लगती थी वो उर्वशी-मेनका,
पर पाया कुछ काल बाद ही
बन गईं वो ही रणचण्डिका।
फूलों से कोमल लगती थी
वो सुशील, सलज्ज, किशोरी,
क्यों बन गई कठोर वज्र सी
मेरे सपनों की वो गोरी।
सोचा था घर को सुखमय करने
गीता और रामायण पढ़ेगी,
पता नहीं था घर में मेरे
वो बाला महाभारत करेगी।
पर उसके हर काम के पीछे
मैं ही केन्द्रित रहता हूँ,
इसीलिए तो भक्त हूँ उसका
नखरे उसके सहता हूँ।
उससे ही तो घर है मेरा
उससे ही है घर की लाली,
मैं ही तो सब कुछ हूँ उसका
वो है मेरी घरवाली।
चलते-चलते
वो स्साला जी.के. अवधिया दारू पीना नहीं छोड़ रहा है
भाई जहाँ पत्नी साथ निभाती है वहीं मित्र भी साथ निभाता है। हमारा भी एक मित्र हमारा साथ आज तक निभा रहा है। आज वो भिलाई में हैं और हम रायपुर में। पर कभी हम दोनों एक साथ भिलाई में रहते थे। रोज एक साथ बार जाते थे और मौज मनाते थे। फिर हमारा ट्रांसफर हो गया और हमको भिलाई छोड़ना पड़ा और वो आज तक भिलाई में हैं।
हमारे भिलाई छोड़ देने के बाद भी दोस्ती निभाने के लिए वो रोज बार जाते रहे। बार वाले जानते थे कि वे दो पैग एक साथ मंगाते थे एक अपने लिए और एक मेरे लिए। फिर एक बार अपने पैग से तो दूसरी बार मेरे पैग से घूँट लगाते थे।
कुछ साल पहले एक दिन वेटर ने मामूल के अनुसार जब उनके लिए दो पैग लगाया तो उन्होंने कहा, "एक पैग वापस ले जाओ।"
आश्चर्य से वेटर ने पूछा, "क्यों साहब?"
मित्र ने बताया, "यार मैंने आज से दारू पीना छोड़ दिया है पर मेरे बार बार कहने के बाद भी वो स्साला जी.के. अवधिया दारू पीना नहीं छोड़ रहा है।"
और दोस्ती निभाने के लिए आज भी वो बार जाकर हमारा पैग पीते हैं।
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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण का अगला पोस्टः
आज अवधिया जी बहुत ही मुखर हो गए...बाप रे बाप....इलाहाबाद नहीं जा पाए ना....:)
ReplyDeletekya baat hain janaab aaj to ghar ki kahani hi kah daali aapne vaise sach kahe to lagta sabhi ka haal likha hain aapne
ReplyDeleteअवधिया जी, मेरी पूरी की पूरी सहानुभूति आपके साथ है ! निभाते रहिये ! आल डा बेस्ट !!!
ReplyDeleteआज तो मेरे को कई गिलास लेके बैठना पड़ेगा,
ReplyDeleteक्योंकि मैने भी छोड़ दी है-दारु, आपके आशीर्वाद से दोस्ती तो निभानी पड़ेगी, एकदम झकास फ़ार्मुला देने के लिए आभार
पर उसके हर काम के पीछे
ReplyDeleteमैं ही केन्द्रित रहता हूँ,
इसीलिए तो भक्त हूँ उसका
नखरे उसके सहता हूँ।
सारे गलत काम खुद करो और दोष भाभी जी पर मड दो, वाह बही अवधिया जी,मान गए !
पीनी तो मैने भी छोड दी है (ये अलग बात है कि कभी शुरू ही नहीं की) पर मुझे पिलाने वाले पिला देते है.
ReplyDelete==
एक कौतूहल क्या आपकी यह कविता आपकी पत्नी (I mean my Bhabhiji) भी पढेंगी क्या?
@ M VERMA
ReplyDelete"एक कौतूहल क्या आपकी यह कविता आपकी पत्नी (I mean my Bhabhiji) भी पढेंगी क्या?"
जरूर पढ़ेंगी भई!
हमारी कौन सी ऐसी बात है जो कि उनसे छुपी हो? फिर ये कविता ही कैसे छुप जायेगी?
hahahahaha...achcha laga bahut...
ReplyDeleteजब बीबी इतनी बलवान ओर गुण कारी मिलेगी को कोन पीनी छोडेगा....लेकिन सिर्फ़ एक पेग? अबधिया जी आप से पुरी हमदर्दी है... आज आप के नाम से पुरी बोतल चलेगी.
ReplyDeleteपूछते हैं सब लोग काहे रणचण्डिका बन जाते हैं
ReplyDeleteअरे पत्नी चंडिका न बने तो पति RUN कर जाते हैं
भौजी से हमरी तो आपको बहुत ही प्रीती है भैया
सीधा-सीधा नहीं कह के अन्योक्ति में बताते हैं ??
आज जान पाए कि आपका एक रूप ये भी है :)
ReplyDeleteक्या दोस्त मिला है भाई...गजब मित्रता निभा रहा है. नमन भेजियेगा मेरा उनको.
ReplyDeleteदोस्ती की है तो निभानी तो पड़ेगी ही !!
ReplyDeleteअच्छा, यह आचमन के पूर्व की कविता है या बाद की?! :)
ReplyDeletesir ji, aap apne us dost ka naam bhi likh dete.
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