"क्या बात है टिप्पण्यानन्द जी? किस सोच में डूबे हुए हैं?"
"भाई लिख्खाड़ानन्द जी! क्या बतायें हाथ बहुत तंग है आज कल। कुछ कमाई-धमाई की जुगत में लगा हुआ हूँ। सोच रहा हूँ कि टिप्पणियों की एक दूकान खोल ही लूँ।"
"टिप्पणियों की दूकान?"
"हाँ भई, टिप्पणियों की दूकान! आजकल हिन्दी ब्लॉगजगत में खूब माँग है टिप्पणियों की। वहाँ पर हाल यह है कि लोग यही चाहते हैं कि पोस्ट को भले ही कोई मत पढ़े पर टिप्पणी अवश्य कर दे। होड़ मची है हमारे ब्लोगरों में अधिक से अधिक टिप्पणी पाने के लिये। करोड़ों हिन्दीभाषी इंटरनेट यूजरों के होते हुए भी हिन्दी ब्लोगों के पाठकों की संख्या मात्र कुछ सौ तक ही सीमित है इससे साफ है कि हिन्दी ब्लोगर को हिन्दी ब्लोगर लोग ही पढ़ते हैं। अब जब पाठक ही नहीं हैं तो पाठकों की संख्या को भला पोस्ट की लोकप्रियता और गुणवत्ता का पैमाना कैसे माना जाये? इसलिये टिप्पणियों की संख्या ही इस पैमाने का काम करती हैं। इसीलिये आपस में एक दूसरे के पोस्ट पर टिप्पणी करने का चलन हो गया है। यदि एक ब्लोगर ने किसी दूसरे ब्लोगर के पोस्ट पर टिप्पणी किया है तो दूसरे ब्लोगर का कर्तव्य बनता कि कि वह भी जाकर पहले ब्लोगर के पोस्ट में टिप्पणी करे। टिप्पणियाँ पाने के लिये बहुत से गुट बन गये हैं। जैसे नेता लोग भीड़ बढ़ाने के लिये रुपये देकर ट्रकों में लोगों को लाते हैं उसी प्रकार से टिप्पणियाँ पाने के लिये एक से बढ़कर एक हथकंडे अपनाये जाते हैं, लोग ईमेल और फोन कर के एक दूसरे को बताते हैं कि मेरी पोस्ट लग गई है और अब आपको टिप्पणी करना है। पर बहुत से ऐसे ब्लॉगर भी हैं जो लिखते तो बहुत अच्छे हैं पर उनके पोस्ट में टिप्पणियाँ ही नहीं आती। हम तो ऐसे ब्लोगरों को ही अपना ग्राहक बनायेंगे। जोरदार चलेगी अपनी दूकान। उचित दाम लेकर सही टिप्पणी देंगे तो भला कोई क्यों नहीं खरीदेगा हमसे टिप्पणियाँ?"
"विचार तो आपका बहुत अच्छा है! सच में खूब चलेगी आपकी दूकान। पर यह तो बताइये कि आपने ऐसे कैसे कह दिया कि लोग यही चाहते हैं कि पोस्ट को भले ही कोई मत पढ़े पर टिप्पणी अवश्य कर दे?"
"अरे आप किसी पोस्ट और उसकी टिप्पणियों को पढ़ कर तो देखिये! आप को खुद पता चल जायेगा कि हमने ऐसा क्यों कहा। पोस्ट गम्भीर है तो उसमें टिप्पणी हँसी-मजाक और नोंक-झोंक वाली मिलेंगी। ऐसी टिप्पणियाँ मिलेंगी जिनका पोस्ट के विषय से दूर-दूर का भी कोई सम्बन्ध नहीं है। तो ऐसी टिप्पणी पोस्ट को पढ़ने के बाद तो नहीं की जा सकती ना? और यदि पोस्ट को पढ़ने के बाद की गई होंगी तो स्पष्ट है कि टिप्पणी करने वाला या तो गम्भीर पोस्ट लिखने वाले की खिल्ली उड़ाना चाहता है या फिर उसे नीचा दिखा कर उसका कद छोटा कर देना चाहता है। भाई टिप्पणी करके किसी का सहयोग करने का यह अर्थ तो नहीं है ना कि हमारे ही सहयोग से सामने वाले का कद हमसे भी ज्यादा ऊँचा हो जाये?
"अच्छा अब यह बताइये कि रेट क्या रखेंगे आप टिप्पणियों के?"
"रेट तो टिप्पणी की क्वालिटी के अनुसार रखेंगे। "nice", "वाह! वाह!!", "बेहतरीन!", "बहुत सुन्दर!", "क्या खूब!" जैसी एक दो शब्दों वाली टिप्पणियों के रेट रहेंगे मात्र दस रुपये प्रति टिप्पणी! "गहरी बात कह गये!", "बहुत अच्छा लिखा है!" जैसी एक वाक्य वाली टिप्पणियों के रेट होंगे बीस रुपये प्रति टिप्पणी!"
"इतने कम रेट टिप्पण्यानन्द जी? भाई माना कि ये टिप्पणियाँ छोटी हैं पर लोगों के ब्लोग में जाने और टिप्पणी करने में समय तो लगता ही है। इतना अधिक समय गवाँ कर इतने सस्ते में कैसे टिप्पणियाँ बेच पायेंगे आप?"
"दिक्कत की कोई बात नहीं है लिख्खाड़ानन्द जी! हमें कौन सा किसी ब्लॉग में जाना है, पोस्ट को पढ़ना है और टिप्पणी करना है? ऐसी टिप्पणियों के लिये ऑटोमेटेड टिप्पणी करने वाली सॉफ्टवेयर आती है ना, बस वही खरीद लेंगे। एक बार उसमें टिप्पणियों और ब्लोगों के यूआरएल को फीड भर कर देना है। फिर तो अपने आप ही टिप्पणियाँ होती रहेंगी। हाँ टिप्पणी खरीदने वाले के लिये शर्त सिर्फ यही रहेगी कि कम से कम एक हजार रुपये की टिप्पणी खरीदना होगा उसे, क्योंकि मात्र पाँच दस टिप्पणियों के लिये तो हम ऑटोमेटेड साफ्टवेयर में बार बार ब्लोगों के यूआरएल तो बदलने से रहे।"
"वाह! तब तो खूब कमाई होगी आपकी!"
"बिल्कुल होगी जी! और फिर किसी की टाँगें खींचने, गाली गलौज करने जैसी स्पेशल टिप्पणियाँ करवाने वाले भी बहुत लोग मिलेंगे। इस प्रकार की स्पेशल टिप्पणियों के रेट भी स्पेशल रखेंगे हम। हमारे नियम के अनुसार टिप्पणियों के दाम मिल जाने के बाद चौबीस घंटे के भीतर टिप्पणियाँ की जायेंगी और यदि कोई तुरन्त टिप्पणी करवाना चाहेगा तो फिर अर्जेंट चार्जेस अलग लगेंगे।"
"अच्छा यदि कोई लंबी टिप्पणी खरीदना चाहे तो?"
"तब तो उनके रेट भी तगड़े रहेंगे, कम से कम एक हजार रुपये प्रति टिप्पणी क्योंकि ऐसी टिप्पणियों के लिये तो ऑटोमेटेड टिप्पणी करने वाली सॉफ्टवेयर से तो काम लिया नहीं जा सकता, खुद ब्लोग में जाकर पोस्ट को पढ़ना पड़ेगा।"
"तो चलिये जल्दी खोलिये अपनी टिप्पणियों की दूकान। हम भी कुछ टिप्पणियाँ खरीद लिया करेंगे आपसे।"
"अरे आपको भला टिप्पणियाँ खरीदने की क्या क्या जरूरत है, आप तो महान और धुरन्धर लिख्खाड़ हैं! लोग तो आपके पोस्ट का इंतजार करते बैठे रहते हैं। इधर पोस्ट प्रकाशित हुई नहीं कि टिप्पणियाँ आनी चालू हो जाती हैं।"
"हाँ भाई, टिप्पणियाँ तो खूब मिल जाती हैं हमें! पर ऐसे ही थोड़े मिल जाती हैं हमें ये टिप्पणियाँ। खूब मेहनत करनी पड़ती है हमें इनके लिये। हजारों ब्लोगों में जा जा कर टिप्पणी करते हैं हम तब कहीं जाकर सौ-पचास टिप्पणी मिल पाती है। हाँ तो हम कह रहे थे कि टिप्पणियाँ तो जरूर खरीदेंगे हम आपसे। टिप्पणियाँ जितनी अधिक मिले उतना ही ज्यादा अच्छा होता है।"
"फिर तो लिख्खाड़ानन्द जी हम भी आपके लिये डिस्काउंटेड रेट लगायेंगे। आखिर आप हमारे मित्र जो हैं।"
"तो कब खुल रही है आपकी टिप्पणियों की दूकान?"
"बहुत ही जल्दी! ऑटोमेटेड टिप्पणी करने वाली सॉफ्टवेयर के लिये ऑर्डर दे रखा है। बस सॉफ्टवेयर आई कि दूकान खुली।"
(मेरे लिये हर्ष की बात है कि यह धान के देश में ब्लोग का 401वाँ पोस्ट है!)
hhahahahhah maja aay gaya
ReplyDeletesaadar
praveen pathik
(मेरे लिये हर्ष की बात है कि यह धान के देश में ब्लोग का 401वाँ पोस्ट है!)
ReplyDeleteis baat kae liyae aap badhaii kae paatr haen baaki tippani kae liyae jo likhtey haen unko hi tippani miltee haen
haan agar aap kaa PR achcha haen to tippani ki koi kami nahin haen
log bloging mae PR badhaane hi aaye haen
nice
ReplyDeleteकरारा व्यंग्य
ReplyDeleteमूहर्त के लड्डू तो खिलवाईये जी ;)
प्रणाम स्वीकार करें
बधाई जी बधाई .४०१ पोस्ट की ...सही लिखा है .जो टिप्पणी दे जाए उनको कुछ रियायत दे दीजियेगा :)
ReplyDeleteSaturday 7 November 2009
ReplyDeleteआत्म-प्रसंशा /Self Appreciation
प्राप्ति ....कमेंट्स की!
पीठ खुजाने में दिक्कत है?
आओ! एसा कर लेते है...
मैं खुजलादूं आपकी...
बदले में , मेरी ;
तुम खुजला देना.
एक हाथ से मैंने दी तो,
दूजे से तुम लौटा देना.
कर से, कर [tax] ही की भाँति
अधिक दिया तो वापस [refund] लेना.
-मंसूर अली हाशमी
प्रस्तुतकर्ता Mansoor Ali पर 8:37 AM http://mansooralihashmi.blogspot.com
401पोस्ट के गाड़ा-ग़ाड़ा बधई,
ReplyDeleteबस दुकान के उद्घाटन करना है,
अडबड चलही,अड़ बड गिराहिक हे।
बधई
वाह, वाह, वाह, वाह… (चार बार कर दिया)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा, बेहतरीन (दो बार हो गया)
अब??? अब??? बस फ़िलहाल इतना ही…
अब ये बताईये कि मुझे आप पैसा देंगे या मुझे देना है आपको… 10-20 रुपये जो भी रेट होगा… :) :)
हा हा हा हा हा हा…
दुकान चल निकले तो हमें भी बताईयेगा… 500 के ऊपर सब्स्क्राइबर हैं लेकिन 25-30-40 से ज्यादा टिप्पणी नहीं मिलती… बड़ा परेशान रहता हूं… कब्ज़ की शिकायत हो गई है, आँखें भी कमजोर हैं टि्प्पणियों के इन्तज़ार में…
(अरे ये तो लम्बी टिप्पणी हो गई, इसका रेट तो अलग होगा ना?) :)
चलिए आप शुरू कीजिए....अगर दुकान चल निकली(वैसे न चलने की तो गुजांईश ही नहीं है)तो हम भी एक दुकान आपकी दुकान के बगल में खोल ही लेंगें :)
ReplyDelete401वीं पोस्ट की बधाई....अगली बधाई 1001वीं पोस्ट पर दी जाएगी...क्यूं कि हमारे पास बधाई का स्टाक थोडा कम है :)
बधाई हो जी बधाई.आजकल वैसे ही बाबाओं का जमाना है.
ReplyDeleteसॉफ़्टवेयर आना बाकी है अभी!?
ReplyDeleteगलत जानकारी दे रहे हैं आप :-)
हा हा
वैसे, जहाँ डेढ़ घंटे में 550 टिप्पणियों का रिकॉर्ड हो वहाँ बेचारा सॉफ़्टवेयर भी पानी मांगने लगेगा
बी एस पाबला
hahaha
ReplyDeleteye maine post padh kar kaha hai
aur fokat me kaha hai
kripya not kar lenh
taaki wakt-e-zaroorat sanad rahe
ऐसा सॉफ़्टवेयर पहले से ही उपलब्ध है जी. जरा यहां देखिये: तैयार रहिये अपने ब्लॉग पर टिप्पणियों की बरसात के लिए
ReplyDeleteहवा जो चली है ये न जाने कहाँ ले जाएगी अपने साथ
ReplyDeleteहा हा स्वागत है नई दूकान का ..
ReplyDeleteबढ़िया है आज कल बढ़ती माँग को देख कर सही है..बढ़िया चर्चा,,मजेदार
ReplyDeleteजी.के. अवधिया जी आप की दुकान तो जरुर चलेगी, कोई साथी चाहिये हाथ बटांने के लिये तो हम हाजिर है, हर टिपण्णी पर ५०% हमारा ४०१ वी पोस्ट की बधाई
ReplyDelete.....मजेदार हिंदी ब्लॉग की दुनिया....हर जगह "पोस्टो' पर "टिप्पणिया".....
ReplyDelete....अवधिया जी के ब्लॉग पर मिले...."टिप्पणियो" पर "पोस्ट"......फिर उन्ह पोस्टो पर "टिप्पणिया"......
आगे कहूँगा......
....अवधिया जी जाने "टिप्पणियो" से क्यूँ खफा नजर आते हैं.....पर यह भी सच हैं कि सबसे अधिक टिप्पणिया भी वही पाते हैं......
....मन में आपके लिए आदर लिए......आपके स्नेह कि कामना लिए.....
यशवंत मेहता
बेहद रोचक और मार्मिक व्यंग्य है।
ReplyDeleteकायदे से देखा जाए तो कइओ कि आत्मा को झकझकोर जाना चाहिए लेकिन क्या चिकने घड़ों पे भी कोई असर पड़ता है?...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया व्यंग्य ...तालियाँ
टिप्पणीकार देव: भव:
ReplyDeleteजय हिंद...
4सौ वीं नहीं
ReplyDelete4 सौ 20वीं
ज्यादा आनंद देती
जब आये
तो
जरूर बतलायें।
अवश्य खोलें
ReplyDeleteहम उधार में भी सप्लाई कर देंगे और आप जितने में बेचेंगे उससे रेट भी आधे ही लेंगे और आपके बिना किसी को नहीं देंगे।
इंतजार रहेगा टिप्पणियों की दुकान का।
बधाई हो अवधिया जी,दूकान खोलें तो हमे जरूर बताना,बड़े ग्राहक रहेंगे आपके ,मगर एक शर्त पर,माल उधार मे लेंगे।
ReplyDeleteआदरणीय अवधिया जी...
ReplyDeleteसादर नमस्कार....
401वीं पोस्ट की आपको बहुत बहुत बधाई.
सार्थक व्यंग आपकी बात में वजन है
ReplyDeleteवैसे हम आपको सहयोग नहीं कर पाएंगे माफ़ी चाहेंगे
जब से बाबा रणछोडदास श्यामलदास चांचड का प्रवचन सुने हैं तभी से सोच लिए थे कि अब मन माफ़िक काम वाला नौकरी करेंगे ..सुने हैं कि आपके इहां एक ठो सेल्समैन की जरूरत है टीपने के लिए ..बायोडाटा भेज रहे हैं ...एक दम हर्बल बायोडाटा है ..जरा गौर फ़रमाईयेगा ...कब से ज्वाईन करना है ..बताईयेगा
ReplyDeleteआपकी इस कंपनी के शेयर कब लिस्ट करवा रहे हैं? बहुत तगडे ऊछाल की संभावना है.
ReplyDeleteरामराम.
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ReplyDeleteसर्व प्रथम पांचवे शतक की ओर अग्रसर होने की बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteआज के माहौल को देखते हुए अभी चल रहे तरुण सागर जी के कडवे प्रवचन की तरह अच्छा लिखा है आपने. टिपण्णी का मतलब मेरे विचार से "मीठ लबरई" टिपण्णी से नहीं है. यदि वास्तव में किसी के लेख या रचना से आपके जो विचार उत्पन्न होते हैं उसे लिख बैठना है. कोई झिझक नहीं होनी चाहिए यदि आपके विचार में उस लेख या रचना की कुछ नकारात्मक चीजों की ओर ध्यान जाता है. और समस्त ब्लागरों के लिए भी यह लिखना उचित ही होगा "निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय. बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय".
दुकान खोलिये खूब चलेगी! चार सौ का आंकड़ा पार करने की बधाई!
ReplyDeleteअब आपकी दूकान चले या ना चले पर आपने व्यंग बहुत करारा किया है....और वैसे सच है टिप्पणियों से ही पता चल पता है की किसकी पोस्ट को लोग पसंद करते हैं.....
ReplyDeleteआपकी 401 वीं पोस्ट के लिए बधाई
इस बेहतरीन सुझाव के लिये धन्यवाद अभी अक तो टिप्पणियो मे वैदिक विनिमय व्यवस्थ ही चल रही थी मतलब ई दे ई ले ..अब शायद बाज़ारवाद का नया असर देखने को मिले .. हा हा हा ।
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