Wednesday, October 7, 2009

हम तुम्हें गाली दें, तुम हमारे मुँह पे थूको

खबरदार! खबरदार!! खबरदार!!!

अभी तक अगर सावधान नहीं हुए हो तो अब हो जाओ।

हिन्दी ब्लोग जगत में एक खतरनाक पागल खुल्ला घूम रहा है।

इस पागल को अपने मुँह पर थुकवाने का शौक है इसलिए वह लोगों को गाली देते फिरता है। उसे पता है कि कोई यूँ ही तो उसके मुँह पर थूकेगा नहीं, हाँ लोग गाली खायेंगे तो जरूर उसके मुँह पर थूकेंगे। इसीलिए उसने सिद्धान्त बना रखा है "हम तुम्हें गाली दें, तुम हमारे मुँह पे थूको"

कल तो यह खतरनाक पागल "दरबार" में जा पहुँचा था और वहाँ उसने 13 बार गाली दी थी। 13 की इस संख्या से उस पागल का एकदम नजदीकी रिश्ता है। 13 को उसका जन्म हुआ था, 13 बार पागल हुआ है, 13 टिप्पणी देख कर इसका पागलपन चरमसीमा में पहुँच जाता है, खुद भी अपनी एक ही टिप्पणी को 13 बार टिपियाता है।

टिप्पणी मॉडरेशन सक्षम देखकर तो इसका पागलपन एकदम बढ़ जाता है और फिर इसे सिर्फ दूसरों को 'रौंद डालने' का ही विचार आता है। दूसरों को रौंदने की कल्पना कर कर के अपनी हीन भावना को बढ़ाता है। हमारे बारे में तो यह हमेशा यही कहता है कि "खूँसट बुड्ढे, मैं तेरा खून पी जाउँगा"।

पर अब तो लोग उसकी गाली को भी हँसकर टाल देते हैं और उसके मुँह पर बिल्कुल भी नहीं थूकते। बहुत मायूस है बेचारा।

वैसे यह सिद्धांत कि "हमे तुम्हें गाली दें, तुम हमारे मुँह पे थूको" कोई नया सिद्धान्त नहीं है। यह तो बहुत पुराना है। इस सिद्धान्त का जन्म हमारे पड़ोसी देश के जन्म के साथ ही हुआ था और वहाँ की सरकार शुरू से ही अपने इसी सिद्धान्त के अनुसार हमारे देश को गाली देती थी। जब जब भी उस देश की भूखी नंगी जनता का ध्यान अपनी बेबसी की तरफ जाता था तो वहाँ की सरकार अपने सिद्धान्त को अमल में लाकर हमारे देश के साथ युद्ध की स्थिति पैदा कर देती थी और वहाँ की जनता का ध्यान अपनी बेबसी से हट कर युद्ध की तरफ चला जाता था। जनता का ध्यान हटने से वहाँ की सरकार मजे के साथ टिकी रह जाती थी। आज भी वो इसी सिद्धान्त का पालन कर रही है।

तो दोस्तों, सावधान हो जाओ और टिप्पणी मॉडरेशन सक्षम कर दो। टिप्पणी मॉडरेश सक्षम करने का अर्थ यह नहीं होता कि आप 'अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता' का हनन कर रहे हैं। नहीं, आप तो मात्र किसी पागल के प्रलाप का ही नाश कर रहे हैं क्योंकि पागल का प्रलाप को किसी भी मायने में अभिव्यक्ति की संज्ञा नहीं दी जा सकती। 'ब्लोगर बाबा' उर्फ 'गूगल महराज' ने यही सोच कर मॉडरेशन बनाया है किः

दुनिया में पागलों की कमी नहीं, एक ढूंढो हजार मिलते हैं।
न ढूंढो तो भी दो चार मिलते हैं।

चलते-चलते

हमारे मुहल्ले में भी एक पागल है पर वो खतरनाक नहीं सीधा सादा पागल है। चुपचाप रहता है किसी को तंग नहीं करता यहाँ तक कि किसी से बात भी नहीं करता। कभी किसी मकान के पाटे पर तो कभी किसी मकान के पाटे पर रात बिताता है। खाने के लिए कुछ दे दो तो खा लेता है और न मिले तो भूखा ही रह जाता है।

पर हमें याने कि महामूरख, गधासूरत, बुड्ढाधिराज जी.के. अवधिया को देखते ही वो खतरनाक हो जाता है। हम दिखे नहीं कि "भाग यहाँ से", "दूर हो जा नजरों से", "खबरदार जो फिर इधर आया" आदि आदि चिल्लाना शुरू कर देता है।

बहुत दिनों तक तो हम डरते रहे। समझ में ही नहीं आया कि आखिर मामला क्या है? आखिर एक बार हिम्मत करके उससे पूछ ही लिया, "भाई मेरे, आखिर तुझे मुझसे इतनी खुन्दक क्यों है?"

जवाब में वो कड़ककर बोला, "एक मुहल्ले में एक ही रहेगा।"

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आपको "और मारो, और मारो,..." भी अवश्य पसंद आएगा। क्लिक करके वहाँ पर "चलते-चलते" को पढ़ें।
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14 comments:

  1. आपके पोस्‍टों को पढने के बाद की बनी गंभीरता 'चलते चलते' पढकर समाप्‍त हो जाती है .. क्‍या सही है ये ?

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  2. ऐसी बात है तो बचना और बचाना होगा ब्लॉगर जगत को ऐसे पागलों से..

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  3. 13 तुझको अर्पण.. क्या लागे है मेरा..

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  4. संगीता जी से सहमत..

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  5. संगीता जी,

    गंभीर बने रहना है या नहीं यह तो पाठकों पर निर्भर करता है।

    वैसे मुझे आपके प्रश्न का तात्पर्य समझ में नहीं आया। समझ नहीं पाया मैं कि क्या कहना चाहती हैं आप?

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  6. सच में चिंता का विषय है यह ।

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  7. अवधिया जी, पागलो का कोई इलाज नहीं !
    वैसे आपने पागलो की बात की तो एक जोक याद आ रहा है, मैं भी सूना देता हूँ :
    एक बार एक हीरो एक पागल खाने घूमने गया, एक पागल के बाड़े के बाहर रुका तो पागल ने घूरते हुए पूछा,
    तू कौन है ?
    हीरो बोला , मैं हीरो हूँ और फिल्मो में काम करता हूँ !
    पागल जोर से हँसा और बोला- मैं भी सुरु में अपने को यही बताता था, बैठ जा चुपचाप किसी कोने पे आराम से, कुछ दिनों बाद सब ठीक हो जाएगा !

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  8. अवधिया जी, हम लोग यहीं तो भूल कर जाते हैं....जिसे आप पागल समझ रहे हैं, वो कोई पागल नहीं बल्कि पागलपन का तो उन्होने सिर्फ एक मुखौटा औढ रखा है...ताकि पागल समझकर कोई उसकी ओर ध्यान न दे..ओर वो चुपचाप अपने काम को अन्जाम देते जाएं(जिसके लिए कि उन्हे भेजा गया है)

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  9. अवधिया जी सही लिखा है आपने ऐसे पागल कुत्तो को भगाने यही एक उपाय है

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  10. अवधिया जी मैं शर्मा जी से सहमत हूँ ...

    चलते चलते भी मजेदार रही .....

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  11. पागलों के मुंह नही लगते अवधिया जी।

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  12. पर इन पागल कुत्तों के पीछे हम हलकान क्यों हो रहे हैं? हम अपने काम से मतलब रखें, वे भॊंक भोंक कर चुप हो जाएंगे:)

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  13. 13 तुझको अर्पण.. क्या लागे है मेरा.
    kush bhai jindabaad

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