और आनन्द-विभोर हो जाया करते थे। पर हमारे बचपन के दिनों में तो, जब रेकॉर्ड प्लेयर नाम की चीज ही नहीं थी, हमारे घर में ग्रामोफोन हुआ करता था जिसका तवा बगैर बिजली के स्प्रिंग द्वारा घूमा करता था और उसमें से बिना किसी स्पीकर के सिर्फ डॉयफ्राम और भोंपू की सहायता से गाने की आवाज आया करती थी - "चली कौन से देश गुजरिया तू सजधज के, जाऊँ पिया के देश ओ रसिया मैं सजधज के..."। छत्तीसगढ़ी गाने का भी एक रेकॉर्ड हुआ करता था हमारे यहाँ - "नरवा तीर में मोर कारी नौरंगी सँवरपड़री टोरथे भाजी नरवा तीर में ..."
तो हम बात कर रहे थे हिज मास्टर्स व्हायस के रेकॉर्ड्स की। कितना सार्थक प्रतीक चिह्न था संगीत के रेकॉर्ड्स बनाने वाली इस कंपनी हिज मास्टर्स व्हायस का! चित्र को देखते ही लगने लगता था कि संगीत में सिर्फ मनुष्य को तो क्या प्राणीमात्र को प्रभावित की शक्ति है, संगीत को सुनकर श्वान महाशय भी भाव-विभोर हो सकते हैं।
ऐसा माना जाता है कि मेलॉडी भारतीय संगीत की आत्मा है जबकि पाश्चात्य संगीत का आधार हारमोनी है। आखिर क्या है ये मेलॉडी और हारमोनी?
क्योंकि मेलॉडी और हारमोनी संगीत के अन्तर्गत आते हैं इसलिये पहले संगीत को ही समझना अधिक उचित होगा। संगीत को आप केवल इतने से ही समझ सकते हैं कि कर्णप्रिय लगने वाली ध्वनि संगीत कहलाती है और कानों को कर्कश लगने वाली ध्वनि शोर कहलाता है। कोयल की कूक हमें मधुर प्रतीत होती है अतः वह एक संगीत है किन्तु कौवे का काँव-काँव करना शोर होता है। बाँसुरी से जब लयबद्ध धुन निकलती है तो वह संगीत होता है किन्तु उसी बाँसुरी में यदि जोर की फूँक मार दी जाये तो निकलने वाली ध्वनि कर्कश होने के कारण शोर कहलायेगा।
जब एक ही स्वर से संगीत का प्रभाव उत्पन्न किया जाता है तो मेलॉडी होता है याने कि यदि कंठ से 'ओऽऽऽऽऽऽऽऽम' की ध्वनि निकल रही हो तो बाँसुरी, वीणा आदि वाद्ययंत्रों से भी, कंठस्वर के साथ ही साथ, 'ओऽऽऽऽऽऽऽऽम' ध्वनि ही निकलेगी और उन समस्त ध्वनियों का संयोग मेलॉडी होगा। इसके विपरीत जब विभिन्न स्वरों के मेल से संगीत का प्रभाव उत्पन्न होता है तो वह हारमोनी कहलाता है। कल्पना कीजिये कि आप किसी समुद्र के तट पर बैठे हैं, लहरों की गर्जना अलग हो रही है, हवा चलने की हहर-हहर करती आवाज अलग आ रही है और दूर समुद्र में किसी नाव पर बैठे हुए माझी के गीत का स्वर अलग सुनाई पड़ रहा है किन्तु इन समस्त ध्वनियों को मेल आपको आनन्द-विभोर कर रहा है। यही है हारमोनी! ध्वनियों का मेल तो सड़क पर भी होता है, सड़क पर जाम लग गया है, कई गाड़ियों के हार्न बज रहे हैं, किनारे पर गन्ना रस निकालने वाली मशीन से 'चूँऽऽऽचररऽऽ' करती अलग प्रकार की आवाज निकल रही है, एक आदमी अपने आगे वाले आदमी को चिल्ला कर कह रहा है 'अबे साइड हो'... किन्तु सड़क पर होने वाली इन ध्वनियों का मेल आपको मधुर लगने के बजाय कर्कश लगता है इसलिये यह शोर होता है न कि हारमोनी। याने कि संगीत में जब कंठस्वर से अलग सुर निकल रहा हो, वायलिन से अलग और बाँसुरी से कुछ अलग किन्तु इन सभी सुरों का मेल मधुर हो तो हारमोनी होगा।
भारतीय फिल्म संगीत के स्वर्णिम काल (1950-80) में हमारे संगीतकारों ने मेलॉडी और हारमोनी का इतना सुन्दर प्रयोग किया कि उनकी धुनें अमर हो गईं।
यह तो आप सभी जानते हैं कि संगीत के सात सुर होते हैं, चलिये आज उन सुरों के नाम भी जान लें:
- षडज - सा
- ऋषभ - रे
- गान्धार - गा
- मध्यम - म
- पंचम - प
- धैवत - ध
- निषाद - नि
उपरोक्त सात सुरों के पाँच सहायक स्वर भी होते हैं - कोमल रे, कोमल ग, तीव्र म, कोमल ध और कोमल नि।
आपकी जानकारी के लिये मैं बता दूँ कि मैं कोई संगीत विशेषज्ञ नहीं हूँ किन्तु संगीत के विषय में थोड़ी सी जानकारी मुझे थी उसे आज मैंने इस पोस्ट में प्रस्तुत कर दिया। शायद आप लोगों में से कुछ को पसन्द आये।
बहुत अच्छी और जानकारी भरी पोस्ट के लिये आभार
ReplyDeleteमुझे तो संगीत के बारे में कुछ भी नहीं पता है। यह पोस्ट पढने से पहले मैं मेलाडी पुराने संगीत को ही समझता था।
प्रणाम स्वीकार करें
informative
ReplyDelete