इस बात को ध्यान में रख कर ही कि, जीवन में कभी भी खराब समय आ सकता है, हमारे यहाँ सम्पन्न लोगों के पुत्रों को भी आजीविका चलाने की छोटी से भी छोटी विधा की शिक्षा दी जाती थी। सुदामा के साथ कृष्ण को भी लकड़ी काटने के लिये वन में जाना पड़ता था। यहाँ तक कि गुरु के आश्रम के लिये भिक्षा मांगने भी जाना पड़ता था।
किन्तु आज वह बात नहीं रह गई है। आज तो लोग अपने पुश्तैनी कार्यों को भी करने से कतराने लगे हैं। किसान का बेटा किसानी नहीं करना चाहता, लोहार का बेटा लोहारी नहीं करना चाहता। सभी यही चाहते हैं कि कैसे मैं जल्दी से जल्दी अधिक से अधिक धन कमा लूँ। किन्तु धन कमा लेना इतना आसान नहीं है। अपने स्वयं के कार्य से धन कमाने का रास्ता तो लोग त्याग देते हैं और किसी दूसरे रास्ते से धन कमाने में समर्थ भी नहीं हो पाते। नतीजतन वे और भी अधिक विपन्नता से घिर जाते हैं। अस्तु, बात सिर्फ यह है कि आज की शिक्षा पहले जैसे नहीं रही है।
तो यदि ऐसे में खराब समय आ जाये तो...
- निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है। निराशा बार बार आपके भीतर आने की कोशिश करेगी किन्तु अपने आत्म बल से निराशा को पास नहीं फटकने देने में ही भलाई है।
- पुरानी कहावत है किस "धीर में ही खीर है"। खराब समय को केवल धैर्य से ही काटा जा सकता है। खराब समय में धैर्य का होना बहुत जरूरी है। रहीम कवि ने भी कहा है किः
रहिमन चुप ह्वै बैठिये देख दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं बनत न लगिहै देर॥
- अपना दुःख यदि बांटना चाहें तो सिर्फ उनसे बांटिये जिनके विषय में आपको पूर्ण विश्वास हो कि वे सही अर्थों में आपको अपना समझते हैं। दूसरों को अपनी व्यथा सुनाने से कोई फायदा नहीं है, लोग सुन कर आपके समक्ष तो सहानुभूति दर्शायेंगे पर पीठ पीछे खिल्ली ही उड़ायेंगे। यहाँ पर भी रहीम कवि की उक्ति याद आ रही हैः
रहिमन निज मन की व्यथा मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब बांट न लैहै कोय॥
- खराब समय में व्यक्ति स्वयं के अभाव को तो झेल लेता है किन्तु परिवार के सदस्यों के अभाव उसे बहुत अधिक व्यथित करते हैं। अतः परिजनों को भी धीरज रखने के लिये यथोचित रूप से समझाना ही उचित है।
बहुत बढिया!
ReplyDeleteदुःख और सुख का तो हमारे जीवन में दिन रात या धुप छाँव के जैसा सम्बन्ध है. जिंदगी में ये क्रम तो चलता ही रहता है. ऐसे लोग, जो दुखी नहीं होते हुए भी खुद को दुखी ही समझते है उन लोगो का शायद कोई ईलाज नहीं है.
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया राय दी है आज आपने इस उम्दा पोस्ट के माध्यम से ! आभार !
ReplyDeleteअनुकरणीय सलाह।
ReplyDeleteनेक सलाह के धन्यवाद बड़े गुरुजी
ReplyDeleteसमय समय इसी तरह की उम्दा पोस्ट लिखते रहें।
आभार
विश्वास कीजिये कि खराब समय हमेशा नहीं रहता, एक न एक दिन समाप्त ही हो जाता है।
ReplyDeleteबस इस समय धैर्य न खोएं ..
जिसे हम खराब समय समझते हैं वास्तव में वह हमारे लिए निर्माण का समय होता है। आप सही कह रहे हैं कि उस समय पूर्ण धैर्य के साथ व्यक्ति को केवल कर्म करते रहना चाहिए। अच्छी पोस्ट।
ReplyDeleteअवधिया साहब बहुत सुन्दर लिखा हैं आपने.
ReplyDeleteआवधिया जी जिन्होने दुख देखे है वो ही जानते है सुख की परिभाषा को--- सुख दुख तो आने जाने है... आप का लेख बहुत विचारनिया लगा. धन्यवाद
ReplyDeleteआदरणीय अवधिया जी... सादर नमस्कार... अब मैं थोडा फ्री हो गया हूँ.... अब से रेगुलरली आऊंगा...
ReplyDeleteआपकी यह सीख फिलहाल मेरे काम आ रही है
ReplyDeleteक्या मौके पर पोस्ट लगाई है गुरूदेव
शानदार
अवधिया साहब, बहुत अच्छी पोस्ट लगी आपकी। आभार स्वीकार करें।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी पोस्ट और सत्य वचन ,वाह अवधिया जी क्या सोच है ....
ReplyDeleteबहुत ही अनुकरणीय तथ्य को आपने यहाँ प्रस्तुत किया और सौ फ़ीसदी सही। आपत्त्ति काल मे चार चीजें तो है परखने योग्य;"धीरज धरम विवेक अरु नारी। आपत काल परखिये चारी"। और धैर्य का स्थान पहला है। सुन्दर आलेख……
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