हमारे बैंक के प्रशिक्षण केन्द्र में व्यवहार विज्ञान (behavioral science) का सेशन था।
प्रशिक्षक ने आते ही कहा कि देखिये जब कभी भी हमें कुछ आदेश दिया जाता है तो हमें दिये गये आदेश के अनुसार ही काम करना चाहिये न कि अपने हिसाब से। आप लोग क्या आदेश के अनुसार ही काम करते हैं?
हम सभी प्रशिक्षार्थियों का उत्तर था 'जी हाँ'।
इसके पश्चात् प्रशिक्षक महोदय हमें 'टीमवर्क' (teamwork) और 'लीडरशिप' (leadership) के विषय में बताने लगे। जब सेशन समाप्त होने में पन्द्रह-बीस मिनट शेष रह गये तो उन्होंने कहा कि अब हम आप लोगों का व्यवहार विज्ञान से सम्बन्धित एक टेस्ट लेंगे। आपको एक पर्चा दिया जा रहा है और उसमें जैसा लिखा है आपको वैसा ही करना है।
इतना कह कर उन्होंने हम सभी को एक-एक परचा दे दिया गया। परचे में लिखा था -
आपको निम्न लिखित कार्य करने हैं:
1. नीचे दिये गये पैराग्राफ को पढ़ें।
2. पैराग्राफ को पढ़ने के पश्चात् उसके नीचे दिये गये साठ प्रश्नों को पढ़ें।
3. सारे प्रश्नों को पढ़ लेने के बाद उन प्रश्नों का, जो कि उसी पैरा से सम्बन्धित हैं, इस परचे के साथ दिये गये उत्तर पुस्तिका में उत्तर दें।
4. अधिक से अधिक अंक प्राप्त करना अपेक्षित है।
5. आपको ये कार्य तीन मिनट में करने हैं।
मैंने पैराग्राफ को ध्यान से पढ़ा। पैरा पढ़ने में दो मिनट व्यतीत हो गये। फिर मैंने पहले प्रश्न को पढ़ा। बहुत ही सरल प्रश्न था, बिल्कुल पहली क्लास के बच्चों से किया जाने वाला प्रश्न जैसा, जिसका आसानी के साथ उत्तर दिया जा सकता था। अधिक से अधिक अंक पाने थे और मेरे पास एक मिनट से भी कम समय बचा था इसलिये मैंने तत्काल प्रश्न का उत्तर लिख दिया। फिर दूसरा, तीसरा, चौथा उत्तर लिखते चला गया। मैंने चौबीसवें प्रश्न का उत्तर लिखा ही था कि तीन मिनट पूरे होने की घंटी बज गई और उत्तर पुस्तिका वापस देना पड़ा।
मैं बहुत खुश हो रहा था कि क्योंकि अन्य लोगों से मैं अधिक तेज हूँ इसलिये मैंने चौबीस प्रश्नों के उत्तर दे दिये हैं। बाकी लोग तो मुश्किल से पन्द्रह-सोलह प्रश्नों के उत्तर दे पाये होंगे। सबसे अधिक अंक मुझे ही मिलना है।
प्रशिक्षक महोदय ने सरसरी रूप से हम सभी के परचों को दो-तीन मिनट में ही देख लिया और घोषणा कर दी कि आप लोगों में से किसी को भी एक भी अंक नहीं मिला है, सबके अंक जीरो हैं।
हम सभी आश्चर्य में आ गये। ऐसा कैसे हो सकता है?
हमें आश्चर्यचकित देख कर प्रशिक्षक महोदय मुस्कुरा कर बोले, "आप लोगों को एक भी अंक इसलिये नहीं मिल पाया क्योंकि आप में से किसी ने भी पैराग्राफ को पढ़ने के बाद पूरे प्रश्नों को नहीं पढ़ा जबकि परचे में साफ लिखा था कि पहले सभी प्रश्नों को पढ़ें फिर उसके बाद ही उत्तर देना शुरू करें। बताइये किसी ने भी पूरे प्रश्नों को पढ़ा था क्या?"
हम लोगों को मानना पड़ा कि किसी ने भी पूरे प्रश्नों को नही पढ़ा था।
प्रशिक्षक महोदय बोले, "परचा अभी भी आप लोगों के ही पास है, अब पढ़ लीजिये।"
जब मैंने पढ़ा तो उनसठवें प्रश्न के नीचे लिखा था "उपरोक्त सारे प्रश्न निरस्त किये जा रहे हैं, आप को सिर्फ अन्तिम प्रश्न का उत्तर देना है"।
जाहिर है कि अन्तिम प्रश्न का उत्तर हममें से किसी ने भी नहीं दिया था इसलिये हमें एक भी अंक नहीं मिले।
चलते-चलते
प्रशिक्षण केन्द्र में प्रशिक्षक महोदय एडजस्टमेंट एंट्री के विषय में बता रहे थे। विषय को समझाने के बाद उन्होंने पूछा किस सब लोग समझ गये ना? और सभी लोगों ने कह दिया कि हाँ समझ गये।
इस पर प्रशिक्षक महोदय ने पूछा, "रुपीज फिफ्टी थाउजेंड डिपॉजिटेड बाय मि. युसुफ इज़ इरोन्यूअसली क्रेडिटेड इनटू द अकाउन्ट ऑफ मि. इस्माइल, देन व्हाट विल बी?"
एक प्रशिक्षार्थी ने जवाब दिया, "इस्माइल विल इस्माइल सर!!!"
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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का अगला पोस्टः
aadarniya awadhiya ji....
ReplyDeleteyeh sansmaran bahut achcha laga....
aur chalte chalte ke to kahene hi kya....
सही बात है , ज्यादा होश्यारी नहीं दिखानी चाहिए, वरना अच्चे खासो का कबाडा हो जाता है और साहित्यकारों को मसाला मिल जाता है :)
ReplyDeleteअवधिया जी बेतरीन लगा आपका ये संस्मरण ।
ReplyDeleteमित्र, मेरी तो हर पल यह कोशिश रहती है कि होशियारी के चक्कर में ही न रहूं। क्योंकि होशियारी खतरे की पहली सुगबुगाहट होती है।
ReplyDeleteवाह्! अवधिया जी, क्या खूब किस्सा सुनाया....सचमुच कभी कभी जरूरत से ज्यादा होशियारी ही आदमी को ले डूबती है ।
ReplyDeleteदूसरे की बेवकूफी(गलती)से जब पचास हजार की रकम जिसकी जेब में आ जाएं...तो वो भला इस्माईल क्यूं नहीं करेगा :)
बहुत मजा आया, इससे यह साबित हुआ कि कभी-कभी होशियारी दिखाना बेवकूफी दिखाना होजाता है, अच्छा लगा,
ReplyDeleteचलते चलते 'एक नेकी रोज करो' अर्थात धानके देश की रोज पोस्ट पढो और एक अनुभव प्रतिदिन पाओ, वह भी बगैर होशियारी दिखाय
सुन्दर प्रसंग और सबक सिखाती हुई
ReplyDeleteऐसे ही कुछ सेशन मैंने भी अटेंड किया है... बातों बातों में ही कई काम की बात मिल जाया करती है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर बात बतई आप ने, ओर सच भी
ReplyDeleteधन्यवाद
क्या मार्के की बात कही है..आपने...
ReplyDeleteइसी को तो कहते हैं समय का दबाव.... जब दबाव होता है तो आप पूरे परिदृष्य को छोड़ देते हैं :)
ReplyDeleteha ha ha ha ha ha ha ha
ReplyDeletemaza aagaya !
kya baat hai !
हाँ ...यही तो जीवन में भी होता है ...निरस्त किये जाने वाले सरे प्रश्न हल करने में ही वक़्त निकल जाता है ...जिस एक प्रश्न का जवाब देना होता है ...छूट जाता है ..
ReplyDeleteमहतवपूर्ण सबक है ये ...!!
मजेदार संस्मरण
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