क्षेत्र चाहे बल्लोगिंग हो, कला हो, क्रीड़ा हो या चाहे जो भी हो, अपने क्षेत्र में आगे ही आगे बढ़े जाने की चाह भला किसे नहीं होती? आगे बढ़ते-बढ़ते सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर लेना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात है एक बार ऊँचाई में पहुँचने के बाद वहाँ बने रहना।
सर्वोच्च स्थान पर बने रहना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि और भी बहुत सारे लोग उस स्थान के दावेदार होते हैं जो वहाँ पहले से ही पहुँचे हुए व्यक्ति को नीचे खींच कर स्वयं उसका स्थान ले लेना चाहते हैं। दूसरी ओर यह बात भी है कि जो व्यक्ति सर्वोच्च स्थान पर होता है वह कभी भी यह नहीं चाहता कि उसे नीचे धकेल कर कोई अन्य उसके स्थान पर आ जाये। यही कारण है कि सदुद्देश्य का कार्य करते करते जो भला आदमी एक बार ऊँचाई पर पहुँच जाता है वही वहाँ पहुँचने के बाद भलाई का त्याग कर देता है और वहाँ बने रहने के लिये नये नये हथकंडे सीख लेता है। अंग्रेजी का एक प्रॉव्हर्ब है "Ability can take you to the top, but it takes character to keep you there." अर्थात् "योग्यता आपको सफलता की ऊँचाई तक पहुँचा सकती है किन्तु चरित्र आपको उस ऊँचाई पर बनाये रखती है"। पर होता यह है कि ऊँचाई पर बने रहने का स्वार्थ चरित्र पर भारी पड़ने लगता है और एक न एक दिन यह स्वार्थ व्यक्ति को ऊँचाई से नीचे खींच लाता है।
इसलिये सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर लेने वाले को याद रखना चाहिये कि "जिस किसी का भी उत्थान होता है उसका कभी न कभी पतन भी अवश्य ही होता है"।
अवधिया जी,बहुत बढिया विचार प्रेषित किए हैं।आभार।
ReplyDeleteऊँचाई पर पहुंचने के लिए यदि योग्यता और चरित्र का ही सहारा लिया जाएगा तब वह टिकाऊ होगी लेकिन यदि चापलूसी से ऊँचाइयां खरीदी है तब एक दिन पतन निश्िचत है।
ReplyDeleteसत्य वचन अवधिया जी।
ReplyDeleteबहुत सही बात कही बड़े गुरुजी
ReplyDeleteपीतल पर सोने की पालिश उतर ही जाती है।
एक दिन कलई खुल ही जाती है।
ज्ञान दर्पण के लिए-आभार
प्रकृति हर वक्त संतुलन के लिए काम करती है .. कल तुम्हारी तो आज हमारी .. सबकी तो आएगी बारी .. नीचे जाने से डरना क्या ?
ReplyDelete"जिस किसी का भी उत्थान होता है उसका कभी न कभी पतन भी अवश्य ही होगा"
ReplyDeleteकिन्तु इमानदारी और योग्यता के बल पर इंसान भले ही देर से शिखर पर पहुंचता हो मगर देर तक टिका रहता है !
बहुत सुंदर और अच्छा विचार.... जीवन में उतारने योग्य ....
ReplyDeleteधन्यवाद...
आप की बात से सहमत हुं, लेकिन जो व्यक्ति बिना लालच के ऊंचाई पर पहुचता है, उसे तो पता ही नही होता कि उसे के चाहने वालो ने उसे कहां पहुचा दिया, वो मस्त रहता है.
ReplyDeleteलेकिन जो चापलुसी, चमच्चा गिरी, हेरा फ़ेरी ओर गलत ढंग से ऊंचाई पर पहुच जाता है, जिस का मकसद ही बस उस ऊंचाई पर पहुचना है, वो एक बार तो जरुर पहुच जाता है उस ऊंचाई पर लेकिन फ़िर ऎसा गिरता है की उस के पांव तले की जमीन भी उसे नही मिलती..... इस्लिये उस ऊंचाई पर बने रहने के लिये चरित्र वान होना ओर उस पर कायम रहना, ओर लालच रहित रहना जरुरी होता है.
धन्यवाद इस अति सुंदर लेख के लिये
"जिस किसी का भी उत्थान होता है उसका कभी न कभी पतन भी अवश्य ही होता है"।
ReplyDeleteउत्थान और पतन सापेक्ष है. जिसे हम उत्थान समझ रहे है वह किसी की दृष्टी में पतन हो सकता है.
अवधिया जी हम भुल गये कल आप के ब्लांग के जरिये हम इस आम बेचने वाले के पास मेल किये थे, कि भाई थोडे आम हमे भेज दे, ओर बताये कि कितना खर्च आयेगा, तो इन्होने मना कर दिया कि यह विदेशो मै आम नही भेजते, लेकिन जो रेट यह बता रहे है वो भारत मै तो बहुत महंगे लगे, यानि २००० रुपये के ४८ आम बाप रे...
ReplyDeleteसच है. बढिया विचार.
ReplyDeleteसच है..कुदरत जीवन की ऊँचाई को छूने का मौका तो सबको उपलब्ध कराती है...लेकिन ऎसे बहुत कम लोग होते हैं जो उस ऊँचाई तक पहुँचकर भी पैर मजबूती से टिकाए रखते हैं.....
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