माँ के दिनों में तो लोग शायद डर के मारे नहीं पीते....लेकिन पिता जी के दिनों(शिवरात्री,जन्माष्टमी आदि)में ये डर कहाँ चला जाता है........लगता है कि शायद बाप की बजाय माँ का डर अधिक हैं:)
हमारी कूल देवी के मन्दीर (राजस्थान)में दो मूर्तियाँ है. एक दारू पीती है. तो जिन्हें पीनी होती है एक बोतल चढ़ा आता है. वैसे तो लोकलाज के मारे पी नहीं सकते :)
MERE YAHAA BHEE
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा ये देवी की शक्ति है नवरात्र की शुभकामनायें
ReplyDeleteअजी नही, लोग डरते है इस लिये नही पीते,कही अनिष्ट ना हो जाये, वरना क्या देवी मां के सिर्फ़ नो दिन ही है साल मै बाकी दिनो कहां रहती है??
ReplyDeleteमाँ के दिनों में तो लोग शायद डर के मारे नहीं पीते....लेकिन पिता जी के दिनों(शिवरात्री,जन्माष्टमी आदि)में ये डर कहाँ चला जाता है........लगता है कि शायद बाप की बजाय माँ का डर अधिक हैं:)
ReplyDeleteधार्मिक बातों का भय और प्रशासन के भय का अंतर है जी. प्रशासन वाला मैनेजेबल है न!!
ReplyDeleteहमारी कूल देवी के मन्दीर (राजस्थान)में दो मूर्तियाँ है. एक दारू पीती है. तो जिन्हें पीनी होती है एक बोतल चढ़ा आता है. वैसे तो लोकलाज के मारे पी नहीं सकते :)
ReplyDelete