सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि टिप्पणी है क्या चीज? किसी के विचार को जानने के बाद प्रतिक्रियास्वरूप उत्पन्न अपने विचारों से अन्य लोगों को अवगत कराना ही टिप्पणी है।
किसी भी लेख को पढ़ने के तत्काल बाद ही हमारे मन में भी उस लेख के विषयवस्तु के सम्बन्धित कई प्रकार के विचार उठने लगते हैं और हम चाहने लगते हैं कि अपने मन में उठने वाले इन विचारों से पढ़े गए लेख के लेखक के साथ ही साथ अन्य लोगों को भी अवगत कराएँ। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। और हम अपने उन विचारों से टिप्पणी के द्वारा ही अन्य लोगों को अवगत कराते हैं।
पत्र-पत्रिकाओं में टिप्पणी करने की सुविधा उपलब्ध नहीं होती क्योंकि पत्र-पत्रिकाएँ एकतरफा संवाद वाली माध्यम है किन्तु ब्लॉग में हम इस सुविधा का अवश्य इस्तेमाल कर सकते हैं। ब्लॉग की सबसे बड़ी विशेषता है इसका दोतरफा संवाद वाला माध्यम होना।
5 टिप्स टिप्पणी के
1. अपनी टिप्पणी में मुख्य लेख की विषयवस्तु से सम्बन्धित विचारों का ही उल्लेख करें, विषयान्तर न होने दें।
2. अपनी टिप्पणी में सदैव शालीनता का ध्यान रखें। अभद्र भाषा का प्रयोग कदापि न करें।
3. अपनी टिप्पणी में कभी भी व्यक्तिगत आक्षेप को स्थान न दे।
4. ऐसी टिप्पणी न करें जिससे कि किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचे।
5. हमेशा ध्यान रखें कि टिप्पणी आप किसी अन्य के ब्लॉग में कर रहे हैं अतः टिप्पणी के माध्यम से कभी भी गलत बातों का प्रचार न करें। वैसे टिप्पणी के माध्यम से प्रचार को प्रायः बुरा नहीं समझा जाता किन्तु यदि आपका प्रचार ब्लॉग के मालिक को यदि पसंद नहीं आता तो वह आपकी टिप्पणी को मिटा सकता है।
चलते-चलते
"बीएसपी (बी एस पाबला) एंड केडीएस (खुशदीप सहगल) फ्री स्माइल्स कंपनी" के फ्लॉप हो जाने पर खुशदीप सहगल जी ने अपनी स्लॉग ओवर की दुकान खोल ली। एक स्लॉग ओवर सुनाने की फीस मात्र रु.100.00 ! हँसाने की पूरी पूरी गारंटी!! हँसी न आने पर रु.100.00 के बदले में रु.10,000.00 वापस!!!
लोग रु.100.00 के बदले में रु.10,000.00 पाने की आस लिए आते थे पर खुशदीप जी ने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेली थी, ऐसे ऐसे स्लॉग ओवर्स सुनाते कि सुनने वाला हँसने के लिए मजबूर हो जाता था। दुकान जोर-शोर से चल निकली।
एक दिन खुशदीप जी के पास एक खूँसट बुड्ढा (जी.के. अवधिया टाइप का) ग्राहक आया। खुशदीप जी ने अपनी फीस वसूल करने के बाद एक जोरदार स्लॉग ओवर बुड्ढे को सुनाया। पर ये क्या? आश्चर्य! बुड्ढा हँसा ही नहीं। मायूस होकर खुशदीप जी ने बुड्ढे को रु.10,000.00 दे दिए।
दूसरे रोज शाम को खुशदीप जी किसी काम से घर से बाहर निकले तो रास्ते में एक शवयात्रा दिखी। पता चला कि मरने वाला कल वाला बुड्ढा ही है।
खुशदीप जी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा, "अरे कल शाम को तो ये अच्छे भले थे। कैसे मर गए?"
जवाब मिला, "अजी साहब, कुछ मत पूछिए, कुछ देर पहले इन्हें बड़ा अजीब सा दौरा पड़ा। ताली पीट-पीट कर जोर जोर से कहते थे 'अब समझ में आया', 'अब समझ में आया' और हँसते जाते थे। बस हँसते हँसते ही इनके प्राण निकल गए।"
वाह वाह जी नहले पर दहला हो गया। टिप्पणी पर नेक सलाह के लिये धन्यवाद्
ReplyDeletetippani tips bahut achhi rahi aur joke behtarin:) waah
ReplyDeleteहमें जान का बौत मोह है।
ReplyDeleteहँसते हँसते प्राण न निकले इसीलिए चुटकुलों से परहेज करते हैं।
टिप्पणियों और लेखों की "स्वच्छता" कैसे उपजाई जाय और कैसे बनाई रखी जाय, इस पर एक लेख लिखें न !
प्राण निकले नहीं
ReplyDelete10 हजार में
समा गए।
इनमें से एक भी
ReplyDeleteटिप वेटर को देंगे
तो क्या टिप में
चलेगा, दौड़ेगा
या फिर रूकेगा
चलते-चलते बढ़िया लगा
ReplyDeleteअच्छी सलाह दी टिप्पणी विषयक.
ReplyDeleteक्या बात है , महाराज !!
ReplyDeleteबेहद उपयोगी राय और बेहद मजेदार लतीफा !
अरे अभी उस की जेब मै रु.10,000.00 पडे होगे जल्द से निकालो, भाई वो तो अपने ही है ना, बुड्डा देर से हंसा क्या करे, ओर हंसा भी ऎसा कि
ReplyDeleteबाकी आप की राय सर आंखो पर, लेकिन आप को चाहने वाले अभी तक नही टपके:)
टिप्पणी टिप्स पढ़कर अच्छा लगा ।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
अवधिया जी,
अच्छी सीख,हम नयों के मार्गदर्शन हेतु धन्यवाद।
टिप्पणी तो लेख से संबंधित और शालीन ही होनी चाहिए। आपके सुझावों पर अगर ब्लाग बिरादरी अमल करे तो सारे विवादों का अंत होना संभव है। आपके अमूल्य सुझावों का सभी लाभ उठाए ऐसी कामना है।
ReplyDeleteसलाह उचीत है.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअवधिया जी, उस खूसट चचा से ये तो कह देते कि जाते-जाते अपनी सारी प्रापर्टी मेरे नाम कर जाता...क्योंकि आगे से कोई फिर खूसट मेरे साथ चाल चले तो दस हजार-दस हज़ार देने की स्थिति में तो मैं रहूं...रही बात उस खूसट के थालियां पीट-पीट कर हंसने की तो उसके कान में पाबलाजी ने कुछ कह दिया था...क्या कहा था, यही पाबलाजी से मैं जानने की कोशिश कर रहा हूं...अभी तक उन्होंने मुझे भी नहीं बताया...आप खुद ही पाबलाजी से पूछ कर देख लीजिए...वैसे अवधिया जी की पोस्ट पढ़ने वाले भी अंदाज़ लगाएं कि पाबलाजी ने खूसट के कान में क्या कहा था...मैं भी शिद्दत के साथ जानने की कोशिश कर रहा हूं...
ReplyDelete@ खुशदीप सहगल
ReplyDeleteवो खूँसट बुड्ढा तो पहले ही अपनी प्रापर्टी बेच बाच कर सारे रुपये दारू पीने में उड़ा चुका था। प्रापर्टी के नाम पर सिर्फ उसकी बुढ़िया बची है। कहिए भेजूँ आपके पास?
aaadarniya awadhiya ji..........
ReplyDeletetippani tips padh ke achcha laga...
जानकारी अच्छी आभार आपका
ReplyDeleteअवधिया जी, मान गए...आपने सिर के बाल ऐसे ही धूप में सफेद नहीं किए हैं...दस हज़ार पहले झड़क लिए अब मैडम के लिए भी खर्चे से बचने का लाइफटाइम जुगाड़ करना चाहते हैं...
ReplyDeleteरही बात पाबलाजी ने खूसट के कान में क्या कहा था, मैंने बड़े विश्वसनीय सूत्रों से पता लगाया है...
पाबलाजी ने खूसट से कहा था कि जानना चाहते हो कंपनी के नाम वाले टंटे में इंस्पेक्टर ने लॉकअप में ले जाकर हमारी क्या खातिर की थी...इंसपेक्टर ने हम दोनों से अलग-अलग बुलाकर कहा कि अब तुम मुझे कोई नज़राना देकर खुश करोगे तभी तुम्हारी जान इस टंटे से बच सकती है...पाबलाजी और मुझे नज़राना लाने के लिए एक घंटे को रिहा कर दिया गया...पहले पाबलाजी ने इंस्पेक्टर को नज़राना दिया...नज़राना देखकर खुश होने की बजाय इंस्पेक्टर का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया...उसने मातहत पुलिस वालों से कहा ये नज़राना पाबलाजी के मुंह में ही डाल दो...दरअसल पाबलाजी ने इंस्पेक्टर को एक नींबू दिया था...ये सज़ा मिलने के बाद भी पाबलाजी ठहाके मार-मार कर हंसने लगे...इंस्पेक्टर ने ताज्जुब जताया कि एक तो सज़ा मिली, ऊपर से गला फाड़-फाड़ कर हंस रहे हो....पाबलाजी का जवाब था...थाने के बाहर खुशदीप नज़राने में तरबूज लेकर अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा है...
tube lite hai bahi jalte jalte hi jalti hai....
ReplyDelete;)
aapki tippani ke liye diye gaye nirdesh behterin the....
...vaise main in baaton ka vishesh taur par khyal rakhta hoon...
haan par agar koi post pasand nahi aati to bina poorvagrah ke tipyata hoon.
बहुत वाजिब!
ReplyDeleteटिप्पणियों में ईमानदारी बहुत जरूरी है।