tag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post5983057199678989557..comments2024-02-01T17:17:24.739+05:30Comments on धान के देश में!: भलाई इसी में है कि हम अपने ज्ञान के लिए विदेशियों पर ही आश्रित रहेंAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-78634357139648515732011-01-21T17:03:59.160+05:302011-01-21T17:03:59.160+05:30mansik taur par aaj bhi gulaam hi hai hum ..jab t...mansik taur par aaj bhi gulaam hi hai hum ..jab tak man se swdesh or swdeshi ko swikar nahi karenge tab tak ye gulami se aazadi nahi milega ..निर्झर'नीरhttps://www.blogger.com/profile/16846440327325263080noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-35562828575014119552011-01-15T20:42:24.325+05:302011-01-15T20:42:24.325+05:30yah sab bat karana aaj ke yug me sampradayikata ka...yah sab bat karana aaj ke yug me sampradayikata ka nishani hai aaj ke sabhy kahe jane wale logo ki soch hai kya kah sakate hai ?lokatantr jindabad ..!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/12874930868572823189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-10130225445207714502011-01-15T16:37:33.434+05:302011-01-15T16:37:33.434+05:30हमे अपने बुजुगो की बाते एक पागपन सी लगती हे, इन गो...हमे अपने बुजुगो की बाते एक पागपन सी लगती हे, इन गोरो की गालियां भी हमे लुभाती हे, बस यही फ़र्क के विदेशी शिक्षा ओर अपने वेद पुराणो मे फ़र्क करने वालो के लिये... काश हम अपनी शिक्षा पद्धति को समझतेराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-29169041456545310792011-01-15T12:22:33.214+05:302011-01-15T12:22:33.214+05:30@ Rahul Singh
वही तो मैं भी पूछ रहा हूँ राहुल जी ...@ Rahul Singh<br /><br />वही तो मैं भी पूछ रहा हूँ राहुल जी कि आर्यों के इण्डो-यूरोपियन बोली बोलने वाले के, घुड़सवारी करने वाले के तथा यूरेशिया के सूखे घास के मैदान में रहने वाले खानाबदोश होने के, सिन्धु घाटी की नगरीय सभ्यता पर आक्रमण कर के उसका विनाश करने के तथा आदि आदि इत्यादि के कौन से वस्तुगत प्रमाण हैं?Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-8229072889168359312011-01-15T12:06:35.107+05:302011-01-15T12:06:35.107+05:30इतिहास, विशेष कर पुरातत्व के लिए, वस्तुगत प्रमाण...इतिहास, विशेष कर पुरातत्व के लिए, वस्तुगत प्रमाण अधिक विश्वसनीय माने जाते हैं, बनिस्बत साहित्यिक प्रमाणों के.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-19272064451343838302011-01-15T11:34:28.041+05:302011-01-15T11:34:28.041+05:30हम अपना सिर कुल्हाड़ी में मारने में दक्ष हैं..हम अपना सिर कुल्हाड़ी में मारने में दक्ष हैं..भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-60282544006703883112011-01-15T11:26:29.586+05:302011-01-15T11:26:29.586+05:30विदेशीयों नें योजनापूर्वक ही हमारे इतिहास को विकृत...विदेशीयों नें योजनापूर्वक ही हमारे इतिहास को विकृत किया है। और हम उस विकृत इतिहास को स्वीकृत कर रहे है। पहले आर्य को जाति सिद्ध कर दिया, जबकि वह सम्मान सूचक शब्द था, फ़िर उसे युरोपीयन मूल से जोड दिया, ताकि युरोपीयन खानाबदोशी को भी श्रेष्ठ सभ्य साबित किया जाय। फ़िर अन्य सभ्यताओ को नष्ट करने वाला सिद्ध कर दिया, ताकि हम पौराणिक सफल श्रेष्ठ सभ्यता का गौरव न ले सकें।<br /><br />और इस कार्य में हमारे पश्चिमपरस्त जयचंद इतिहासकार सामिल है। जो लगातार हमें तुच्छता का बोध करवाए जा रहे है।<br /><br />समृद्ध विचारधाराएँ होते हुए भी बाहरी देशों की विचारधाराओं का आकृमण निरंतर जारी है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-55596436884114793242011-01-15T11:07:36.865+05:302011-01-15T11:07:36.865+05:30अंग्रेज अपने ध्येय में सफल रहे हैं, हमें अपने इतिह...अंग्रेज अपने ध्येय में सफल रहे हैं, हमें अपने इतिहास तुच्छ लगने लगा है। धिक्कार है हम पर।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-65973242390485096282011-01-15T10:38:17.405+05:302011-01-15T10:38:17.405+05:30सही कहा जी
संस्कृत जानने और पढने वालों की उपेक्ष...सही कहा जी <br /><br />संस्कृत जानने और पढने वालों की उपेक्षा शिक्षा नीति की ही देन है। <br />संस्कृत भाषा को समुचित आदर ना मिलने के कारण ही हमें विदेशियों पर आश्रित होना पड रहा है।<br /><br />प्रणामअन्तर सोहिलhttps://www.blogger.com/profile/06744973625395179353noreply@blogger.com