Saturday, November 28, 2009

"जब जीरो दिया मेरे भारत ने"... पर कैसे दिया भारत ने जीरो?

बड़े गर्व से हम कहते हैं कि हमारे भारत ने विश्व को शून्य दिया। आइये देखते हैं कि आखिर भारत ने विश्व को शून्य दिया?

यदि शून्य न हो तो क्या आप गणितीय गणना कर सकते हैं?

जी हाँ, कर तो सकते हैं पर उसकी विधि अवश्य ही अत्यंत दुरूह होगी।

किंतु यह भी सत्य है कि कई हजार वर्ष बिना शून्य के ही बीते हैं। लोगों को यह तो ज्ञात होता था कि उनके पास कुछ नहीं है पर इस कुछ भी नहीं के लिये उनके पास कोई गणितीय संकेत नहीं था।

शून्य का आविष्कार किसने और कब किया यह आज तक अंधकार के गर्त में छुपा हुआ है परंतु सम्पूर्ण विश्व में यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि शून्य का आविष्कार भारत में ही हुआ। ऐसी भी कथाएँ प्रचलित हैं कि पहली बार शून्य का आविष्कार बेबीलोन में हुआ और दूसरी बार माया सभ्यता के लोगों ने इसका आविष्कार किया पर दोनों ही बार के आविष्कार संख्या प्रणाली को प्रभावित करने में असमर्थ रहे तथा विश्व के लोगों ने इन्हें भुला दिया।

फिर भारतीयों ने तीसरी बार शून्य का आविष्कार किया। भारत में हुए इस तीसरी बार शून्य के आविष्कार ने संख्या प्रणाली को ऐसा प्रभावित किया कि सम्पूर्ण विश्व में शून्य का प्रयोग होने लगा। भारतीयों ने शून्य के विषय में कैसे जाना यह आज भी अनुत्तरित प्रश्न है। अधिकतम विद्वानों का मत है कि पांचवीं शताब्दी के मध्य में शून्य का आविष्कार किया गया।

इंटरनेट के सबसे बड़े विश्वकोष 'विकीपेडिया' के अनुसारः

"सन् 498 में भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलवेत्ता आर्यभट ने कहा 'स्थानं स्थानं दसा गुणम्' अर्थात् दस गुना करने के लिये (उसके) आगे (शून्य) रखो। और शायद यही संख्या के दशमलव सिद्धांत का उद्गम रहा होगा। आर्यभट द्वारा रचित गणितीय खगोलशास्त्र ग्रंथ 'आर्यभटीय' के संख्या प्रणाली में शून्य तथा उसके लिये विशिष्ट संकेत सम्मिलित था (इसी कारण से उन्हें संख्याओं को शब्दों में प्रदर्शित करने का भी अवसर मिला)।

"शून्य तथा संख्या के दशमलव के सिद्धांत का सर्वप्रथम अस्पष्ट प्रयोग ब्रह्मगुप्त रचित ग्रंथ ब्रह्मस्फुट सिद्धांत में पाया गया है। इस ग्रंथ में नकारात्मक संख्याओ और बीजगणितीय सिद्धांतों का भी प्रयोग हुआ है।

कुछ शोधकार्यों के अनुसार प्रचीन भारतीय 'बक्षाली' लिपि में भी शून्य का प्रयोग किया गया है और उसके लिये उसमें संकेत भी निश्चित है। बक्षाली लिपि का सही काल अब तक निश्चित नहीं हो पाया है परंतु निश्चित रूप से उसका काल आर्यभट के काल से प्राचीन है। इससे सिद्ध होता है कि भारत में शून्य का प्रयोग पाँचवी शताब्दी से पहले भी होता था।"

उपरोक्त उद्धरणों से स्पष्ट है कि भारत में शून्य का प्रयोग ब्रह्मगुप्त के काल से भी पूर्व के काल में होता था। किन्तु सातवीं शताब्दी, जो कि ब्रह्मगुप्त का काल था, में भारत का यह शून्य कम्बोडिया तक पहुँच चुका था और दस्तावेजों से यह भी ज्ञात होता है कि बाद में ये कम्बोडिया से यह शून्य चीन तथा अन्य मुस्लिम संसार में फैल गया।"

भारतीयों के द्वारा आविष्कारित शून्य ने समस्त विश्व की संख्या प्रणाली को प्रभावित किया और संपूर्ण विश्व को जानकारी मिली कि शून्य का अर्थ 'कुछ नहीं' होता है।

मध्य-पूर्व में स्थित अरब देशों ने भी शून्य को भारतीय विद्वानों से प्राप्त किया।

अंततः बारहवीं शताब्दी में भारत का यह शून्य पश्चिम में यूरोप तक पहुँचा।

चलते-चलते

1) एक केलकुलेटर लें।
2) उसमें अपने 7 अंकों वाली लैंडलाइन फोन नंबर के प्रथम तीन अंकों को डालें, फोन नंबर यदि 8 अंकों वाली हो तो प्रथम 4 अंक डालें। (जैसे यदि फोन नंबर 2382146 हो तो 238)
3) 80 से गुणा कर दें।
4) 1 जोड़ें।
5) 250 से गुणा कर दें।
6) अपने फोन नंबर के अन्तिम चार अंको वाली संख्या को जोड़ दें। (जैसे यदि फोन नंबर 2382146 हो तो 2146)
7) एक बार फिर अपने फोन नंबर के अन्तिम चार अंको वाली संख्या को जोड़ें।
8) 250 घटायें।
9) 2 से भाग दें दें।

अब स्क्रीन में दिखाई पड़ने वाली संख्या को देखें।

अरे! यह तो आपका ही फोन नंबर है।

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"यदि पाँचवी रोटी को खाने से पेट भर जाता है तो पाँचवी रोटी को पहले खाना चाहिये ताकि चार रोटियों की बचत हो सके।"

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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का अगला पोस्टः

तपस्विनी स्वयंप्रभा - किष्किन्धाकाण्ड (12)

17 comments:

  1. अवधिया जी,
    आप कौन सा गणित समझा रहे हैं...अपनी समझ से बाहर है...क्योंकि अपना भी दिमाग काम नहीं कर रहा...

    जय हिंद...

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  2. किसी नई बात को दुनिया को समझा पाना कितना मुश्किल हैं .. तीसरी बार के खोज के बाद ही पूरे विश्‍व में शून्‍य का प्रचार प्रसार हो सका .. यह जानकर 'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष' के प्रचार प्रसार के हमारे सपने को धक्‍का पहुंचा .. पर आपके 'चलते चलते' को हल करने से पहले समीकरण बनाते हुए टेंशन ही खत्‍म हो गया .. ये सचमुच मजेदार है .. और अब से रोटी तीसरी ही खाया करूंगी .. मैं दो से अधिक नहीं बचा सकती !!

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  3. मेरा भारत महान । जीरो ने हीरो बना दिया गणित के क्षेत्र मे बधाई

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  4. बहुत सुन्दर जानकारी सर , दोनों जीरो वाली भी और चलते-चलते वाली भी, मजेदार !

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  5. शून्य को गौर से देखे यह वाकई शून्य नही है

    चलते चलते मजेदार है

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  6. शून्य के बारे मे अच्छी जानकारी दी आपने
    मेरा भारत महान

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  7. शून्य के बारे मे अच्छी जानकारी.

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  8. आज तो आपने बडी कलाकारी दिखाई जी।
    80*250=20000 से गुना करा कर पहले के चार अंको को दोगुना और पीछे चार शून्य लगवा दिये। फिर पिछले चार अंकों को दो बार जुडवा कर दोबारा दो से भाग करवा दिया।
    जो एक जोडा था उसे 250 से गुना करवाया था, वही 250 घटवा दिये।

    प्रणाम

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  9. आदरणीय अवधिया जी,

    सादर नमस्कार....

    आपकी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी..... जीरो के ऊपर.... मैंने भी एक लेख लिखा था ब्लॉग पर जीरो के ऊपर उसे भी देखिएगा प्लीज़...

    http://lekhnee.blogspot.com/2009/10/o.html


    और चलते- चलते को मैंने बिलकुल वैसे ही किया जैसा की आपने बताया है.... बहुत अच्छा लगा जान कर...

    सादर

    महफूज़

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  10. बहुत ज्ञानवर्धक आलेख लिखा अवधिया जी, शून्य की खोज तीन बार में जाकर हुई होगी, यह जानना रोचक है । धन्यवाद ।

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  11. chalte chalte batate chalein ki "chalte chalte" pasand nahi aaya.. calculator par isse kahin acche kaam ho sakte hain.. exam chal rahe hain abhi mere, khatm ho jaayein to wapas aaunga, zero par bhi aur calculator par bhi...

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  12. बहुत सुंदर लेख जीरो पर, लेकिन यह पांचवी रोटी के चक्कर मै मै सुबह से भुखा बेठा हुं, अब कोन सी पांचवी रोटी है यह तो बता दो...:)
    धन्यवाद

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  13. रजिया जी ने सही कहा कि शून्य को गौर से देखा जाए तो यह वाकई यह शून्य नही है...बल्कि अपने गोल आवरण में सम्पूर्ण ब्राह्मंड को समेटे हुए है ।

    बहुत अच्छी जानकारी प्रदान की आपने....चलते चलते भी कमाल रहा!
    वैसे ये नहीं बताया कि पाँचवीं रोटी की पहचान कैसे हो....तब तो प्रत्येक रोटी पर एक संख्या लिखकर बनानी पडेगी :)

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  14. शून्य भारत ने दिया। अब जीरो की ओर अग्रसर!

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  15. बहुत ही उम्दा व लाजवाब जानकारीं प्रदान की है आपने । आभार

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  16. बहुत ही उम्दा लेख है ,उम्मीद है की आगे भी इसी तरह की जानकारी मिलती रहेगी

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