सठियाने की भी एक सीमा होती है पर ये बुड्ढा तो सठियाने की सीमा पार कर गया है। कब्र में पाँव लटकाये बैठा है पर ब्लोगिंग का शौक नहीं गया। है तो पिद्दी जैसा पर अपने आपको बहुत बड़ा ब्लोगर बताता है। अकल तो ऐसी है इसकी कि कहे खेत की और सुने खलिहान की पर कमली ओढ़कर खुद को फकीर समझता है। "कहीं की ईँट कहीं का रोड़ा भानमती ने कुनबा जोड़ा" जैसे पोस्ट लिखकर तुर्रम खाँ बन जाता है। पर क्या कभी कागज की नाव चली है? इसे पढ़कर तो लोग सिर्फ यही कहते हैं कि क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा।
किस्मत का धनी है इसलिये अब तक टिका हुआ है यहाँ। "कबीर दास की उलटी बानी, बरसे कंबल भीगे पानी" जैसी उल्टी-उल्टी बातें करता है। किसी के बारे में कुछ भी लिख देता है, इसे पता नहीं है कि कमान से निकला तीर और मुँह से निकली बात वापस नहीं आती। जब गरीबी में आटा गीला होगा तब पता चलेगा बच्चू को! इस पर गुस्सा तो बहुत आता है पर क्या करें, ककड़ी के चोर को फॉंसी तो दी नहीं जाती। पर देख लेना एक दिन अपने किये की सजा जरूर पायेगा, कहते हैं ना कि कभी नाव गाड़ी पर तो कभी गाड़ी नाव पर! भला गधा कभी घोड़ा बना है? देर सबेर अपने किये को जरूर भुगतेगा, भगवान के घर देर है अन्धेर नहीं है!
पर क्या करें भाई, जब तक टपकेगा नहीं तब तक तो इसे झेलना ही पड़ेगा।
टपकें उनके दुश्मन...वो तो बनें रहें ब्लॉगिंग में..चाहे जैसे कुनबा जोड़ें.
ReplyDeleteअगर सच में आपको ये सब बातें सुनने को मिल चुकी है तो मैं घोषणा करना चाहूंगा कि आप सफल ब्लॉगर हैं :)
ReplyDeleteहर उम्र के लिए अलग गालियां हैं। मुझे अपने उम्र वाली मिल चुकी है।
हा हा हा हा
हा हा हा क्या हमे कह रहे हैं ? तब तो हम भी सफल ब्लागर हैं। धन्यवाद ।
ReplyDeleteaap log jawan hain, sahab. buddhe to wo hain jo kuchh karna nahi chahte.
ReplyDeleteVaah jordar likhe has ulat bansi
ReplyDeleteRaipur la kay kahibe tharrage kashi
Ye de post la padh ke Lagat he sathiya ges:)
Johar le
पर आप किसके गधे को घोडा बना रहे हैं? हमारे रामप्यारे तो हमारे पास ही है.:)
ReplyDeleteरामराम.
आज बहुत दुखी हूँ.... इस आभासी दुनिया में कभी रिश्ते नहीं बनाने चाहिए... कई रिश्ते दर्द देते हैं.... बहुत दर्द देते हैं... ऐसा दर्द जो नासूर बन जाता है...
ReplyDeleteहमने तो केवल कहावते पढ़ीं है. :) और सठीयाये आपके दुश्मन.
ReplyDeleteमुहावरों और लोकोक्तियों का यह प्रयोग बहुत पसन्द आया है जी
ReplyDeleteप्रणाम
:-)
ReplyDeleteमुहावरों,लोकोक्तियाँ का अच्छा प्रयोग किया आपने....
अवधिया जी,
ReplyDeleteक्या बात है आज ब्लॉगवुड का पारा अचानक राकेट की तरह ऊंचा क्यों चढ़ गया है...ये वार्तालाप किसका है, अवधिया जी जिसका आपने ज़िक्र किया है...
देश की शान लखनऊ यानि अवध से है और ब्लॉगवुड की जान अवधिया जी से है...टपके आपके दुश्मन...
जय हिंद...
क्या बात है खुशदीप जी, आपने इस पोस्ट को सच समझ लिया क्या? अरे भाई यह तो सिर्फ हमारी कल्पना की उड़ान थी कहावतों, मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग बताने के लिये।
ReplyDeleteअवधिया जी. पोस्ट पढ कर तो गुस्सा ही आया था, फ़िर आप के पुरानी पोस्टे पढी, देखे किस ने आप जेसे नोजवान को यह कहने की हिम्मत की.... ओर फ़िर आप की ऊपर वाली टिपण्णी पढी... तो समझ मै बात आई.बहुत सुंदर ढंग से आप ने गुस्स दिलवाया
ReplyDeleteapko pehle hi manna kiya tha ki blog par shrimati ji ki chugli mati kiya karo.....abhi to sirf gussa hi jhel rahe ho baba....jis din danda khaya us din mat bolna.....ki pehle nahi bataya tha.....maan bhi jao ab
ReplyDeleteइतना सब सुन कर भी आप एक दम डटे हैं काबिलेतारीफ,मुहावरों का अच्छा इस्तेमाल.
ReplyDeleteविकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
nice
ReplyDeleteबुढढे इतनी जल्दी टपकते नहीं। आपने अच्छा लिखा बुढिया नहीं लिखा। नहीं तो इतना भीषण संग्राम छिडता की निश्चित ही कोई टपक जाता।
ReplyDeleteभईया,
ReplyDeleteबताइए तो ज़रा कौन है वो जो इतना तीन पाँच कर रहा है....कह दीजिये उससे की फ़ौरन नौ-दो ग्यारह हो जाए वरना हम भी उसे दिन में तारे दिखा सकते हैं ...
हाँ नहीं तो....!!
हमने सुना है -- साठा ,तब पाठा
ReplyDeleteजानि ना जाये निशाचर माया. ये उसके सम्मान मे जिसने आपको बुडढा कहा क्योकि बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद. आपसे रश्क जिन्हे होता है उन्हे साठा सो पाठा का पाठ पढाओ और आपके सम्मान मे इतना ही जो कि कही सुना हुआ है -
ReplyDeleteउमर बढती है लेकिन दिल की हसरत कम नही होती
पुराना कुकर क्या सीटी बजाना छोड देता है ?
गुस्सा बयाँ करने का बढ़िया अंदाज....
ReplyDeleteबेहतरीन। लाजवाब।
ReplyDeleteये किसके लिए था जी ?
ReplyDeleteहमारा देश भी तो सठिया गया है कहीं ...........
अवधिया जी,
ReplyDeleteक्या बात है आज ब्लॉगवुड का पारा अचानक राकेट की तरह ऊंचा क्यों चढ़ गया है...ये वार्तालाप किसका है, अवधिया जी जिसका आपने ज़िक्र किया है..