Friday, March 2, 2012

परम्परागत तरीके से होली मनाने के लिए पत्नी से एनओसी लेना जरूरी

होली का त्यौहार समीप आ रहा है, ऐसे में भला मुहल्ले के युवा जागरण समिति के कर्ता-धर्ता लल्लू लाटा और कल्लू काटा भला चुप कैसे बैठ सकते हैं? सो उन्होंने युवा जागरण समिति की बैठक बुला ली। मुहल्ले के समस्त युवकों के बैठक में उपस्थित हो जाने पर लल्लू लाटा ने यह कहते हुए बैठक का शुभारम्भ किया, "प्यारे दोस्तों! होली का त्यौहार नजदीक आ गया है। यह तो आप लोग जानते ही हैं कि हम लोग हर साल होली के त्यौहार को परम्परागत तरीके से मनाते हैं। इस साल भी हमें इस त्यौहार को अपनी परम्परा के अनुसार मनाना है। वैसे तो हमारे मुहल्ले में हमेशा से भांग-ठंडाई के साथ होली मनाने का रिवाज रहा है। पर अब जमाना बदल गया है तो परम्पराएँ भी बदल गई हैं। यही कारण है कि पिछले दस-पन्द्रह सालों से हम लोग दारू-मुर्गा के साथ होली मना रहे हैं। इस साल होली में क्या और कैसे किया जाए, इसी बात पर विचार करने के लिए आज हम सब लोग यहाँ पर इकट्ठे हुए हैं।"


"इसमें विचार करने की क्या बात है? हर साल की तरह आप बस इतना बता दीजिए कि हम लोगों को सहयोग राशि कितनी देनी है। बाकी दारू-मुर्गा आदि का सारा इन्तिजाम आप हर साल तो करते ही हैं ना!" टिल्लू ने कहा।

लल्लू लाटा ने कहा, "हाँ पिछले साल तक मैं और कल्लू दोनों मिल कर सारा इन्तिजाम करते थे, पर अब हम दोनों ने डिसाइड किया है कि इस साल हम ये इन्तिजाम नहीं करेंगे।"

"वो क्यों?" चम्पू ने पूछा।

सभी लोगों ने लल्लू लाटा की ओर उत्सुकता से देखना शुरू कर दिया मानो कि चम्पू के प्रश्न का समर्थन कर रहे हों।

सब लोगों को अपनी ओर तकते हुए देखकर लल्लू लाटा ने कहना शुरू किया, "वो इसलिए कि पिछले साल टिल्लू और चम्पू की पत्नियों को जब पता चला कि उनके पतियों ने हमारे साथ परम्परागत तरीके से होली मनाई है तो उन दोनों ने अपने पतियों को खूब झाड़ा और मुहल्ले भर की औरतों के बीच ढ़िंढ़ोरा पीटना शुरू कर दिया कि लल्लू लाटा और कल्लू काटा दोनों मिल कर हमारे सीधे-सादे पतियों को गलत रास्ते में ले जा रहे हैं। यह तो हम सभी जानते हैं कि टिल्लू और चम्पू दोनों ही मौज-मस्ती का कोई भी मौका कभी भी नहीं छोड़ते पर पत्नियों को उसके बारे में पता भी नहीं चलने देते। यही कारण है कि उनकी पत्नियाँ उन्हें सदाचार का अवतार मानती हैं। बदनाम तो मैं और कल्लू हैं जो आप सभी के लिए सब प्रकार का इन्तिजाम करते हैं।"

कल्लू काटा ने कहा, "अरे उन दोनों ने तो मेरी और लल्लू जी की मिसेज के पास आकर कह दिया था कि तुम लोग अपने मिस्टर को सम्भाल कर नहीं रखती हो, आज के जमाने में भी पतियों से दबी रहती हो। बस फिर क्या था हम दोनों की पत्नियाँ भी शेरनी बन गई थीं। उन्हें फिर से पटरी पर लाने के लिए बहुत दिन लग गए थे हम दोनों को।"

लल्लू लाटा ने फिर कहा, "अपने पतियों को वो चाहें जितना भी झाड़ें, हमें उससे कुछ भी लेना-देना नहीं है, अगर झाड़ू बेलन का स्टॉक कम हो जाए तो हम उन्हें और दे सकते हैं। पर हमें बदनाम करने का उनको कोई अधिकार नहीं है। इसीलिए हम दोनों ने डिसाइड किया है कि इस साल हर कोई अपना इन्तजाम खुद करेगा।"


लल्लू के इस कथन से वहाँ उपस्थित अधिकतर लोगों के चेहरे बुझ-से गए क्योंकि वो लोग भी टिल्लू और चम्पू के जैसे ही थे। पीते जरूर थे पर कोशिश यह भी रहती थी कि कोई देख ना ले, कोई जान ना ले। दारू दुकान जाकर दारू खरीद कर लाना तो वो कभी कर ही नहीं सकते थे, क्या पता कौन पहचान वाला देख ले।

आखिर बल्लू ने हिम्मत करके खुशामदी लहजे में कहना शुरू किया, "अरे लल्लू-कल्लू भाई, आप लोग ऐसे नाराज ना हों। आप लोगों के बदौलत ही तो हम मुहल्ले में पर्व-त्यौहार आदि अच्छे से मना पाते हैं। फिर हर कोई अलग-अलग होली मनाएगा तो फिर मजा ही क्या आएगा? हम सब आपसे रिक्वेस्ट करते हैं कि आप हर साल की तरह से इस साल भी सारा इन्तिजाम करें। हम प्रामिस करते हैं कि हम लोग अपनी पत्नियों को भनक भी नहीं लगने देंगे।"

लल्लू लाटा बोले, "देखो भाई लोगों! आप लोग कितना भी क्यों ना छुपाओ, पत्नियाँ तो जान ही जाएँगी। अगर आप लोग चाहते हैं कि मैं और कल्लू दोनों इस साल भी इन्तजाम करें तो हमारी एक शर्त है। आप सभी को अपनी-अपनी पत्नियों से "एनओसी" लाकर हमें देना होगा, वो भी लिखित में। अगर आप लोगों की पत्नियाँ निम्न प्रारूप में लिख कर देंगी कि -
मैं श्रीमती ..........................., पत्नी श्री................ एतद् द्वारा घोषणा करती हूँ कि मेरे पति यदि होलिका दहन की रात्रि से लेकर धुलेड़ी के सायंकाल तक मुहल्ले की परम्परा के अनुसार होली मनाएँगे तो मुझे किसी भी प्रकार का ऐतराज नहीं होगा।

हस्ताक्षर श्रीमती ..........................."

तभी हम इस बार की होली का इन्तजाम करेंगे अन्यथा नहीं। एनओसी लेने के लिए चाहे आप अपनी बीबियों के पैर पकड़ो या उनके सामने नाक रगड़ो।"

सभी लोगों ने इस शर्त को वापस लेने के लिए बहुत मिन्नतें की पर लल्लू और कल्लू अपनी बात पर अड़े रहे और अन्ततः उन्हे उनका शर्त मानने के लिए मजबूर होना पड़ा।

अब हमें जानकारी मिली है कि बैठक से वापस जाने के बाद से अब तक उनकी पत्नियों की हर फरमाइश पूरी होती जा रही है, हरेक पति अपनी पत्नी के सामने भीगी बिल्ली बना हुआ है। पत्नियों को सुबह उठने पर बिस्तर पर ही चाय मिल जा रही है, किचन में आने पर उन्हें जूठे बर्तनों के स्थान पर मँजे-धुले बर्तन दिखाई देते हैं। साड़ियाँ धुली हुई और प्रेस की हुई मिल रही हैं। अब कहाँ तक बताएँ, आप तो स्वयं समझदार हैं!

हाँ तो, हमारे मुहल्ले की होली में आप सभी लोग भी सादर आमन्त्रित हैं पर इसके लिए लल्लू-कल्लू की शर्त का पालन करना होगा आपको।