Monday, November 30, 2009

इस ब्लोगिंग ने आपकी बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया है - श्रीमती अवधिया

श्रीमती अवधिया उवाच:

"हे आर्यपुत्र! इस ब्लोगिंग ने आपकी बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया है। आप विक्षिप्त होते जा रहे हैं। वर्तमान में प्रचलित भाषा को आपकी बुद्धि ग्रहण नहीं कर पाती इसलिये मुझे आपके ब्लोग की भाषा में ही आपसे वार्तालाप करना पड़ रहा है। आपकी स्मरण शक्ति मंद होते जा रही है। आपको मेरा कुछ ध्यान ही नहीं रहता। आप दिन-रात अपने ब्लोगिंग में ही लिप्त रहने लगे हैं। आप मुझ पर कटाक्ष करने वाले पोस्ट लिख-लिख कर अपना टीआरपी बढ़ाने लगे हैं। अब मैं आपकी अर्धांगिनी न रह कर केवल आपके टीआरपी बढ़ाने का साधन मात्र बन कर रह गई हूँ

हे गर्दभबुद्धि नाथ! तनिक स्मरण कीजिये कि मैंने विवाहपूर्व अतिसुन्दर, प्रसन्नवदन इंजीनियर लड़के के प्रणय-निवेदन को अस्वीकार करके आपका वरण किया था क्योंकि आप मेरी प्रिय सखी के अग्रज थे और मुझे विदित था कि आपको मेरी ही भाँति चलचित्र दर्शन में अनन्य रुचि है। विवाहोपरान्त आपने मुझे अनेक चलचित्रों के दर्शन करवाये किन्तु शनैः-शनैः चलचित्र-दर्शन की संख्या कम होने लगी। आज आप चलचित्रों पर पोस्ट तो लिखते हैं किन्तु अपनी इस प्राणप्रिया को चलचित्र-दर्शन करवाने में किंचित मात्र भी रुचि नहीं दर्शाते।

हे महापातकी पतिदेव! हमारे विवाह के पश्चात् आप मेरे दर्शन किये बिना व्याकुल रहा करते थे किन्तु लगभग एक वर्ष की अवधि व्यतीत होने पर आपको परस्त्री दर्शन में ही अधिक सुख की प्राप्ति होने लगी। आप कामजनित अधर्म में लिप्त हो गये। फिर भी मैं सहन करती रही। हे निष्ठुर! आप मेरे समक्ष ही मेरी सखियों से मृदु वार्तालाप करने में व्यस्त रहने लगे, फिर भी मैंने धैर्य ही धारण किया।

हे मूर्खाधिराज स्वामी! अब यह ब्लोगिंग आपको मुझसे दिन-प्रति-दिन दूर ले जाती जा रही है। वर्षों से आपने मुझे किसी चलचित्र का दर्शन नहीं करवाया है। किसी जलपानगृह में गये कितना समय व्यतीत हो चुका है यह मुझे स्मरण नहीं। मैंने बहुत सहन किया किन्तु अब और धैर्य धारण कर पाने में स्वयं को असमर्थ पा रही हूँ। मेरा क्रोध अपनी चरमस्थिति में पहुँचते जा रहा है। आप यह समझने की भूल कदापि न करें कि मैं कैकेयी की भाँति कुपित होकर कोप-भवन में चली जाउँगी। मुझे अच्छी प्रकार से विदित है कि मेरे कोप-भवन चले जाने पर आप कदापि मुझे मनाने के लिये नहीं आने वाले हैं। मेरे कोप-भवन चले जाने से तो आप और भी प्रसन्न होकर अपने पोस्ट लिखने में व्यस्त हो जायेंगे। मैं आपको यह विदित करा देना उचित समझती हूँ कि मैं रामायण काल की नारी न होकर आधुनिक काल अर्थात् इक्कीसवीं सदी की नारी हूँ। यदि पति का सम्मान करना जानती हूँ तो पति के अहं को चूर-चूर करना भी मुझे अच्छी प्रकार से आता है।

अतः हे अज्ञानी आर्यपुत्र! आज रविवार के दिन यदि आपने मुझे चलचित्र-दर्शन नहीं करवाया तो मैं रणचण्डी का रूप धारण कर लूँगी, मेरे क्रोध की ज्वाला प्रज्वलित हो जायेगी। मेरे उस क्रोध की ज्वाला से आपके इस कम्प्यूटर का कैसा विनाश होगा इस बात का अनुमान लगाने योग्य बुद्धि, आपकी मति के कुंद हो जाने के बाद भी, अभी भी आपके पास शेष बचा हैं।"

पत्नी के वचन सुनकर एवं रौद्ररूप देख कर भयभीत अवधिया ने तत्काल कम्प्यूटर बंद कर दिया और अपनी अर्धांगिनी को चलचित्र दर्शन करवाने की तैयारी आरम्भ कर दी।

चलते-चलते

मनाली के एक होटल के कमरे में ठहरी दो सहेलियों ने घूम कर आने के बाद अपने वस्त्र बदले। वस्त्र बदलते वक्त भूल से खिड़की खुली रह गई थी अतः परिणामस्वरूप एक को ठंड ने जकड़ लिया और एक को एक करोड़पति युवक ने।

19 comments:

  1. पत्नी के वचन सुनकर एवं रौद्ररूप देख कर भयभीत अवधिया ने तत्काल कम्प्यूटर बंद कर दिया और अपनी अर्धांगिनी को चलचित्र दर्शन करवाने की तैयारी आरम्भ कर दी।
    ये क्‍या किया .. सफल ब्‍लॉगर बनने के लिए थोडी सहनशीलता तो विकसीत करनी ही पडती है .. और आपके 'चलते चलते' ने ग्रहों के अच्‍छे और बुरे प्रभाव की पुष्टि कर दी !!

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  2. अवधिया जी,
    दिमाग तो उसी दिन तक चलता है जब तक आदमी की शादी नहीं हो जाती...इसलिए चाची को समझाइए...जो पहले से ही मरा हुआ है...उसे कौन मार सकता है...

    दूसरे, ध्यान रखिए कहीं हमारी चाची ब्लॉगिंग पीड़ित पत्नी संघ की प्रमुख न बन जाएं...और पत्नी उत्पीड़न कानून में ब्लॉगिंग विरोधी धारा और न जुड़ जाए...

    तीसरे, चलते चलते मनाली के होटल का पता तो बता देते...

    जय हिंद...

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  3. "हे आर्यपुत्र! इस ब्लोगिंग ने आपकी बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया है। आप विक्षिप्त होते जा रहे हैं"
    नि:संदेह-कितना बड़ा सत्य है,
    अब "सच का सामना" भी तो करना पड़ेगा।

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  4. अवधिया जी मामला गंभीर है। फौरन चलचित्र की व्यवस्था करिए।
    और हँ, चलते चलते बड़ा जोरदार है। कहाँ से खोज कर लाते हैं?

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  5. हा-हा-हा-हा... बहुत दिन हो गए थे :) वैसे आपको शायद याद हो अवधिया साहब कि कुछ हफ्तों पहले टिप्पणी के जरिये इसी से मिलता-जुलता एक हिंट्स मैंने भी दिया था :)

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  6. आर्यपुत्र आर्या की सुनें.

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  7. अमंगल कटे होवे मंगल जारी
    मल्टीप्लेक्स पहुचें मूरख अधिकारी
    तब ही जान बक्शी होई तुम्हारी
    जलपान कराओ भौजी को हमारी
    आमिर खान ,शाहरुख़ खान, सलमान खान, सैफ अली खान....
    प्रेम से बोलिए... प्यारी भावज कि...जय...!!:):)

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  8. हा हा हा हम तो हंसते हुये लोट पोट हुये जा रहे हैं बधाई इस रोचक पोस्ट के लिये

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  9. चचे, चाची को अवध की सेर तो करा दो, खुद ना गये तो किया चाची को भी महरूम रखोगे

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  10. अच्छा हास्य -व्यंग प्रस्तुत किया है, अवधिया जी।
    दूसरे ब्लोगर्स को भी ध्यान देना चाहिए।

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  11. फ़िल्म क्या वही मनाली वाली होटल की थी जिसका एक दृश्य आपने वर्णित किया है !
    मगर भैये यहाँ तो उलट है मैं लाख कहता रहूँ उन्हें तो नहीं जाना है फ़िल्म देखना
    मैं दुसरे के साथ भले निकल जाऊं ! अपनी अपनी किस्मत है भैया !

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  12. जोर से बोलो जै माता दी :)

    हम भी माता जी की बात से सहमत है, इतनी पोस्टिंग ठीक नही कि पूरी जिन्‍दगी पोस्टिंग मय ही रह जाये।

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  13. पत्नियां सच ही कहती हैं।
    और दोनो बालायें सप्ताह भर में जकड़न मुक्त हो गयी होंगी। :)

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  14. अवधिया जी आप से निवेदन है कि इस खतरे की घंटी को अभी वक्त रहते ही समझ जाओ ओर अवधिया चाची जी.... अरे माफ़ करना अवधिया भाभी जी को आज ही फ़िल्म दिखा लाये बहुत सुंदर फ़िल्म लगी है, जाते समय गोल गप्पे जरुर खिलाये, ओर डिनर भी बाहर ही कर ले, वरना नारी निकेतन के संग भाभी जी ना मिल जाये, सुना है इन नारी निकेतन वालियो के भी आज कल कमर कसी है जींस पहन कर:)
    राम राम राम भली करे

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  15. जिस टाईप से आप जुटे थे मुझे बहुत पहले से डाउट था कि एकाध दिन चेपाओगे. हो गई न भद्रा अब?

    :)

    हमें तो आनन्द आया भई...आप अपनी जानो. बस, ये पोस्ट हमारी बीबी न पढ़े इस लिए ब्लॉक लगा देते हैं. :)


    मनाली के होटल में भी ठीक ठाक कार्यक्रम रहा. आशा है दूसरी वाली मैडम की तबीयत में अब आराम होगा.

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  16. ये प्राब्लम अपुन को कभी नई आने वाला।वैसे खुशदीप भाई मनाली आप क्यों जाओगे,हम लोग है ना।

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  17. वाह्! कमाल की पोस्ट लिखी आपने...सचमुच आनन्द आ गया...
    आपकी पोस्ट से हमें भी 2 लाईनें याद आ गई,जो कि कभी हमने अपनी "सरकार" के लिए कही थी...

    घर का मैने अब सौप दिया, सब भार तुम्हारे हाथों में
    उद्धार,पतन अब मेरा है, "सरकार" तुम्हारे हाथों में ।।

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  18. मस्त

    हमने भी कुछ सीख ले ली है जी

    प्रणाम

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