Saturday, November 8, 2008

लिख ले बेटा जो कुछ भी लिखना है! पर कोई पढ़ेगा तब ना?

बहुत दिन हो गये कुछ लिखे हुये। सोचा कुछ लिख लिया जाये। पर सूझ नहीं रहा था कि क्या लिखूँ। भीतर से आवाज आ रही थी कि लिख ले बेटा जो कुछ भी लिखना है! पर कोई पढ़ेगा तब ना?

मैने भी आवाज देने वाले से पूछा, "कोई क्यों नहीं पढ़ेगा?"

"तू अच्छी तरह से जानता है कि हर कोई सिर्फ अपनी पढ़वाना चाहता है, दूसरों की पढ़ना नहीं। तू ही दूसरों को कब कब पढ़ता है?"

"ऐसे में हिन्दी आगे कैसे बढ़ेगी?"

"तू क्यों फिकर कर रहा है? क्या तूने ठेका ले लिया है हिन्दी को आगे बढ़ाने का? तू तो बस ये सोच कि लोग तुझे कैसे पढ़ेंगे, छोड़ हिन्दी-विन्दी की फिकर।"

"अच्छा तो यही बता दो कि लोग मुझे पढ़ें इसके लिये मैं क्या करूँ?"

"ये तो तेरी समस्या है, इसे तू ही सुलझा। अपुन को नहीं पता कि लोग तुझे कैसे पढ़ेंगे।"

"अरे कुछ तो बता।"

कोई जवाब नहीं....

"बता भी ना यार।"

फिर वही चुप्पी ....

फिर हमने भी सोच लिया कि लिया कि लिखेंगे जरूर पर किसी को पढ़वाने के लिये नहीं, अपनी संतुष्टि के लिये। आखिर तुलसीदास जी ने भी तो "स्वांतः सुखाय" लिखा था, किसी को पढ़वाने के लिये नहीं। तो हमें भी क्या उनका अनुसरण नहीं करना चाहिये?

12 comments:

  1. माफ किजियेगा.. आपके स्वांत सुखाय में खलल डालने आ गया.. :)
    वैसे बड़े दिनों बाद दिखे हैं? सब कुशल मंगल तो है ना?

    ReplyDelete
  2. बने बोले हस भाई. अब चलिए लिखिए भी हम इंतज़ार करते हैं. आभार.
    http://mallar.wordpress.com

    ReplyDelete
  3. फिर हमने भी सोच लिया कि लिया कि लिखेंगे जरूर पर किसी को पढ़वाने के लिये नहीं, अपनी संतुष्टि के लिये।
    " ya very well said, what ever we write it is for our own self satisfaction..... if some one reads that is additional bonus to us , so keep it up with full spirit.."

    Regards

    ReplyDelete
  4. अवधिया जी आप इन दिनों नेट में काफी कार्य किये हैं मैंनें वाल्‍मीकि रामायण और गठजोड की प्रगति को भी देखा है अन्‍य नेट साइटों पर भी आपकी उपस्थिति को देखकर प्रसन्‍नता होती है ।

    आभार ।

    ReplyDelete
  5. आखिर तुलसीदास जी ने भी तो "स्वांतः सुखाय" लिखा था, किसी को पढ़वाने के लिये नहीं। तो हमें भी क्या उनका अनुसरण नहीं करना चाहिये?
    सही है।

    ReplyDelete
  6. अरे....झाँक लिया हमने भी....अब आपने मना किया तब भी पढ़ लिया ..क्या करे कंट्रोल नही होता !

    ReplyDelete
  7. हम तो जबरिया पढ़ब!!

    :)

    कहाँ गायब हैं इतने दिन से??

    लिखिये लिखिये!! शुभकामनाऐं.

    ReplyDelete
  8. सभी ब्लागर की यह दुविधा होती है की क्या लिखे. बस ठान ले लिखते रहे. शुभकामनाओ के साथ .

    ReplyDelete
  9. सही कहा, असली पठनीय लेखन स्वान्त: सुखाय वाला ही होता है!
    और तुलसी हैं ही रोल माडल के लिये!

    ReplyDelete
  10. "स्वांतः सुखाय" का संदेश मिला आपसे ! बहुत शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  11. जी के अवध में कुछ भी लिख लो
    खोल के लिफाफा खुद ही पढ़ लो

    ReplyDelete