Friday, July 16, 2010

जिन्दगी के रंग कई रे ....

क्या आप में से कोई ऐसा भाग्यवान है जिसने कभी खराब समय देखा ही न हो? मैं समझता हूँ कि अच्छा और खराब समय तो सभी के जीवन में आते ही रहता है। अच्छे समय में तो हम अपनी मस्ती में इतने डूब जाते हैं कि मन के किसी कोने में यह विचार तक नहीं आ पाता कि कभी खराब समय भी आ सकता है। किन्तु अच्छा समय कितना ही लंबा क्यों न हो, आखिर बीत ही जाता है और शुरू हो जाता है खराब समय का सिलसिला। संपन्नता विपन्नता में बदल जाती है और मस्ती विषाद में। इसीलिये कहा गया है "चार दिनों की चाँदनी फिर अँधियारी रात"!

इस बात को ध्यान में रख कर ही कि, जीवन में कभी भी खराब समय आ सकता है, हमारे यहाँ सम्पन्न लोगों के पुत्रों को भी आजीविका चलाने की छोटी से भी छोटी विधा की शिक्षा दी जाती थी। सुदामा के साथ कृष्ण को भी लकड़ी काटने के लिये वन में जाना पड़ता था। यहाँ तक कि गुरु के आश्रम के लिये भिक्षा मांगने भी जाना पड़ता था।

किन्तु आज वह बात नहीं रह गई है। आज तो लोग अपने पुश्तैनी कार्यों को भी करने से कतराने लगे हैं। किसान का बेटा किसानी नहीं करना चाहता, लोहार का बेटा लोहारी नहीं करना चाहता। सभी यही चाहते हैं कि कैसे मैं जल्दी से जल्दी अधिक से अधिक धन कमा लूँ। किन्तु धन कमा लेना इतना आसान नहीं है। अपने स्वयं के कार्य से धन कमाने का रास्ता तो लोग त्याग देते हैं और किसी दूसरे रास्ते से धन कमाने में समर्थ भी नहीं हो पाते। नतीजतन वे और भी अधिक विपन्नता से घिर जाते हैं। अस्तु, बात सिर्फ यह है कि आज की शिक्षा पहले जैसे नहीं रही है।

तो यदि ऐसे में खराब समय आ जाये तो...

  • निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है। निराशा बार बार आपके भीतर आने की कोशिश करेगी किन्तु अपने आत्म बल से निराशा को पास नहीं फटकने देने में ही भलाई है।

  • पुरानी कहावत है किस "धीर में ही खीर है"। खराब समय को केवल धैर्य से ही काटा जा सकता है। खराब समय में धैर्य का होना बहुत जरूरी है। रहीम कवि ने भी कहा है किः

    रहिमन चुप ह्वै बैठिये देख दिनन के फेर।
    जब नीके दिन आइहैं बनत न लगिहै देर॥

  • अपना दुःख यदि बांटना चाहें तो सिर्फ उनसे बांटिये जिनके विषय में आपको पूर्ण विश्वास हो कि वे सही अर्थों में आपको अपना समझते हैं। दूसरों को अपनी व्यथा सुनाने से कोई फायदा नहीं है, लोग सुन कर आपके समक्ष तो सहानुभूति दर्शायेंगे पर पीठ पीछे खिल्ली ही उड़ायेंगे। यहाँ पर भी रहीम कवि की उक्ति याद आ रही हैः

    रहिमन निज मन की व्यथा मन में राखो गोय।
    सुनि इठलैहैं लोग सब बांट न लैहै कोय॥

  • खराब समय में व्यक्ति स्वयं के अभाव को तो झेल लेता है किन्तु परिवार के सदस्यों के अभाव उसे बहुत अधिक व्यथित करते हैं। अतः परिजनों को भी धीरज रखने के लिये यथोचित रूप से समझाना ही उचित है।
विश्वास कीजिये कि खराब समय हमेशा नहीं रहता, एक न एक दिन समाप्त ही हो जाता है।

14 comments:

  1. बहुत बढिया!

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  2. दुःख और सुख का तो हमारे जीवन में दिन रात या धुप छाँव के जैसा सम्बन्ध है. जिंदगी में ये क्रम तो चलता ही रहता है. ऐसे लोग, जो दुखी नहीं होते हुए भी खुद को दुखी ही समझते है उन लोगो का शायद कोई ईलाज नहीं है.

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  3. बहुत ही बढ़िया राय दी है आज आपने इस उम्दा पोस्ट के माध्यम से ! आभार !

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  4. नेक सलाह के धन्यवाद बड़े गुरुजी
    समय समय इसी तरह की उम्दा पोस्ट लिखते रहें।
    आभार

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  5. विश्वास कीजिये कि खराब समय हमेशा नहीं रहता, एक न एक दिन समाप्त ही हो जाता है।
    बस इस समय धैर्य न खोएं ..

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  6. जिसे हम खराब समय समझते हैं वास्‍तव में वह हमारे लिए निर्माण का समय होता है। आप सही कह रहे हैं कि उस समय पूर्ण धैर्य के साथ व्‍यक्ति को केवल कर्म करते रहना चाहिए। अच्‍छी पोस्‍ट।

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  7. अवधिया साहब बहुत सुन्दर लिखा हैं आपने.

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  8. आवधिया जी जिन्होने दुख देखे है वो ही जानते है सुख की परिभाषा को--- सुख दुख तो आने जाने है... आप का लेख बहुत विचारनिया लगा. धन्यवाद

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  9. आदरणीय अवधिया जी... सादर नमस्कार... अब मैं थोडा फ्री हो गया हूँ.... अब से रेगुलरली आऊंगा...

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  10. आपकी यह सीख फिलहाल मेरे काम आ रही है
    क्या मौके पर पोस्ट लगाई है गुरूदेव
    शानदार

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  11. अवधिया साहब, बहुत अच्छी पोस्ट लगी आपकी। आभार स्वीकार करें।

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  12. बहुत ही अच्छी पोस्ट और सत्य वचन ,वाह अवधिया जी क्या सोच है ....

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  13. बहुत ही अनुकरणीय तथ्य को आपने यहाँ प्रस्तुत किया और सौ फ़ीसदी सही। आपत्त्ति काल मे चार चीजें तो है परखने योग्य;"धीरज धरम विवेक अरु नारी। आपत काल परखिये चारी"। और धैर्य का स्थान पहला है। सुन्दर आलेख……

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