कल हम रास्ते में थे कि एकाएक ठिठक कर रुक जाना पड़ा हमें। सामने से एक बारात आ रही थी जिसके आगे आगे लकदक ड्रेस पहने बैंड बाजा वाले सुरीली धुन बजाते हुए चल रहे थे। क्लॉर्नेट से निकलती हुई फिल्म 'मुगल-ए-आज़म' के मेलॉडियस और कर्णप्रिय गाने "मोहे पनघट पे नन्दलाल ..." की धुन ने बरबस ही वहाँ पर तब तक के लिये रोक लिया जब तक कि वह धुन पूरी ना हो गई। संगीत के सम्मोहन ने बहुत देर तक बाँध रखा हमें।
हम सोचने लगे कि पिछली बार कब सुना था हमें बैंड बाजा? बहुत सोचने पर भी याद नहीं आया। सुनें भी तो कैसे? आज बैंड बाजे का चलन रह ही कहाँ गया है? और रहे भी तो कैसे? आजकल जो गाने बनते हैं उन्हें बैंड बाजे पर बजाया भी तो नहीं जा सकता। जी हाँ, बैंड बाजे में मैलॉडी तो बजाई जा सकती है पर शोर को बजाना मुश्किल ही नहीं असम्भव है।
एक जमाना था कि बैंड बाजा के बिना शादी-विवाह जैसे शुभ कार्य सम्पन्न ही नहीं हो पाते थे। वैसे तो रायपुर में उन दिनों बहुत सी बैंड पार्टियाँ थीं किन्तु सबसे अधिक नाम था "सिद्दीक बैंड पार्टी" और "गुल मोहम्मद बैंड पार्टी का"। शादी बारातों और गनेश विसर्जन के जुलूसों में इन्हीं का वर्चस्व दिखाई पड़ता था। ये बैंड वाले जब "कुहूँ कुहूँ बोले कोयलिया ..." की धुन बजाया करते थे तो ऐसा कोई भी न था जो मन्त्रमुग्ध न हो जाये!
आज बैंड बाजा लुप्त हो चुका है, डी.जे. और धमाल पार्टियों के शोर ने बैंड बाजे की मैलॉडी और मधुरता को निगल डाला है।
ब्लॉगरी में तो हम लोग रोज ही बजते बजाते हैं - बैंड। बस मेलॉडी नहीं होती।
ReplyDelete...सोच रहा हूँ मेलॉडी कैसे लाई जाय इस बजने बजाने में ?
अवधिया साहब ,अपना तो खुद का बैंड १९-२० साल पहले बजा था और हमें उसे सुनना पडा था, उसके बाद से तो दोबारा सुनने की हिम्मत ही नहीं हुई ! :)
ReplyDelete@ पी.सी.गोदियाल
ReplyDeleteअजी १९-२० साल पहले कहाँ, बल्कि पूरे 34 साल पहले हमारा बैंड बजा था जो कि आज तक बजते ही चला आ रहा है। :)
p .c .गोदियाल जी के विचारों से सहमती / अवधिया जी सार्थकता को सम्मान नहीं मिलना भी सार्थकता के खत्म होने का मूल कारण है /हम लोगों को निहित स्वार्थ से ऊपर उठकर सार्थकता और ईमानदारी को सम्मान देने के लिए आगे आना चाहिए /दिल्ली में कल पूरे देश के ब्लोगरों के सभा का आयोजन किया जा रहा है ,जो नांगलोई मेट्रो स्टेशन के पास जाट धर्मशाला में किया जा रहा है ,आप सबसे आग्रह है की आप लोग इसमें जरूर भाग लें और एकजुट हों / ये शुभ कार्य हम सब के सामूहिक प्रयास से हो रहा है /अविनाश जी के संपर्क में रहिये और उनकी हार्दिक सहायता हर प्रकार से कीजिये / अविनाश जी का मोबाइल नंबर है -09868166586 -एक बार फिर आग्रह आप लोग जरूर आये और एकजुट हों /
ReplyDeleteअंत में जय ब्लोगिंग मिडिया और जय सत्य व न्याय
आपका अपना -जय कुमार झा ,09810752301
वाकई सही कह रहे हैं अवधिया जी, बैंड सुनने को तो मिलता है पर बहुत कम, अब उसकी जगह स्पीकर वाली गाड़ी और लेपटॉप ने ले ली है, हम इस बार रिकार्ड कर लाये थे, जल्दी ही पोस्ट पर सुनने को मिलेगा।
ReplyDeleteतीन दिन पहले ही बैंड सुना था। मुहल्ले की सब से बुजुर्ग महिला (97) ने प्राण त्यागे थे। उन्हें रामधुन के साथ मुक्तिधाम तक ले जाया गया था।
ReplyDeleteबैंड बाजा ही क्यों शहनाई को शादियों में बजते कितने साल पहले सुना है??
ReplyDeleteपहले शादी में शहनाई जरूर बजती थी
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteअजी हम ने अपनी शादी पर सुना था, बस उस के बाद आज तक नही सुना,
ReplyDeleteलगता है कि शादी के बाद सब के कान स्वत : बंद हो जाते हैं ।
ReplyDeleteइसलिए बैंड बजे , तो भी सुनाई नहीं देता । :)
बहुत दिनों से नहीं सुना..... पर किसी की बैंड बजाने का बहुत मन करता है....
ReplyDeleteशादी के बाद दूसरी तरह के बैंड बजने लगते हैं....
ReplyDeleteदादा कहना मत किसी से
ReplyDeleteअपनेराम का बैंडबाजा तो लगभग रोज़ ही बजता है...........
बस दुःख इस बात है कि न कोई पेमेंट मिलती है न ही टिप
हमारे शहर जोधपुर ( राजस्थान) में अभी भी बैंड बाजों का चलन है. वहां की बारातें अभी भी बैंड बाजों के साथ निकलती है. पूरे रास्ते नाच गाना चलता रहता है. दूल्हा घोड़ी पर सवार रहता है. जोधपुर में शादीयों के अलावा वीभिन्न त्यौहारों पर निकलने वाली शोभा यात्राएं भी बैंड बाजों के साथ निकलती हैं. इस तरह के लगभग एक दर्जन त्यौहार आते हैं पूरे साल में. इन शोभा यात्राओं में एक नहीं बल्कि अनेक बैंड बाजे रहते हैं.
ReplyDeleteहम क्या बताये सर ..............हम तो अभी बच्चे ही हुए ना .............अपना बैंड बजे तो अभी ४ साल ही हुए है !!
ReplyDeleteयह महफूज़ भाई हमारे ब्लॉग पर नहीं आते .................. इन का बैंड कब बजेगा ??!!
ReplyDeleteमहफूज़ भैया, अपना ही बैंड बजा लीजिए.. :)
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteकुमार जलजला जी,
ReplyDeleteआपने मेरे पोस्ट पर दो दो बार टिप्पणियाँ की जिसके लिये मैं आपको धन्यवाद देता हूँ किन्तु आपकी दोनों टिप्पणियों का इस पोस्ट के विषय से कुछ भी सम्बन्ध ना होने के कारण विवश होकर मैं इन्हें मिटा रहा हूँ जिसके लिये मुझे खेद है।