tag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post1440190454729851176..comments2024-02-01T17:17:24.739+05:30Comments on धान के देश में!: यह पोस्ट मैं लिख रहा हूँ मन के अधीन होकर किन्तु मन पर नियन्त्रण रखने के लिएAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-57635691718076348212011-05-08T09:30:24.498+05:302011-05-08T09:30:24.498+05:30यह मन बड़ा चलायमान होता है । इसे बस में करना आसान ...यह मन बड़ा चलायमान होता है । इसे बस में करना आसान नहीं । लेकिन प्रयास तो करना ही चाहिए ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-91402282178409286122011-05-07T20:35:58.149+05:302011-05-07T20:35:58.149+05:30मन जीते जग जीतमन जीते जग जीतराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-77668979906007995602011-05-07T17:58:56.771+05:302011-05-07T17:58:56.771+05:30@ ajit gupta said...
ज्योंही हम गीता, रामायण, वे...@ ajit gupta said... <br /><br />ज्योंही हम गीता, रामायण, वेद, उपनिषद जैसे शब्द सुनते या पढ़ते हैं त्योंही हमारे दिमाग में भक्ति, भक्ति मार्ग, भक्ति मार्गी जैसे शब्द कौंध जाते हैं। इस पोस्ट में मैंने गीता के अध्ययन करने पर जोर भक्ति मार्ग में जाने के लिए नहीं दिया है बल्कि उस भारतीय दर्शन को जानने के लिए दिया है जो हमें बताता है कि वास्तव में हम कौन हैं। गीता हमें यह ज्ञान देती है कि हम केवल शरीर या मन मात्र नहीं हैं बल्कि आत्मा हैं जो कि परमात्मा (super power, महाशक्ति, अलौकिक शक्ति) का ही अंश है। स्वयं को जान लेने के बाद मन हम पर नहीं बल्कि हम मन पर नियन्त्रण रख सकते हैं। यह स्वयं अर्थात आत्मा को जान लेना भक्ति से नहीं बल्कि दर्शन से होता है जिसका ज्ञान गीता में है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-70865553685258224142011-05-07T17:44:47.251+05:302011-05-07T17:44:47.251+05:30लेकिन जब मन अच्छी ओर ले जा रहा हो, बेकार की सामाज...लेकिन जब मन अच्छी ओर ले जा रहा हो, बेकार की सामाजिकता के परे तो क्या कहे? वैसे यह सत्य है कि भक्ति मार्गी सबसे सुखी होते हैं, बस प्रभु में लीन। अच्छा हुआ तो प्रभु के जिम्मे और बुरा हुआ तो भी उसी की माया। आपने मेरे विचार को आगे बढ़ाया इसके लिए आपका आभार।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-54436789503281288942011-05-07T15:35:45.264+05:302011-05-07T15:35:45.264+05:30मन के जीते जीत हैमन के जीते जीत हैKajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-79304641190505475612011-05-07T14:33:57.408+05:302011-05-07T14:33:57.408+05:30सही कहा,
दार्शनिक दृष्टि से………
मन ही कमजोर कडी ह...सही कहा,<br /><br />दार्शनिक दृष्टि से………<br /><br />मन ही कमजोर कडी है जो हमारे आत्मिक उत्थान को रोकती है।<br /><br />और मन की गुलामी ही पतन का मर्ग प्रसस्त करती है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-14667963839079013952011-05-07T14:12:43.417+05:302011-05-07T14:12:43.417+05:30gyanranjan hua gurudev.gyanranjan hua gurudev.ब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-48753019188939670162011-05-07T14:10:49.602+05:302011-05-07T14:10:49.602+05:30बड़ा कठिन है बस में करना।बड़ा कठिन है बस में करना।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com