Friday, March 19, 2010

बेचारी हिन्दी ... ये वो थाली है जिसमें लोग खाते हैं और फिर उसी में छेद करते हैं

अंग्रेजी के 26 अक्षर तो रटे हुए हैं आपको, पूछने पर तत्काल बता देंगे। किन्तु यदि मैं पूछूँ कि हिन्दी के बावन अक्षर आते हैं आपको तो क्या जवाब होगा आपका? अधिकतर लोगों को यह भी नहीं पता कि अनुस्वार, चन्द्रबिंदु और विसर्ग क्या होते हैं। हिन्दी के पूर्णविराम के स्थान पर अंग्रेजी के फुलस्टॉप का अधिकांशतः प्रयोग होने लगा है। अल्पविराम का प्रयोग तो यदा-कदा देखने को मिल जाता है किन्तु अर्धविराम का प्रयोग तो लुप्तप्राय हो गया है।

परतन्त्रता में तो हिन्दी का विकास होता रहा किन्तु जब से देश स्वतन्त्र हुआ, हिन्दी का विकास तो रुक ही गया उल्टे उसकी दुर्गति होनी शुरू हो गई। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद शासन की नीति तुष्टिकरण होने के कारण हिन्दी को राष्ट्रभाषा के स्थान पर "राजभाषा" बना दिया गया। विदेश से प्रभावित शिक्षानीति ने हिन्दी को गौण बना कर अग्रेजी के महत्व को ही बढ़ाया। हिन्दी की शिक्षा धीरे-धीरे मात्र औपचारिकता बनते चली गई। दिनों-दिन अंग्रेजी माध्यम वाले कान्वेंट स्कूलों के प्रति मोह बढ़ते चला गया और आज हालत यह है कि अधिकांशतः लोग हिन्दी की शिक्षा से ही वंचित हैं।

हिन्दी फिल्मों की भाषा हिन्दी न होकर हिन्दुस्तानी, जो कि हिन्दी और उर्दू की खिचड़ी है, रही और इसका प्रभाव यह हुआ कि लोग हिन्दुस्तानी को ही हिन्दी समझने लगे। टीव्ही के निजी चैनलों ने हिन्दी में अंग्रेजी का घालमेल करके हिन्दी को गर्त में और भी नीचे ढकेलना शुरू कर दिया और वहाँ प्रदर्शित होने वाले विज्ञापनों ने तो हिन्दी की चिन्दी करने में "सोने में सुहागे" का काम किया।

रोज पढ़े जाने वाले हिन्दी समाचार पत्रों, जिनका प्रभाव लोगों पर सबसे अधिक पड़ता है, ने भी वर्तनी तथा व्याकरण की गलतियों पर ध्यान देना बंद कर दिया और पाठकों का हिन्दी ज्ञान अधिक से अधिक दूषित होते चला गया।

हिन्दी के साथ जो कुछ भी हुआ या हो रहा है वह "जिस थाली में खाना उसी में छेद करना" नहीं है तो और क्या है?

अब ब्लोग एक सशक्त एवं प्रभावशाली माध्यम बन कर उभर रहा है किन्तु वहाँ पर भी हिन्दी की दुर्दशा ही देखने के लिये मिल रही है।

यदि हम अपनी रचनाओं के माध्यम से हिन्दी को सँवारने-निखारने का कार्य नहीं कर सकते तो क्या हमारा यह कर्तव्य नहीं बनता कि कम से कम उसके रूप को विकृत करने का प्रयास न करें।

चलिये बात हिन्दी के वर्णमाला से आरम्भ किया था तो उसे भी पढ़वा दें आपकोः

अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ॠ ऌ ॡ
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण

प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह
क्ष त्र ज्ञ

वास्तव में यह देवनागरी लिपि है। संस्कृत में उपरोक्त सभी अर्थात् बावन वर्णों का प्रयोग होता है किन्तु हिन्दी में ॠ, ऌ, ॡ आदि का प्रयोग नहीं होता। ङ और ञ का प्रयोग भी नहीं के बराबर ही होता है या कहा जा सकता है कि आजकल होता ही नहीं। यहाँ पर यह बताना भी उचित रहेगा कि ड़ और ढ़ अक्षर नहीं बल्कि संयुक्ताक्षर हैं।

21 comments:

  1. गुरुदेव की जय हो. आप तो यह हिंदी की कक्षा लेना शुरु कर दिजिये तो हिंदी का और हम जैसे लोगों का बहुत भला हो जायेगा. इमानदारी से कहुं तो वाकई इतनी जानकरी हमें भी नही है. बहुत सुंदर और उत्तम प्रयास है. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. सुंदर और प्रभावी पोस्ट.

    रामराम.

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  3. sachmuch bahut kam logt sahi hindi bolte ya likhte hain

    achha aalekh

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  4. अब तो हिन्दी के पाठ्यक्रम से ही
    बहुत सारे पाठ गायब हो गए हैं।
    जिन्हे हम पढा करते थे।

    अच्छी पोस्ट
    आभार

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  5. हिंदी के लिये आपका ये सम्मान,
    याद रखेगा ब्लागिस्तान्॥

    बढिया पोस्ट अवधिया जी,ये बात सही है फ़िल्मों और टीवी की भाषा के साथ-साथ अख़बारों की भाषा भी उसकी दुर्गति मे लग गई है।

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  6. विचारोत्तेजक पोस्ट
    आभार

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  7. आदरणीय नमस्कार
    एक बहुत जरूरी पोस्ट प्रकाशित करने के लिये आपका धन्यवाद

    क्या गंगा और संयम को हम गङ्गा और सञ्यम भी लिख सकते हैं।

    प्रणाम स्वीकार करें

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  8. कृपया ध्यान दीजिये,
    १. ऋ, अ आ इ ई उ ऊ के बाद आता है।
    २. त वर्ग, ट वर्ग के बाद आता है।
    पहले ट ठ ड ढ ण
    उसके बाद त थ द ध न

    धन्यवाद।

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  9. @ अन्तर सोहिल

    "क्या गंगा और संयम को हम गङ्गा और सञ्यम भी लिख सकते हैं।"

    हम गंगा को गङ्गा अवश्य लिख सकते हैं किन्तु संयम को सञ्यम नहीं लिखा जा सकता क्योंकि संयम शब्द के उच्चारण में "ञ" का प्रयोग न होकर "अं" का होता है। मोटे तौर से यह समझ लें कि जब हम किसी उच्चारण में मुँह के साथ साथ नाक का भी प्रयोग करते हैं तो "ञ" या उसके आधे का प्रयोग होता है जैसे कि "पाञ्चजन्य", "क्रौञ्च" आदि।

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  10. और

    श ष स ह सही क्रम है,
    न कि स श ष ह।

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  11. मेरी गलतियों का ध्यान दिलाने के लिये धन्यवाद मिश्र जी। भूल सुधार कर दिया गया है। शीघ्रता में सिर्फ याददाश्त के भरोसे लेख लिखने के कारण मुझसे गलतियाँ हो गई थीं जिसके लिये मुझे अत्यन्त खेद है।

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  12. बहुत ही अच्‍छा प्रयास, आपका अभिनन्‍दन।

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  13. अच्छी पोस्ट है. हिन्दी को धीरे-धीरे विकृतियों से मुक्त करने का सत्प्रयास करना चाहिये.

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  14. बहुत सुंदर अवधिया जी , मजेदार आगे का पाठ यानि कल का इंतजार रहेगा

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  15. गुरुदेव- वैसे तो मै आपको
    कष्ट देना नही चाहता
    पर जिज्ञास वश पुछ रहा हुँ
    "श-ष-स" आदि को
    स्वर विज्ञान मे अन्य किन
    नामो से जाना जाता है।
    कृपया खुलासा करने का कष्ट करें

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  16. ललित जी,

    चूँकि श, ष और स का उच्चारण करते समय जीभ क्रमशः मूर्धा, तालू और दाँत से टकराती है, इसलिये इन्हें क्रमशः मूर्धन्य, तालव्य और दंन्त्य के नाम से जाना जाता है।

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  17. बहुत ही बढिया एवं विचारणीय आलेख....
    यहाँ ब्लागजगत में भी हिन्दी की सेवा और उसके उत्थान का दंभ भरने वाले लोग ही इसका कचरा करने में लगे हुए हैं.....

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  18. इस आलेख में विषय को गहराई में जाकर देखा गया है और इसकी गंभीरता और चिंता को आगे बढ़या गया है।

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  19. साधुवाद!! सराहनीय प्रयास!

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  20. विचारणीय जानकारी! 'ज्ञ' अक्षर का शुद्ध उच्चारण 'ज्या' बताया जाता है?

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  21. एक बेहतरीन पोस्ट के लिए आपका आभार !

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