मैंने कहा कि भाई यदि लड़का और लड़की सचमुच शादी करना चाहते हैं तो उनकी शादी कर ही देनी चाहिये। इस मामले में जाति-पाँति देखना बेकार है। मेरे कहने से मित्र के ससुराल वाले उनकी शादी करवाने के लिये तैयार हो गये। पूरी सावधानी बरतते हुए आर्यसमाज में उन दोनों का विवाह करा दिया गया और लड़की वालों को भनक भी नहीं लगी। शादी हो जाने पर लड़की वाले भड़के तो बहुत किन्तु कुछ भी नहीं कर पाये और आज वह दम्पति सुखी गृहस्थ जीवन बिता रहा है।
यह तो हुआ किस्सा। किन्तु इस प्रकार से विवाह करने का चलन हमारे यहाँ पौराणिक काल से चला आ रहा है। कृष्ण और विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मणी एक दूसरे पर आसक्त थे। रुक्मणी का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ करना तय हो गया तो कृष्ण रुक्मणी को हर लाये अर्थात् भगा लाये और उससे विवाह कर लिया।
इसी प्रकार अर्जुन और कृष्ण की बहन सुभद्रा एक दूसरे से प्रेम करते थे किन्तु सुभद्रा के बड़े भाई बलराम नहीं चाहते थे कि उनका विवाह हो। कृष्ण की सलाह के अनुसार ही अर्जुन सुभद्रा को भगा लाये याने कि हर लाये और विवाह किया।
वत्स राज्य के पुरुवंशीय राजा उदयन भी अवन्ति राज्य की राजकुमारी वासवदत्ता को हर लाये थे और उनसे विवाह किया था, संस्कृत के महाकवि भास ने तो उदयन और वासवदत्ता की प्रेमकथा पर "स्वप्नवासवदत्ता", "प्रतिज्ञायौगन्धरायण" जैसे नाट्यों की रचना कर डालीं। पृथ्वीराज के द्वारा संयोगिता को भगा कर विवाह करने के विषय में आप तो सभी जानते ही हैं।
इन सभी उदाहरणों से स्पष्ट है कि लड़की भगाकर उससे शादी करने का चलन पौराणिक काल से चला आ रहा है।
चलते-चलते
विवाह के बाद विदा होते समय वर अत्यन्त खुश रहता है और कन्या खूब रोती है।
और एक बार विदा हो जाने के बाद कन्या जीवन भर खुश होती है और वर जीवन भर रोता है।
----------------------------------------------------------
"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का अगला पोस्टः
अच्छा आलेख है शुभकामनायें
ReplyDeleteभागे बर तैयार हो ही तभे त उढरिया भागही
ReplyDeleteहमु हां पहिले भी भगाए के उदिम करेन कौनो नई भागिस, अब एक झन हावे तौनो ला भगाए के उदिम करत हन उहु हा नी भागत हवे, कईसे करबे गा जम्मो के किस्मत मा नई होय भागना अउ भगाना, जय होय महाराज
बहुत बढिया, चलते-चलते अपने रोने के बारे में मैं कुछ नहीं कहता, मेरी बीवी भी धान के देश में घूमने लगी है,उसने पढ लिया तो पता नहीं कब तक रोना पडे, इस लिए उलटा लिख देता हूं
ReplyDeleteयह आपकी सबसे बेकार पोस्ट है
काश, हमारे वक्त और प्रदेश में भी यह प्रथा होती
ReplyDeleteपौराणिक काल में अंतरजातीय विवाहों के भी कुछ उदहारण देंगे अवधिया जी..मेरे एक मित्र को जरूरत है..शायद उसकी बात बन जाये..
ReplyDeletemain aapke saath bhagne ke liye taiyaar hoon...
ReplyDeletebolo kab ka plan hai ?
@ श्रीश पाठक 'प्रखर'
ReplyDeleteश्रवणकुमार के पिता वैश्य और माता शूद्र थी देखें - श्रवणकुमार की कथा
@ AlbelaKhatri.com said...
भूल जाइये अलबेला जी, आपका नंबर नहीं नहीं लगने वाला क्योंकि मेरे साथ आज भी भागने के लिये तीन चार सुन्दर सुन्दर बुढ़ियाएँ तैयार हैं पर मेरी चिरयौवना भार्या मुझे छोड़कर भागने के लिये तैयार नहीं हो रही है।
पहले भाग कर शादी करते थे ,अब तो शादी करके
ReplyDeleteभागे भागे फ़िरते है
@ अवधिया जी-मेरे साथ आज भी भागने के लिये तीन चार सुन्दर सुन्दर बुढ़ियाएँ तैयार हैं पर मेरी चिरयौवना भार्या मुझे छोड़कर भागने के लिये तैयार नहीं हो रही है।
ReplyDeleteपोस्ट के माध्यम से आप अपने मंसुबे बांध रहे हो,
क्या बात है, और वो भी तीन-चार सुंदर बु्ढियाँ..... हा हा हा
बढ़िया आलेख !
ReplyDeleteकमेन्ट मोडरेशन पर आपकी राय के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
अवधिया जी,
ReplyDeleteक्यों सब को पृथ्वीराज चौहान बनाने में लगे हैं...
वैसे जो आपने रोने वाला किस्सा सुनाया है...लड़की की विदाई के समय उसके माता-पिता से एक बात और सुनने को मिलती है...बड़े नाज़ो से पाला है...इतनी छोटी सी थी...
(वो छोटी सी थी...बाकी हम तो जैसे पैदा होते ही इतने ढींग के ढींग हो गए थे...)
जय हिंद
awadiya ji apki post jarur padta per muje yah post achi nahi lagi koiki ek ya do jano ke nam gina dene se koi bhi prata ashi nahi ho sakti ladki ya ladke ka bahna achi bat nahi hai ,logo per es ka pabhav acha nahi jata hai,yah hameri sanskiti ke viparit hai
ReplyDelete@ HEMANT KOTHARI
ReplyDeleteकोठारी जी, लगता है कि आपने सिर्फ पोस्ट का शीर्षक पढ़ कर ही टिप्पणी कर डाली क्योकि आपने अपनी टिप्पणी में ही लिखा है कि मैं आपकी पोस्ट पढ़ता पर ...। यदि आपने पोस्ट को पढ़ा होता तो आप यह नहीं कहते कि ये हमारी संस्कृति के विपरीत है। मुझे स्वयं अपनी संस्कृति अत्यन्त प्रिय है और मैं इसके विपरीत कुछ भी नहीं लिख सकता। इस पोस्ट में भी मैंने ऐसी कोई भी बात नहीं लिखी है जो कि हमारी संस्कृति के विरुद्ध हो।
दरअसल पुरानी चीजों से हम अकसर रुढ़ियां लेते हैं बस। मामला यहीं फंसता है।
ReplyDeleteकृष्ण रूकमणी को भगा कर लाए थे. जब भगवान भगा सकते है तो भक्त क्यों नहीं. बस कानुन हाथ में न लें. नियत साफ रखें. :)
ReplyDeleteक्या प्रेमी चलकर साथ नहीं जा सकते जो भागना पड़ता है? यदि इतना भागना, भगाना होता है तो दौड़ में कोई पदक क्यों नहीं मिलते देश को? :D
ReplyDeleteघुघूती बासूती
आपकी इस पोस्ट से ऎसे कईं प्रेमियों को प्रेरणा मिल सकती है जो कि भागने का मंसूबा बनाएं बैठे हैं :)
ReplyDeleteजी.के. अवधिया जी कृष्ण भगवान भी मस्त थे जी ,वेसे हम ने भगा कर नही सात बार घुमा कर फ़िर शादी की थी, भगाने के लिये कोई भागने वाली भी तो चाहिये.....
ReplyDeleteलड़की यदि राजी है और घर वाले लाख कोशिशों के बावजूद नहीं मान रहे तो भगा कर शादी करना पुण्य का काम है | सार्थक पोस्ट |
ReplyDelete