जब कोई वस्तु अनायास ही उपलब्ध हो, और वह भी मुफ्त में, तो उस वस्तु का उपयोग करने की इच्छा जागृत हो ही जाया करती है। ब्लोगवाणी ने भी हम सभी को नापसन्द वाला बटन उपलब्ध करवाया हुआ है; और वह भी बिल्कुल मुफ्त में। यह तो आप जानते ही हैं कि "माल-ए-मुफ्त दिल-ए-बेरहम"! तो इस बटन को क्लिकियाने का शौक भला किसे नहीं होगा। नापसन्द का एक चटका लगा देने में भला अपने बाप का क्या जाता है याने कि आजकल की भाषा में What goes of my father? और फिर खूब मजा भी तो आता है नापसन्द का चटका लगाने में! संकलक के हॉटलिस्ट में ऊपर चढ़ता हुआ पोस्ट दन्न से नीचे आ जाता है और पोस्ट लिखने वाले का हाल तो "कइसा फड़फड़ा रिया है स्साला" वाला हो जाता है। नापसन्द का चटका लगाने वाला उसके इस हाल को रू-ब-रू देख तो नहीं पाता, पर उसकी कल्पना कर के खूब खुश हो लेता है।
तो बात चल रही थी नापसन्द वाले बटन को प्रयोग करने की। जब इसे प्रयोग करने की इच्छा जोर मारने लगती है तो सोचना पड़ता है कि आखिर कहाँ पर प्रयोग किया जाये इसका? ज्योंही दिमाग में यह प्रश्न उठता है, तत्काल भीतर से आवाज आती है जो भी ब्लोगर हमें पसन्द नहीं है उस पर इस बटन का प्रयोग कर दो। किसी ब्लोगर के पसन्द होने या ना होने के लिये किसी कारण का होना जरूरी थोड़े ही होता है, कई बार तो लोग अकारण ही हमें पसन्द नहीं होते। सामान्य जीवन में भी आपने अनेक बार अनुभव किया होगा कि हम किसी व्यक्ति को जीवन में पहली बार देखते हैं और देखते ही हमें लगने लगता है कि "स्साला एक नंबर का टुच्चा है"। बताइये कई बार ऐसा लगता है कि नहीं? वैसे कई बार इसका उलटा भी होता है कि किसी अनजान व्यक्ति को देखते ही हमें लगने लगता है कि "यार ये तो बहुत ही अच्छा आदमी है"। तो यही बात किसी ब्लोगर के विषय में भी हो जाना अस्वाभाविक तो नहीं है। बस फिर क्या है? जो ब्लोगर मन को नहीं भाता, उसके पोस्ट पर दन्न से चटका लग जाता है नापसन्द का। अब नापसन्द का चटका लगाने के लिये किसी के पोस्ट को पढ़ना जरूरी थोड़े ही होता है!
तो हम बता रहे थे कि किसी ब्लोगर को नापसन्द करने के लिये किसी कारण का होना जरूरी नहीं है पर हमें नापसन्द करने के लिये तो एक नहीं अनेक कारण हैं। जैसे कि सठियाने के उम्र में भी ब्लोगिंग कर रहा है स्साला। भला ब्लोगिंग भी कोई बुड्ढों की करने की चीज है। पर ये हैं कि किये जा रहा है ब्लोगिंग। सींग कटा कर बछड़ों में शामिल हो गया है। कब्र में पाँव लटके हुए हैं पर छपास की चाह नहीं छूटती। शिरीष के फल के जैसे, सारे फूल-पत्ते के झड़ जाने के बावजूद भी, लटका हुआ है डाली से। अरे भाई, अब गिर भी जाओ नीचे, दूसरे फल को आने के लिये जगह दो।
चलो, अब जब ये ब्लोगिंग कर ही रहे हैं तो हमारे जैसे भलेमानुष को इन पर तरस भी आ जाता है और हम टिप्पणी भी दे देते हैं इन्हें पर ये हैं कि हमें टिप्पणी देना तो दूर, भूल कर भी कभी झाँकने तक नहीं आते हमारे ब्लोग में। भला ये भी कोई बात हुई? ऊपर से तुर्रा यह कि कई बार हमारी टिप्पणी को मिटा तक देते हैं यह कहते हुए कि तुम्हारी टिप्पणी का हमारे पोस्ट के विषय से कुछ सम्बन्ध ही नहीं है। अब भला किसी टिप्पणी का पोस्ट के विषय से सम्बन्ध होना कोई जरूरी है क्या?
कहने का तात्पर्य यह है कि हमें नापसन्द करने के लिये बहुत सारे कारण हैं। ऐसे में यदि कोई हमें नापसन्द करने लगे तो ऐसा होना तो स्वाभाविक ही है। तो साहब, एक अरसे से हम देख रहे हैं कि हमारा पोस्ट ब्लोगवाणी में ज्योंही आता है, तड़ाक से उस पर एक चटका लग जाता है नापसन्द का। हम तो यह सोच कर दिल को तसल्ली दे लेते हैं कि यह सिर्फ एक हमारा ही ग़म नहीं है बल्कि और भी बहुत से लोग इस दर्द के मारे हुए हैं।
पर कल हमें यह देख कर बहुत ही आश्चर्य हुआ कि हमारा पोस्ट संकलक में आ गया है पर नापसन्द का चटका नहीं लगा है। खैर हमने सोचा कि आज हमारे नापसन्दीलाल जी शायद कहीं व्यस्त हैं, बाद में आकर हमें चटका दे जायेंगे। हम इन्तजार करते रहे पर हमारे इन्तजार का कुछ भी सार्थक नतीजा नहीं निकला। यहाँ तक कि कल का दिन बीत गया और आज का दिन आ गया पर वह चटका अभी भी नदारद है। अब हमें लग रहा है कि हमारे नापसन्दी लाल जी शायद कल छुट्टी पर थे। या फिर शायद उन्हे उनके डॉक्टर ने नापसन्द का चटका लगाने के लिये मना कर दिया हो। हमें तो में आशंका हो रही है कि भगवान ना करे कि कहीं बीमार-वीमार ना पड़ गये हों। यदि ऐसा कुछ हो तो हम तो ऊपर वाले से यही दुआ करेंगे कि वे जल्द ही स्वास्थ्यलाभ प्राप्त करें।
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ReplyDelete@ Shibani
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी मुझे विवशतापूर्वक मिटानी पड़ी क्योंकि उसमें व्यक्तिगत आक्षेप था। वैसे यदि आप किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप करना चाहते हैं तो अपने ब्लोग पर कीजिये किसी दूसरे के ब्लोग को अखाड़ा बनाने का प्रयत्न ना करें। और हिम्मत के साथ काम करने का साहस करें, परदे के पीछे मुँह छुपा कर नहीं।
नापसंदीलाल को हमेशा छुटटी पर भेजने की आवश्यकता है।
ReplyDeleteअवधिया जी, भला आप कब से इन नापसन्दियों की परवाह करने लगे :)
ReplyDelete" सठियाने के उम्र में भी ब्लोगिंग कर रहा है स्साला। भला ब्लोगिंग कोई भी कोई बुड्ढों की करने की चीज है। पर ये हैं कि किये जा रहा है ब्लोगिंग। सींग कटा कर बछड़ों में शामिल हो गया है। कब्र में पाँव लटके हुए हैं पर छपास की चाह नहीं छूटती। शिरीष के फल के जैसे, सारे फूल-पत्ते के झड़ जाने के बावजूद भी, लटका हुआ है डाली से। अरे भाई, अब गिर भी जाओ नीचे, दूसरे फल को आने के लिये जगह दो।"
ReplyDeleteअवधिया जी हमें नहीं मालूम था ये शब्द हमारे अलावा आपके लिए भी प्रयुक्त किये जाते हैं ...वाह...इस मायने हम दोनों ब्लोग्गर भाई हुए...हम दोनों एक ही नाव में सवार हैं जो हिच्खोले खाते हुए भी चल रही है और लोगों के सब्र का इम्तिहान लेते हुए डूब भी नहीं रही...
नीरज
आपको मालुम नहिं क्या?सब के सब ब्लोगर मीट कि तयारि में लगे है।संगम में नहाना भी तो है
ReplyDeleteनापसन्दीलाल यह नाम अच्छ्आ लगा ।
ReplyDeletebadhiya !
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