीलम जड़ित मोतियों का गुच्छा, बाँहों में रत्नजटित बाजूबंद और दूसरे गहने नित्य पहने रहती थीं।

कालान्तर में भारत की इस अकूत धन-सम्पदा को पुर्तगालियों, फ्रांसिसियों और अंग्रेजों ने भी लूटा। सही मायनों में तो भारत माता को इन फिरंगियों ने ही लूटा और इस अकूत धन-सम्पदा की स्वामिनी को दरिद्रता की श्रेणी में लाकर रख दिया।

आखिर हमारी किस कमजोरी ने हमें हजार से भी अधिक वर्षों तक परतन्त्रता की बेड़ियाँ पहनाए रखी थीं?

हमारी कमजोरी थी हममें राष्ट्रीय भावना की कमी! कभी हम वैष्णव, शाक्त, तान्त्रिक, वाममार्गी, कापालिक, शैव और पाशुपत धर्म जैसे सैकड़ों मत-मतान्तर वाले बनकर बड़ी कट्टरता से परस्पर संघर्ष करते रहे तो कभी जाति भेद के आधार पर आपस में लड़ते रहे। सम्राट हर्षवर्धन के बाद अर्थात् ईसा की सातवीं शताब्दी के मध्य से लोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक लगभग नौ सौ वर्ष के समय में कोई सशक्त राजनीतिक शक्ति ऐसी न उत्पन्न हो पाई, जो समस्त भारत को एक सूत्र में बाँध सके। इन नौ सौ सालों में भारत छोटी-बड़ी, एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने वाली रियासतों के युद्ध का अखाड़ा बना रहा।

आज भी क्या हममें राष्ट्रीयता की भावना का उदय हो पाया है? क्या आज भी हम बोली-भाषा-प्रान्तीयता आदि के आधार पर आपस में लड़ नहीं रहे हैं? क्या आज भी हमारी गाढ़ी कमाई को विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ लूटकर विदेशों में पहुँचा रहे है? क्या हमारे ही देश के स्वार्थी तत्व हमारी सम्पदा को स्विस बैंकों में जमा नहीं कर रहे हैं?

क्या हमने कभी अपने अतीत से शिक्षा प्राप्त करने का प्रयत्न किया है?

(इस पोस्ट में आँकड़े तथा विचार आचार्य चतुरसेन की कृतियों से लिए गए हैं।)

Thursday, December 2, 2010

कितनी तेजी से बदला है जमाना

अधिक नहीं, मात्र चालीसेक साल पहले हमारे समाज में स्टील के बर्तनों में खाना खाने को अकरणीय माना जाता था। जहाँ सम्पन्न परिवारों में सोने-चाँदी के बर्तनों का चलन था वहीं सर्वसाधारण लोग फूलकाँस के बर्तनों का प्रयोग किया करते थे। स्टील और अल्यूमीनियम के बर्तनों को हिकारत की नजर से देखा जाता था। आज फूलकाँस के बर्तन गाँवों में तो शायद कहीं दिखाई दे जाएँ किन्तु नगरों में तो ये विलुप्तप्राय हो चुके हैं। शहरों में ये बर्तन यदि कहीं दिखाई देते भी हैं तो विवाहादि समारोहों में जहाँ पर परम्परा के अनुसार कन्या को पाँच बर्तन दहेज के रूप में दिए जाते हैं।

सिर्फ पारम्परिक बर्तन ही नहीं बल्कि खाना पकाने की पारम्परिक विधि भी आज समाप्त हो चुकी है। आज मिट्टी के चूल्हे पर मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने की बात कोई सोच भी नहीं सकता। मिट्टी के चूल्हे पर मिट्टी की हांडी में चाँवल, मिट्टी के ही बर्तन में, जिसे छत्तीसगढ़ में कुरेड़िया कहा जाता है, सब्जी और पीतल की बटलोई में दाल पका कर मेरी माँ मुझे परसा करती थी उस खाने के लिए आज भी मेरा मन तरसता है।

Wednesday, December 1, 2010

गद्य की विधाएँ - उपन्यास

उपन्यास हिन्दी गद्य की विधाओं में से एक प्रमुख विधा है। उपन्यास का अर्थ है प्रस्तुत करना। उपन्यास लेखक अपने उपन्यास के पात्रों के चरित्र-चित्रण के बहाने तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, सास्कृतिक तथा आर्थिक वातावरण का प्रस्तुतीकरण करता है।

हिन्दी उपन्यासों का प्रारम्भ भारतेन्दु युग से हुआ। भारतेन्दु युग के प्रमुख उपन्यास हैं बाबू देवकीनन्दन खत्री रचित "चन्द्रकान्ता" और "चन्द्रकान्ता सन्तति", बालकृष्ण भट्ट रचित "नूतन ब्रह्मचारी" हरिऔध रचित "अधखिला फूल" और "ठेठ हिन्दी का ठाठ", अम्बिकादत्त व्यास रचित "आदर्श-वृत्तान्त" आदि।

बाद में उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का उदय हुआ जिन्होंने विषय, भाषा, शैली आदि की दृष्टि से उपन्यास विधा में उल्लेखनीय परिवर्तन किया। प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यास हैं - गोदान, गबन, कर्मभूमि, रंगभूमि आदि। प्रेमचन्द के काल में जयशंकर 'प्रसाद', आचार्य चतुरसेन, भगवतीचरण वर्मा, अमृतलाल नागर, विश्वम्भर नाथ कौशिक, वृन्दावन लाल वर्मा आदि लेखकों ने उपन्यास विधा के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। "कंकाल", "वैशाली की नगरवधू", "सोमनाथ", "चित्रलेखा", "तितली", "मृगनयनी" आदि उस युग के श्रेष्ठतम उपन्यास हैं।

हिन्दी के अन्य उपन्यासकारों में यशपाल, फणीश्वर नाथ 'रेणु', रांगेय राघव, धर्मवीर भारती, विष्णु प्रभाकर, हिमांशु जोशी, भीष्म साहनी, राजेन्द्र यादव, शिवानी आदि नाम उल्लेखनीय हैं।