tag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post5529463638209202153..comments2024-02-01T17:17:24.739+05:30Comments on धान के देश में!: कहाँ गईं वो घड़ों-सुराहियों की दूकानेंAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-2338144122303675472010-05-03T16:46:54.968+05:302010-05-03T16:46:54.968+05:30हम गर्मी में मटके का पानी और ठण्ड में ताबे के घड़े...हम गर्मी में मटके का पानी और ठण्ड में ताबे के घड़े का ही पानी पीते है |और हमारे शहर इंदौर में खूब तरह तरह के मिटटी के घड़े और सुराही मिलते है |हाँ ये बात जरुर है की होटलों और रेलवे स्टेशनों बस स्टेशनों पार बोतल का पानी और पाउच का पानी ही बिकता है |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-24905611020854645292010-04-20T07:44:19.650+05:302010-04-20T07:44:19.650+05:30आधुनिकरण ने बहुत से चीज़ों को बस अब यादें बना दिया ...आधुनिकरण ने बहुत से चीज़ों को बस अब यादें बना दिया हैAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-8620073989007901162010-04-20T07:37:56.961+05:302010-04-20T07:37:56.961+05:30हम तो वर्ष भर घड़े और सुराही के पानी का प्रयोग ही क...हम तो वर्ष भर घड़े और सुराही के पानी का प्रयोग ही करते हैं ....फ्रिज का पानी ज्यादातर मेहमानों के ही काम आता है ...<br />वैशाख में जल से भरे घड़े का दान किये जाने की प्रथा होने के कारण यहाँ तो काफी दुकाने मिल जाती है ...लगभग हर नुक्कड़ पर ...वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/10839893825216031973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-15745872953265509552010-04-20T07:26:03.050+05:302010-04-20T07:26:03.050+05:30अवधिया जी,
आपकी पोस्ट पढ़ कर पुरानी फिल्म दो बूंद ...अवधिया जी,<br />आपकी पोस्ट पढ़ कर पुरानी फिल्म दो बूंद पानी याद आ गई और उसका एक गीत ज़ेहन में गूंजने लगा...<br /><br />पीतल की मोरी घाघरी, दिल्ली से मोल मंगाई...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-77778746532618054062010-04-19T20:23:45.407+05:302010-04-19T20:23:45.407+05:30सब वक्त वक्त की बात है।
सुराई और घड़े की खुशबू तो ह...सब वक्त वक्त की बात है।<br />सुराई और घड़े की खुशबू तो हमें भी याद है ।<br />लेकिन क्या करें अब आर ओ का ज़माना है ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-88727869725282252932010-04-19T17:26:45.816+05:302010-04-19T17:26:45.816+05:30हम तो घड़े का शितल जल पीते हैं.
और यह रही इस विषय...हम तो घड़े का शितल जल पीते हैं. <br /><br />और यह रही इस विषय पर हमारी पोस्ट: मटका बनाम मशीन<br /><br />http://www.tarakash.com/joglikhi/?p=1108संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-36790878754498295222010-04-19T16:40:29.039+05:302010-04-19T16:40:29.039+05:30बदलते समय के साथ नई जरूरतें पैदा हुई हैं और पुरानी...बदलते समय के साथ नई जरूरतें पैदा हुई हैं और पुरानी कम हुई हैं। अब घड़े सुराही कम बिकते हैं तो गमले बहुत बिकते हैं। घड़ा तो हर घर में एक या दो ही होते थे किन्तु गमले तो बहुत सारे होते हैं।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-91964995088793070042010-04-19T16:29:46.361+05:302010-04-19T16:29:46.361+05:30प्याऊ का जमाना गया
घड़े तो इतिहास की बाते हो गयी
मु...प्याऊ का जमाना गया<br />घड़े तो इतिहास की बाते हो गयी<br />मुझे याद है जब हम ट्रेन की यात्रा पर निकलते थे तो सुन्दर सुराही लेकर चलते थे. आज तो बस ---M VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-56361712160881858622010-04-19T15:48:31.024+05:302010-04-19T15:48:31.024+05:30गनीमत है कि अभी भी भिलाई के हर बड़े चौराहे के पास ...गनीमत है कि अभी भी भिलाई के हर बड़े चौराहे के पास सैकड़ों मटकों सुराही का ढ़ेर लगा हुआ है, लगभग हर साप्ताहिक बाज़ार और नज़दीक की सब्ज़ी मंडी में तो बारहों महीने घड़े मिल जाते हैं, स्थानीय भी और बाहरी शहरों के भी।<br /><br />वैसे बचपन के दिनों में रेल का सफर करते हुए कैनवास का बना हुआ बैग 'छागल' और उसमें भरे ठंडे पानी की याद अक्सर आती है।<br /><br />घड़ों, सुराहियों का पानी ही पिया जाता है, पिलाया जाता है हमारे घर में। फ्रिज़ के पानी को कोई तवज़्ज़ो नहीं<br /><br />अनुनाद जी की बात से भी सहमत हूँAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-3291042855942166982010-04-19T15:48:09.063+05:302010-04-19T15:48:09.063+05:30बहुत सही कहा आपने. जो प्यास घड़े के पानी से बुझती ह...बहुत सही कहा आपने. जो प्यास घड़े के पानी से बुझती है वोह फ्रीज़ या कोल्ड ड्रिंक से नहीं. हम तो कोशिश करते हैं की घर पे घड़े का पानी ही पिया जाए.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14630411796468046879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-91836919094726170412010-04-19T13:43:31.112+05:302010-04-19T13:43:31.112+05:30अवधिया जी आप माने या ना माने मेरा मन कई बार हुआ कि...अवधिया जी आप माने या ना माने मेरा मन कई बार हुआ कि भारत से आते समय हम एक घडा साथ मै ले आये, लेकिन मुझे कही कोई दुकान नही दिखी,बाकी भारत मै पानी बिकता नही, बल्कि लोग पानी बेचने के नाम से लूटते है, गंदा पानी बोतलो ओर थेलियो मै भर कर, हमारे यहां ०,१९ पैसो मै दो लिटर की बोतल मिलती है, ओर नल का पानी भी पीने योग्या है, हम ने घर मै कोई फ़िलटर नही लगाया ओर नल का पानी ही पीते है.<br />प्याऊ जो भी लगवाये गा, वो पानी की उचितता पर भी ध्यान देगा.<br />बहुत सुंदर लेख लिखा आप ने.<br />धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-16042142401465403642010-04-19T12:13:07.561+05:302010-04-19T12:13:07.561+05:30हम तो कल ही खोज बीन कर एक धड़ा ले आये हैं जो स्वाद...हम तो कल ही खोज बीन कर एक धड़ा ले आये हैं जो स्वाद इसके पानी को पीने में है वह फ्रिज के पानी में कहाँ .गर्मी शुरू होते ही इस पानी की हूक शुरू हो जाती है ...:)रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-42721385610165122832010-04-19T11:48:47.782+05:302010-04-19T11:48:47.782+05:30बचपन की याद आती है, जब केवड़े की सुगन्ध वाला, एकदम...बचपन की याद आती है, जब केवड़े की सुगन्ध वाला, एकदम ठण्डा पानी प्याउ पर मिलता था। बस पीकर तृप्त हो जाते थे। दिनों के फेर हैं और क्या?अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-55861128348055647222010-04-19T11:11:24.177+05:302010-04-19T11:11:24.177+05:30सर, मैं तो ब्लोग्वानी पे ऐसे ही कुछ देख रहा था तो ...सर, मैं तो ब्लोग्वानी पे ऐसे ही कुछ देख रहा था तो आपका ये पोस्ट का लिंक मिल गया...मुझे भी घड़ों और सुराहियों का पानी पीना पसंद है .. उनका सोंधा और मनभावन पानी का स्वाद तो बड़ा अच्छा लगता ही है..आपने सही कहा,आज के ज़माने में ये विलुप्त होती जा रही हैंabhihttps://www.blogger.com/profile/12954157755191063152noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-39968930151743184782010-04-19T10:36:42.654+05:302010-04-19T10:36:42.654+05:30सटीक पोस्ट सच है हम भारतीय संस्कृति को छोड़कर नई ...सटीक पोस्ट सच है हम भारतीय संस्कृति को छोड़कर नई संस्कृति को अपनाने लगे हैं ..आभारसमयचक्रhttps://www.blogger.com/profile/05186719974225650425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-29332965970972443512010-04-19T10:26:44.935+05:302010-04-19T10:26:44.935+05:30वैसे रिपोर्ट तो यह भी है कि बोतलबन्ध पानी भी गन्दा...वैसे रिपोर्ट तो यह भी है कि बोतलबन्ध पानी भी गन्दा हो सकता है। वह साधारण जल से कई मामलों में हीन होता है।<br /><br />अब बात प्याऊ की। मुझे भी नहीं लगता कि ये गन्दा जल पिलायेंगे। दूसरी बात जनसामान्य को इनका पानी पीने से कोई समस्या नहीं होती। उनका इम्म्यून तन्त्र इससे काफी उपर है। महानगरों के लोग तो एक्वागार्ड और कौन-कौन से गार्ड का 'शुद्ध' पानी पीते हैं और कोई छींक भी दे तो बीमार पड़ जाते हैं।अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-62727885278731415472010-04-19T10:13:19.099+05:302010-04-19T10:13:19.099+05:30@ पी.सी.गोदियाल
"आज बहले ही कोई प्याऊ लगा के...@ पी.सी.गोदियाल<br /><br /><b>"आज बहले ही कोई प्याऊ लगा के बैठा हो , लेकिन, पानी पीने से पहले उसकी स्वच्छता के मामले में आपको दो बार सोचना पडेगा!"</b><br /><br />गोदियाल जी, कम से कम मुझे तो नहीं लगता कि प्याऊ खोलने वाला व्यक्ति भी अस्वच्छ पानी पिला सकता है क्योंकि प्याऊ किसी मजबूरी से नहीं बल्कि स्वेच्छा से ही लगाया जाता है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-13205179332945552002010-04-19T10:07:25.127+05:302010-04-19T10:07:25.127+05:30यह सही है की पुरानी धरोहरे, संस्कृति , आत्मीयता सभ...यह सही है की पुरानी धरोहरे, संस्कृति , आत्मीयता सभी कुछ शनै: शनै खत्म होती जा रही है, मगर साथ ही हमें यह भी देखना होगा कि वक्त के हिसाब से किस चीच की अहमियत कितनी है ! आज बहले ही कोई प्याऊ लगा के बैठा हो , लेकिन, पानी पीने से पहले उसकी स्वच्छता के मामले में आपको दो बार सोचना पडेगा ! <br /><br />हां, रही बातपानी के बंद बोतलों और प्लास्टिक के पैकेटों की तो अवधिया साहब कभी-कभार ये बंद पानी भी शाम को दिन भर के थके हारे घर लौटते मुसाफिर को काफी राहत पहुंचाते है :)पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.com