अब जब भी आप अपना कम्प्यूटर खोलेंगे, स्वयं को ब्लागवाणी में लागिन ही पायेंगे जब तक कि आप स्वयं लाग आउट नहीं होंगे तब तक आपका कम्प्यूटर आपके लागिन को याद रखेगा।चलते-चलते
शाम का धुंधलका छा गया था और हल्की बारिश हो चुकी थी। मेकेनिकल इंजीनियर साहब की कार का पहिया पंचर हो गया। उन्होंने गाड़ी रोकी और जैक लगाकर पहिया बदला किन्तु जब पहिये को कसने के लिये नटों को देखा तो पता चला कि चारों नट ढुलक कर खो गये हैं। अब बड़े परेशान हो गये वे। माथा ठोंक लिया और उनके मुँह से निकल पड़ा, "हे भगवान! अब क्या करूँ।"
पास ही पागलखाना था जहाँ एक खिड़की पर बैठा हुआ पागल यह सब देख रहा था। उसने वहीं पर से पुकार कर कहा, "साहब! परेशान क्यों हो रहे हो? कार के बाकी तीन पहियों से एक एक नट निकाल कर चौथा पहिया कस लो। घर या गैराज तक तो पहुँच ही जाओगे।"
इंजीनियर साहब ने वैसा ही किया और खुश होकर बोले, "यार! किसने तुझे पागलखाने में भेज दिया है? भाई! तू जरा भी पागल नहीं है!!"
पागल ने गम्भीर स्वर में कहा, "नहीं साहब! पागल तो मैं हूँ, पर बेवकूफ नहीं हूँ।"
सही है।
ReplyDeleteवाह अवधिया जी आपने तो समस्या हल कर दी। पागल तो हम थे हा हा हा शुभकामनायें
ReplyDeleteडेढ़ होशियार तो हम समझ लेते हैं अपने आप को
ReplyDeleteछोटी सी बात भी नहीं बन पाती वक्त पे
याद करने लग जाते हैं बड़े बाप को
हास्य के साथ सीख लेने वाली बात बहुत अच्छा
(अब सर बहुत अच्छा = कितना)
अच्छी जानकारी मिली, समस्या से निजात मिली, आभार !
ReplyDelete"नहीं साहब! पागल तो मैं हूँ, पर बेवकूफ नहीं हूँ।"
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ग्रेट! गम्भीरता से।
MAIN BHI PAAGAL NAHIN HOON ..
ReplyDeleteBAS MERA DIMAAG KHARAB HAI...
HA HA HA HA
सही है बेवकूफ मैकेनिकल इंजिनियर को समझदार पागल सलाह दे सकता है।
ReplyDeleteओह !गज़ब का पागल।
ReplyDeleteजानकारी सही है।
badhiya jankari magar pagal bhi sahi baat kah gaya..........bahut khoob.
ReplyDeleteऐसे पागलों की संख्या में वृद्धि हो!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बढिया जानकारी!!
ReplyDeleteआज पता चला कि बेवकूफी पागलपन से कहीं अधिक चिन्ताजनक है :)
:) जय हो!!
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