एक विचार आया कि क्या मैं एक वर्णिक छंद की रचना कर सकता हूँ? वह भी ब्लोगिंग के ऊपर? आपको पता ही है कि मैं कोई कवि नहीं हूँ। वैसे लेखक, साहित्यकार या पत्रकार भी नहीं हूँ। फिर भी प्रयोग के रूप में एक वर्णिक छंद रचने के प्रयास में जुट गया। सोचा कि गुरु|लघु|लघु मात्राओं याने कि भगण का प्रयोग करते हुए लिखा जाये। गण तो याद है ना आपको? अरे वही जो स्कूल में पढ़ा था "यमाताराजभानसलगा" वाला। चलिये अब तो याद आ ही गया होगा।
तो बनी ये पंक्तियाँ
ब्लोगिंग के गुर सीख लिये हम पोस्ट लिखो कुछ जो हिट होइ जाये।
पाठक आय न आय वहाँ पर ब्लोगर धावत धावत आये॥
.....................................................
.....................................................
.....................................................
.....................................................
अब यहाँ आकर अटक गया मैं क्योंकि कवि तो हूँ ही नहीं। इसलिये सोचा कि क्यों न आप सभी की सहायता ली जाये। अब आगे पूरा करने के लिये बाकी पंक्तियाँ आपको सुझाना है। पंक्तियों में भगण का ही प्रयोग करना है याने कि शब्दों का चयन ऐसा हो कि क्रम से गुरु|लघु|लघु मात्राएँ ही आयें।
उदाहरण के लिये रसखान का यह छंद पढ़ लीजियेः
धूरि भरे अति शोभित श्याम जु तैसि बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरै अँगना पग पैजनिया कटि पीरि कछौटी॥
वा छवि को रसखान बिलोकत वारत काम कलानिधि कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी हरि हाथ से ले गयो माखन रोटी॥
तो बस फिर देर क्या है? शुरू हो जाइये अगली पंक्ति बनाने के लिये।
और हाँ, आपकी इस सहायता के लिये अग्रिम धन्यवाद!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकविता मनकी तरंग है भाई व्याकरण मे उलझत हो काहे।
ReplyDeleteजैसे भी चाहो कहो निजि बतिया आनंद आवै ऐसा लो गाये।
सुख दुख मन ये खेल रहौ है शब्दो का भ्रम जाल फैलाये।
परमजीत चलत हौ निजि पथ पथ जिस ओर चहे लेई जाये।
अपने तो बस के बाहर की बात है अवधिया जी।
ReplyDeleteदिल हमारा बगिया-बगिया होवत जात है
ReplyDeleteजब बिना पोस्ट पड़े ही वो टिपियावत जाये !:)
हमारे बस का नहीं
ReplyDeleteअपने तो सर के ऊपर से उतर गई।
ReplyDeleteइस मामले में अपने तो हाथ खडे हैं जी :)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअभी कुछ कवि ब्लोगर आते ही होंगे ! हमारे तो ये कविता बनाने वाली बात दिमाग के ऊपर से ही निकल जाती है |
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअवधिया जी क्षमा करें, पहली टिप्पणी में टाइपिंग मिस्टेक था। संशोधित टिप्पणी ये रही-
ReplyDeleteसात भगण अ और दो गुरू यानि तेइस वर्णों का यह मत्तगयंद नामक सवैया है। आपकी दूसरी पंक्ति तो ठीक है पर पहली में आपने 25 वर्ण ले लिये हैं, कृपया देखें। रही बात पंक्तियों की तो दो मेरी तरफ़ से भी ले लें-
देखत राह थकी अंखियां कितने दिन रोवत नीर बहाये
ब्लाग की नाव सुनो सजनी अब को बिनु पाठक पार लगाये
बहुत बहुत धन्यवाद रविकांत जी! आपने बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ जोड़ी हैं।
ReplyDeleteमूलतः मैं कवि नही हूँ और आज तक कभी छंद रचा ही नहीं इसलिये मुझसे गलती होना स्वाभाविक है। इस पोस्ट को लिखने का मेरा उद्देश्य मात्र छंदबद्ध रचना के विषय में स्मरण कराना ही था। मुझे खुशी है कि आपने मेरे इस प्रयास में बहुत अच्छा सहयोग किया।