Monday, February 7, 2011

भारत में जासूसी लेखन (Detective Writing in India)

जिस प्रकार से पाश्चात्य देशों में जासूसी लेखन (Detective Writing) को अत्यधिक रुचि लेकर पढ़ा जाता रहा है उसी प्रकार से भारतीय साहित्य में भी जासूसी लेखन (Detective Writing) की लोकप्रियता रही है। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसने सर आर्थर कानन डायल (Arthur Conan Doyle) के मशहूर पात्र "शरलॉक होम्स" के बारे में न सुना हो। आगाथा क्रिस्टी (Agatha Christie) के जासूसी उपन्यास आज भी अत्यन्त लोकप्रिय हैं। जासूसी उपन्यास के इन लेखकों की लोकप्रियता जाहिर करती है कि पाश्चात्य देशों में जासूसी लेखन (Detective Writing) को साहित्य में स्थान मिला है किन्तु भारत में जासूसी लेखन (Detective Writing) का स्थान हमेशा ही गौण रहा है। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है बाबू देवकीनन्दन खत्री के उपन्यास "चन्द्रकान्ता" और चन्द्रकान्ता सन्तति", जिन्हें पढ़ने के लिए लाखों की संख्या में लोगों ने हिन्दी सीखा, को हिन्दी साहित्य में आज भी गौण स्थान ही प्राप्त है।

माना जाता है कि जासूसी लेखन (Detective Writing) का आरम्भ सन् 1841 में एडगर एलन पो की कहानी  (short story) "द मर्डर्स इन द रुये मोर्ग (The Murders in the Rue Morgue) से हुई। भारत में जासूसी लेखन (Detective Writing) का आरम्भ, यद्यपि वह लेखन अपरिष्कृत रूप में था, उन्नीसवीं शताब्दी में हुई। सन् 1888 में बाबू देवकीनन्दन खत्री ने "चन्द्रकान्ता" नामक उपन्यास लिखा जिसे कि जासूसी लेखन (Detective Writing) के अन्तर्गत माना जा सकता है और जहाँ तक यही भारत में जासूसी लेखन (Detective Writing) की शुरुवात थी। उन्हीं दिनों "शरलॉक होम्स" और "चन्द्रकान्ता सन्तति" से प्रभावित अनेक रचनाओं का प्रकाशन हिन्दी, मराठी, बंगाली, तेलुगु, तमिल आदि भाषाओं में हुआ जो कि बहुत ही लोकप्रिय हुए।

बीसवीं शताब्दी पचास और साठ के दशक में इब्ने सफी के उपन्यासों ने जासूसी लेखन (Detective Writing) के राजा रजवाड़े से सम्बन्धित रूप को बदलकर एक आधुनिक रूप दिया। इब्ने सफी मूलतः उर्दू में लिखा करते थे जिनका "जासूसी दुनिया" नामक मासिक पत्रिका में उर्दू और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में प्रकाशन हुआ करता था। उन दिनों सफी जी जासूसी उपन्यासों के सर्वाधिक लोकप्रिय लेखक थे और उनकी लोकप्रियता भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में बहुत अधिक थी। ओमप्रकाश शर्मा और वेदप्रकाश काम्बोज भी उन दिनों के लोकप्रिय जासूसी लेखक थे।

कालान्तर में जेम्स हेडली च़ेज के डिटेक्टिव्ह नावेल्स की लोकप्रियता बढ़ती गई। बहुत से लेखकों ने उनके उपन्यासों का हिन्दी अनुवाद किया किन्तु सुरेन्द्र मोहन पाठक जी सफलतम अनुवादक रहे। बाद में पाठक जी ने स्वयं जासूसी लेखन (Detective Writing) का कार्य आरम्भ कर दिया और हिन्दी के सफलतम जासूसी लेखक की श्रेणी उनका स्थान बन गया। आज भी पाठक जी के उपन्यास बहुत अधिक लोकप्रिय हैं।