चुनाव की बात चली है तो ज्ञानदत्त जी की बात याद आ गई जिसे कि उन्होंने फेसबुक में ऐसे लिखा हैः
कल यहां चुनाव है और मैं तय नहीं हूं कि वोट दिया जाय या नहीं। केण्डीडेट कोई खरा नहीं लगता। संसद की स्टेबिलिटी के लिये मुख्य राष्ट्रीय दलों में एक को चुनने का विकल्प है। यह भी मन में आता है कि वोट न दे कर आगे संसद में होने जा रही जूतमपैजार से अपने को यह कह कर अलग कर सकूंगा कि इन्हें चुनने में मेरा कोई हाथ नहीं! :-)वास्तव में क्या किया जाना चाहिये? वोट न देने से लगता है कि हम अपने राष्ट्रीय कर्तव्य से मुख मोड़ रहे हैं और यदि वोट दें तो अक्षम केण्डीडेट को देना मजबूरी हो जाती है। इसीलिये मैंने फेस बुक में ज्ञानदत्त जी को टिप्पणी की है किः
मेरा विचार है कि मतपत्र में मतदान के लिये एक विकल्प यह भी होना चाहिये "इनमें से कोई नहीं"।आप लोगों का क्या विचार है?
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अवधिया जी नमस्कार , हमारे देश के सरकार तो कहती है की महंगाई की दर कुछ दशमलव अंको में है ?
ReplyDeleteआम आदमी की महंगाई और सरकार की महंगाई अलग अलग होती है इसलिए सरकार को आम आदमी की महंगाई का पता नहीं चलता .
चुनाव के फण्ड से लेनादेना है मंहगाई का? शायद।
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