अब देखिये ना, आपको कहीं जाना है इसलिये आप अल्मारी खोलते हैं और कपड़ों के अंबार में से झट से एक जोड़ कपड़ा निकाल लेते हैं तैयार होने के लिये। एक पल भी तो नहीं लगा आपको। पर इस एक पल से भी कम समय में आपके दिमाग ने क्या किया? उसने सोचा कि आपको कहाँ जाना है? उस स्थान में कौन लोग होंगे, पुरुष ही पुरुष होंगे या महिलाएँ ही महिलाएँ होंगी या फिर पुरुष और महिलाएँ दोनों ही होंगे? उन लोगों को मेरा कौन सा जोड़ा अधिक प्रभावित करेगा? जहाँ जाना है वहाँ किस रंग के कपड़े फबेंगे? कहने का लब्बोलुआस यह कि जहाँ जाना है वहाँ किस प्रकार के कपड़े में जाना उपयुक्त होगा? ये सब बातें सोच कर और उचित निर्णय ले लेने के बाद आपका दिमाग आपके हाथ को आदेश देता है कि फलाँ जोड़ा निकाल ले। जरा याद करें कि जब आप किसी शादी-ब्याह या बारात में जाते हैं तो आपका हाथ भड़कीले प्रकार का वस्त्र निकालता है और यदि अपने बड़े साहब के पास किसी काम से जाना होता है तो आपका हाथ शोबर टाइप का जोड़ा निकालता है।
ऐसा भी होता है कि राह में चलते-चलते आपको साँप दिख जाता है और आप फौरन रुक जाते हैं? आप तो फौरन रुक गये किन्तु इस फौरन समय में आपकी खोपड़ी ने क्या किया? उसने आपकी आँखों से सन्देश प्राप्त किया क्योंकि आपकी आँखें देख सकती हैं किन्तु पहचान नहीं सकतीं कि क्या चीज है इसलिये जो भी देखा है उसे सन्देश के रूप में आपकी खोपड़ी को भेज देती हैं। तो आपकी खोपड़ी ने आँखों से प्राप्त सन्देश पर विचार किया और निर्णय लिया कि खतरा है। खतरे का आभास होते ही आपके पैरों को सन्देश भेजा कि रुक जाओ।
विचित्र है आपका मस्तिष्क! आप अपने मित्रों से वार्तालाप कर रहे हैं। आप कुछ बोल रहे हैं और कोई मक्खी आकर बैठ जाती है आपके नाक पर। पर आप मक्खी के इस दुस्साहस को भला कैसे सहन कर सकते हैं? आप तो "नाक पर मक्खी नहीं बैठने देने" वाले व्यक्ति हैं! एक तरफ आप मक्खी के दुस्साहस को सहन नहीं करना चाहते तो दूसरी ओर बोलते-बोलते रुकना भी नहीं चाहते। और आपका मस्तिष्क आपकी दोनों इच्छाएँ पूरी कर देता है। आपकी जुबान तो बोलते ही रहती है और हाथ मक्खी को उड़ा देती है। आप दो कार्य एक साथ कर डालते हैं। कैसे? आपका चेतन मस्तिष्क (conscious) आपकी जुबान को बोलने का सन्देश भेजते ही रहती है और आपका अचेतन मस्तिष्क (semi-conscious) आपके हाथ को सन्देश भेज देता है मक्खी उड़ाने के लिये।
अक्सर आपका भेजा खराब भी होता है और आप बरस पड़ते हैं किसी पर। किसी ने आपसे कुछ कहा जिसे आपके कानों ने सुना। कान नहीं जानता कि क्या कहा गया है इसलिये वह सन्देश के रूप में कही गई बात को आपके भेजे तक भेज देता है। भेजा उस सन्देश को समझकर जान जाता है कि आपको कुछ अपशब्द कहा गया है। बस फिर क्या है? तत्काल आपका भेजा खराब हो जाता है। वह आपकी जुबान को सन्देश भेज देता है कि तू भी सामने वाले पर बरस। और अगर भेजा ज्यादा ही खराब हो गया तो आपके हाथों और लातों को सन्देश भेज देता है कि ....
अभी तक तो हम आपके मस्तिष्क याने कि दिमाग याने कि खोपड़ी याने कि भेजे की बात कर रहे थे। चलिये अब कुछ हमारे दिमाग की भी बात कर लेते हैं। हमारा दिमाग तो सिड़ी दिमाग है। हर विषय को जान लेना चाहता है पर एक भी विषय को सही सही नहीं जान पाता। वो कहते हैं ना "जैक ऑफ ऑल एण्ड मास्टर ऑफ नन"! कुछ ऐसा ही है हमारा दिमाग भी। हमें गुस्सा आता है अपनी श्रीमती जी पर और हमारा दिमाग गुस्सा निकालवाता है खुद अपने पर। हमें खाना खाना बंद करवा देता है। अब हमारे न खाने से भला श्रीमती जी को क्या फर्क पड़ता है? नहीं जी, ये हमारा दिमाग बहुत शातिर है, जानता है कि मुझे कुछ तकलीफ होगी तो मेरी श्रीमती जी दुःखी होंगी। चालाकी के साथ अपना गुस्सा उतार लेता है घरवाली को दुःख देकर।
तो कहाँ तक बात करें भाई इस मस्तिष्क याने कि दिमाग याने कि खोपड़ी याने कि भेजे की! और अधिक झेलवायेंगे आपको तो आप हमारे ब्लॉग को बंद कर के भाग जायेंगे। इसलिये बस इतना ही।
चलते-चलते
भेजे के उस दुकान में हर रेंज का भेजा उपलब्ध था। सभी के रेट भी लिखे हुए थे। अलग-अलग भेजों के रेट डेढ़ सौ रुपये से ढाई सौ रुपये प्रति किलो तक अलग-अलग थे। पर एक भेजे का रेट लिखा था एक लाख रुपये प्रति किलो।
हमने दुकानदार से पूछ लिया, "इसका रेट इतना अधिक क्यों है?"
"अरे साहब! ये विवाहित पुरुषों का भेजा है, बड़ी मुश्किल से मिलता है। पति के जीवनकाल में ही पत्नियाँ उनका पूरा भेजा चाट चुकी होती हैं।"
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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का अगला पोस्टः
मानव मस्तिष्क के कुछ रहस्यॊ के विस्तार से जानने के लिये देखे
ReplyDeletehttp://store.discoveryeducation.com/product/show/50485
यु ट्युब पर http://www.youtube.com/watch?v=4RRnGbn9QZo
भेजे पर बढ़िया भेजा है..मैंने भी भेज दिया इसे अपने भेजे में ,,भेजा अब आपको भज रहा है..लग रहा है मेरा भेजा खुश हो रहा है....
ReplyDeleteआज आपकी पोस्ट पढ़कर मेरा भेजा धन्य हो गया।
ReplyDeleteSir, Bhabhi ji se jhagdaa hua kyaa aaj subah-subah ? :)
ReplyDeleteSir, Bhabhi ji se jhagdaa hua kyaa aaj subah-subah ? :)
ReplyDeleteटंकण करते समय कितनी तेजी से संकेत प्रवाहित हो रहे होंगे. उँगलियाँ बेहद सटिकता से चल रही है. वाह! दिमाग...
ReplyDeleteभेजा विश्लेष्ण कर डाला आपने तो :) भेजा शोर बहुत करता है .....तभी कहा गया है :)
ReplyDeleteभेजा पुराण बहुत भाया और चुटकुला उससे भी अधिक शुभकामनायें
ReplyDeleteBheje ke baare mein itna kuch jaankar apna bheja bhi dhanya ho gaya.....
ReplyDeletechalte chalte ke to kahne hi kya....
dhanyawaad
saadar
mahfooz
बढ़िया आलेख .......सच में इंसान के दिमाग की गहराई जान पाना बेहद कठिन है !
ReplyDeleteक्या आप अविवाहित हैं? यदि नहीं तो फिर इतना भेजा कैसे बचा रहा, जो भेजे का विश्लेषण कर डाले। आपकी पत्नी धन्य है, जिसने आपके भेजे को सुरक्षित रखने में आपका सहयोग दिया। आपके आलेख से हमारा भेजा भी जागृत हो गया और उसने कहा कि तुरन्त टिप्पणी करो। अब हम जो भी लिख रहे हैं इसमें हमारा कोई हाथ नहीं है बस सारा भेजे का कमाल है।
ReplyDelete@ Dr. Smt. ajit gupta
ReplyDeleteहैं तो हम विवाहित ही! पर इससे पहले कि हमारी श्रीमती जी हमारा भेजा चाटे, हम ही उनका भेजा चाटना शुरू कर देते हैं। इससे उनका भेजा भन्ना जाता है और वो हमारे पास से उठ कर चली जाती हैं।
ये सब रिफ्लेक्स एक्शन का कमाल है...वैसे अवधिया जी आप तो तज़ुर्बेकार है ज़रा बताएंगे, शादी के बाद भेजा पूरी तरह फ्राई मतलब खत्म हो जाने में कितने साल लगते हैं...
ReplyDeleteजय हिंद...
बहुत अच्छा लिखा आपने, हमेशा लिखते रहे हैं,
ReplyDeleteआज चलते चलते मैं एक खुशी आपके साथ बांटना चाहता था कि मेरा ब्लाग islaminhindi.blogspot.com Rank-3 दिखा रहा है, सबसे पहले आपको बताने आया, मुझे यकीन नही आ पा रहा इतनी कम पोस्ट में यह रूतबा,
आपकी शुभकामनाओं का अभिलाषी
जिस दिन इस भेजे का रहस्य समझ आ गया तो न जाने दुनिया के कितने रहस्यों से पर्दा उठ जाएगा......
ReplyDeleteचलते चलते तो एकदम लाजवाब रहा !!
जी.के. अवधिया हमारा भेजा कितने का बिक जायेगा... जब थोडा रेट बधे तो बताना... वेसे चटा खुब है जी हमारा भेजा
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