मैंने तो सिर्फ यही लिखा थाः
मैं उन्हीं पोस्टों में टिप्पणी करता हूँ जिन्हें पढ़कर प्रतिक्रयास्वरूप मेरे मन में भी कुछ विचार उठते हैं। जिन पोस्टों को पढ़कर मेरे भीतर यदि कुछ भी प्रतिक्रिया न हो तो मैं उन पोस्टों में जबरन टिप्पणी करना व्यर्थ समझता हूँ।मेरे इस प्रकार से लिखने का अर्थ, कम से कम मेरी अल्प सोच के अनुसार, यह तो नहीं होता कि जिस पोस्ट में मैं टिप्पणी नहीं करता वह "व्यर्थ लेखन" या "निरर्थक पोस्ट" है।
मेरी तुच्छ बुद्धि यदि किसी पोस्ट में निहित गूढ़ बातों को समझ पायेगी तभी ना मेरे मन में प्रतिक्रियास्वरूप विचार आयेंगे? और यदि मैं किसी बात को समझ ही ना पाऊँ तो भला क्या खाक टिप्पणी करूँगा?
खैर साहब, कोई किसी बात को पढ़कर उसका क्या अर्थ निकालता है यह तो पढ़ने वाले के ऊपर ही निर्भर करता है, मैं भला उसमें क्या कर सकता हूँ?
भाई टिप्पणी कोई पल्स पोलियो तो है नहीं कि मर्ज़ी न मर्ज़ी करनी ही पड़े, मौज आये तो करो न आये तो न करो.. इसमें सारा अधिकार करने वाले के हाथ में है
ReplyDeleteभईया,
ReplyDeleteसोलह आने सही बात कह दी..
मेरी भी यही दुविधा रहती है..किसी किसी पोस्ट के लायक मेरा भी दिमाग नहीं होता ..इसलिए टिपण्णी नहीं करती हूँ..
मेरे वश में वैसे भी 'आह' 'वाह' लिखना नहीं है..फिर भी आज कल कोशिश कर रही हूँ..'बहुत खूब' 'बहुत बढ़िया' लिखने कि..क्या करूँ...
क्या विषय chuna आपने ..हम तो रोज यही भुगत रहे हैं...हां नहीं तो..!!
अवधिया जी,
ReplyDeleteबाकी दिया गला छड्डो दिल साफ़ होना चाहिदा...
बस दिल की बात सुना करिए, कहने वाले तो कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे...
जय हिंद...
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ReplyDeleteकही टिप्पणी करना या ना करना पाठक का व्यक्तिगत मामला है और किसी पोस्ट को टिप्पणियों द्वारा आंकना भी गलत है। कई पोस्टों के लेख तो इतने रहस्यमयी होते है कि समझ मे ही नही आते ये क्या कहना चाहते हैं? हमारा तो ठस दिमाग पुरता ही नही है। फ़िर उस पर क्या लिखो? कि "मेरी समझ मे नही आया स्पष्ट किजिए"। तो अगला बुरा मान जाता है। इसलिए-आगे की सुध लेय।
ReplyDeleteजिसकी जैसी सोच-सब लिखने-पढने और टिपियाने के लिए स्वतंत्र है। आभार
टिप्पणी में तो और भी अर्थ का अनर्थ होने की सम्भावनाएं रहती है. कम शब्दों में जब बात कहने जाते है, तब सोचते कुछ है, लिखते कुछ है और अर्थ कुछ और ही निकाला जा सकता है.
ReplyDeleteअजी हम भी कई भी कई बार उन लेखो पर टिपण्णी देने से बचते है जो लोगो की नजर मै अच्छी होती है, इस का अर्थ यह तो नही की वो व्यर्थ है अजी हमे पसंद नही इस लिये बचते है, यही भाव आप का रह होगा, चलिये मस्त रहिये
ReplyDeleteअवधिया साहब, हम स्वतत्र देश के नागरिक किसी बात का कोई भी अर्थ निकालने और हो हल्ला मचाने के लिए ही तो आजाद हुए थे :)
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteअच्छा हुआ, आपने एक पोस्ट निकाल ली!
अवधिया जी, हम भी तभी टिपण्णी करते हैं, जब पोस्ट कुछ पल्ले पड़ती है।
ReplyDeleteऔर ज़ाहिर है, सब तो समझ नहीं आती। इसमें बुरा भी क्या है।
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ReplyDeleteटिप्पणी छोटी हो तो भी चलेगी, बस बेबात के ही वाह वाह और बहूत खूब कहना उचित नहीं होता। अदा जी की तरह मैं भी आजकल बढिया आदि कह कर निकल लेता हूँ लेकिन यह बढिया, बहूत खूब यह दिल से निकलना चाहिये। और जहां लंबी टिप्पणी या कुछ विषय अनुरूप विस्तार की जरूरत हो वहां पर लंबी टिप्पणीयां देने से गुरेज नहीं है। कभी कभी पोस्ट विषय से संबंधित अपने अनुभव बांटते हुए टिप्पणी लंबी कर देना मेरे हिसाब से उचित है।
ReplyDeleteबाकी तो टिप्पणी विषय पर ब्लॉगजगत में अब तक काफी कुछ लिखा जा चुका है।
देखा आपने ज्ञानजी कल भी मौज लिये आपसे और आज भी मौज ले रहे हैं कि आपने एक पोस्ट निकाल ली। वैसे जब कल आपने ज्ञानजी की टिप्पणी पर अपनी बात कल ही साफ़ कर दी थी तो क्या आज इस पोस्ट को लिखना आवश्यक था? मेरी समझ में गैरजरूरी पोस्ट! :)
ReplyDeleteसाहब !
ReplyDeleteएकाएक ब्लॉग - जगत में इतनी रगड़घस्स क्यों मच गयी !
और सारे विषय क्या बिलाय गए हैं ?/! .......
इसलिए हम तो सिर्फ गिनी चुनी पोस्टों पर ही टिप्पणी करते हैं...ताकि न यहाँ वहाँ जाकर टिप्पणी करें और न बात का बतंगड बने :)
ReplyDeleteअवधिया जी को हमारा नमस्कार
ReplyDeleteकोई भी बात दिल में न रहे
अच्छा किया आपने इस बाबत
आपने सारे गिले शिकवे निकालकर
और अब यह टिप्पण पुराण का यहीं
अंत होना चाहिए. अरे भाई कोनो
कुछु कहै मोर मन करही मोला लगही
तभे त कुछ लिखे पाहूं याने टिपण्णी दे
पाहूं. ये विचार होना चाही. अउ तेखरे पाय के कहे ल
पड़थे "कुत्ता भूंके हजार अउ हांथी चले बाजार"