Friday, March 12, 2010

मैं चला मैं चला ....

सम्भालो अपने इस ब्लोगिस्तान को। अब मेरी यहाँ कुछ भी जरूरत नहीं है। मेरे कुछ कह देने से बहुत से लोगों का दिल दुख जाता है यहाँ पर। तो फिर मैं यहाँ रहूँ ही क्यों? और फिर यहाँ के अन्य लोगों के कारण से मेरी भी भावनाओं को तो ठेस पहुँचती है। अच्छा तो यही होगा कि न मेरे कारण दूसरों का दिल दुखे और न ही उनके कारण मैं स्वयं को व्यथित करूँ।

इसलिये ...

मैं चला मैं चला ...

पर मैं आखिर बता के क्यों जाना चाहता हूँ? बगैर बताये चुपचाप भी तो जा सकता हूँ। ये मेरा बता के जाना क्या सिद्ध करता है?

जब किसी अपने से लड़ाई हो जाती है तो कई बार लोग स्वयं अपना गाल पीट लेते हैं किन्तु किसी पराये से लड़ाई होने पर कभी कोई खुद को नहीं पीटता। कारण स्पष्ट है कि स्वयं को चोट पहुँचाने वाला जानता है कि उसे चोट पहुँचने से सामने वाले को दुःख होगा।

इसी प्रकार से जब कोई इस ब्लोग जगत से जाने की बात करता है तो वह भी जानता है कि उसके जाने से अन्य ब्लोगर्स को दुःख अवश्य ही होगा, यदि वह अन्य ब्लोगर्स को अपना नहीं समझता तो बगैर सूचना के चुपचाप चला जाता।

यह सब बताकर मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूँ कि इस ब्लोग जगत में सभी अपने हैं और यह हमारा परिवार है। अब जहाँ चार बर्तन होते हैं तो कभी न कभी टकरा भी जाते हैं।

जब हम सभी एक दूसरे के हैं तो फिर आइये संकल्प लें कि एक दूसरे की भावनाओं को समझेंगे और प्रेम की गंगा बहायेंगे इस ब्लोग जगत में!

अब तो आप समझ ही गये होंगे कि ...

मैं रुका मैं रुका ...

दम है किसी में तो यहाँ से निकाल के दिखाये मुझे।

तो पोस्ट का सार यह कि बुड्ढा पैग मारकर चढ़ गया था टंकी पर और नशा उतरने पर बगैर कूदे सीढ़ी से वापस उतर आया।

25 comments:

  1. "दम है किसी में तो यहाँ से निकाल के दिखाये मुझे।"
    घुडकी पसंद आई अवधिया साहब !:) :)

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  2. युं ना जाओ रुठकर---दिल अभी भरा नही।

    डोकरा सठियाच गे हे गा। कैसे कैसे करत हे।

    मौसी नई आइस का, जौन टंकी ले कुद परे।

    देख रे ददा ए उमर मा हड्डी घलो नई जुरय्।
    देख के खतरा मोल लेय कर्।

    जय हो

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  3. मैं चला मैं चला...
    मैं रुका मैं रुका ...

    वाह क्या खूब अंदाज हैं...पसंद आया जी, जायें आपके दुश्मन...पर यहां दुश्मन कोई है ही नही.

    रामराम.

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  4. जीना यहाँ मरना यहाँ
    जैसा भी हो टिप्पणी पचाना यहाँ

    हज़ार ब्लॉग ऐसी हर ब्लॉग पे हम फिसले
    बहुत मार खाए टिप्पणी में पर दम न निकले

    तेरे ब्लॉग पे बुरी नज़र न रखेंगे हम
    मान गए अवधिया तुझमे है बहुत दम

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  5. अगर रिश्ते बनाना लेखन में बाधा बन रहे हो तो बेहतर है इमानदार लेखन के लिए रिश्ते बनाए ही न जाय. सही सही लिखना ही ब्लॉगिंग है. मन की सुनो...खूब लिखो.

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  6. मैं तो घबरा गया था,बबा को आखिर हो क्या गया है?मगर बाद मे पता चला ये तो मौसम की गड़बड़ी है सारी।मज़ा आ गया अवधिया जी न जाना है और ना जायेंगे।
    जय-वीरू का गाना था ना वो,
    ये ब्लागिंग हम नही छोड़ेंगे,

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  7. मै चला मै चला.... ..पर मै जाऊंगा नहीं ? यही तो वीरता है शोले के वीरू की तरह ...आनंद आ गया ..

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  8. अनिल जी सही कह रहे हैं ये सब मौसम की हड़बड़ी और गड़बड़ी है ....

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  9. आप तो यहाँ भी हम महिलाओं का गाना ही चुरा लिए हैं। मैं चली, मैं चली, देखो प्रेम की गली। टंकी पर चढ़कर गाना ही है तो गाइए मैं चला जाऊँगा। इसे ही कहते हैं परिवार, जिसे बड़े-बूढें ही सम्‍भाल कर रखते हैं। आपका आभार।

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  10. अवधिया जी ब्लोगिस्तान का भूत तो वानप्रस्थ के बाद भी उतरने से रहा ....मौसमी आंधी तूफ़ान के बाद अब तो मौसम सुहाना ही है

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  11. आदरणीय
    आपका मजाक अच्छा लगा

    सबको मालूम है कि जिसे जाना होता है वो ढोल पीट-पीट कर नही जाता
    वो तो दूसरों की सहानुभूति पाने, दूसरों का दिल दुखाने और भाव बढाने के लिये मुनादी करता है। सब उसे रोकने के लिये खामख्वाह मक्खन लगाने और पुचकारने लगते हैं।
    एक बार अलविदा शुभकामनायें दे कर देखो, क्या वह सचमुच जाता है? कभी नहीं॥….….॥…।
    वरना जाने वाले को कौन रोक पाया है जी

    प्रणाम
    प्रणाम

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  12. कोई पागल है जो आपसे टकराएगा ? हा हा

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  13. acha लगा ese ही लगे rahiye

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  14. वाकई में! है किसी की हिम्मत?

    वैसे सोनल जी का कहना पसंद आया कि
    ब्लोगिस्तान का भूत तो वानप्रस्थ के बाद भी उतरने से रहा :-)

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  15. तो पोस्ट का सार यह कि बुड्ढा पैग मारकर चढ़ गया था टंकी पर और नशा उतरने पर बगैर कूदे सीढ़ी से वापस उतर आया।
    शुकर भगवान का मेने पुलिस को फ़ोन नही किया, क्योकि कल रात को टंकी पर कुछ खट पट की आवाज आ रही थी, तो वो आप थे, लेकिन सीढी से क्यो उतरे लिफ़्ट भी अब काम करती है जी :)
    बहुत सुंदर लगी आप की यह पोस्ट, पहले तो लगा की जल्द ही टंकी की झाडपोंछ करवाऊं, पहली वार कोई मेहमान आ रहा है:)

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  16. bhaiya,
    sabse acchi baat ye lagi aapki..
    दम है किसी में तो यहाँ से निकाल के दिखाये मुझे
    bahut badhiya..

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  17. बुड्ढा पैग मारकर चढ़ गया था टंकी पर और नशा उतरने पर बगैर कूदे सीढ़ी से वापस उतर आया.nice

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  18. अच्छा है
    @ सुमन
    कुछ लोग तो बिना चढे ही उतरते चले जाते हैं

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  19. अच्छा है
    @ सुमन
    कुछ लोग तो बिना चढे ही उतरते चले जाते हैं

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  20. फ़िर दादा, पक्का है न कि रुकोगे?

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  21. तो पोस्ट का सार यह कि बुड्ढा पैग मारकर चढ़ गया था टंकी पर और नशा उतरने पर बगैर कूदे सीढ़ी से वापस उतर आया।


    अँग्रेज़ बुड्ढे जब टंकी पर चढ़ते हैं, तो उसे पैग मारकर टंकी पर चढ़ना कहते हैं।
    हा हा।

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  22. शोले की नौटंकी और टंकी सब ने देखी है. जब होता है उसी अंदाज में आ जाता है और बाकी सब गाँव वालों के रोल में फिट .....यह सब ऐसे ही चलता रहेंगा.....जब ब्लॉगवुड का नाम दे दिया गया है तो ये सब भी देखना ही पड़ेगा ना...

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  23. आपकी आखिरी लाइनें पढने से पहले मैं यही समझ रहा था कि बुड्ढा चढ़ गया टंकी पर, मगर पटाक्षेप पर ?? खूब हंसाया आपने भाई जी !
    भगवान् धडाधड लिखता रहे आपसे , इसी तरह जवानों की ऐसी तैसी करते रहो ...
    शुभकामनायें !

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  24. हहहहहहाहा हा हा
    हहहहहः हा हा हा हा हा हा
    मरे जियो लेटिपीयाइन घई ल नई पाईन
    एखर, दर असल अवधिया जी हा कहिस
    मैं चला अब अगले पोस्ट को पोस्टियाने
    लिखत रहौ जी झन जावौ एती ओती

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