Saturday, July 17, 2010

कहीं ये बुढ़उ भी तो टिप्पणियों के तिकड़म से खुद को नहीं बढ़ा रहा है?

कल जब मैंने कम्प्यूटर बंद किया था तो मेरे पोस्ट "जिन्दगी के रंग कई रे" में 8 टिप्पणियाँ थीं और आज सुबह जब मैंने अपना कम्प्यूटर खोला तो पाया कि टिप्पणियों की संख्या 31 हो गई हैं। विश्वास नहीं हो पा रहा था अपनी आँखों पर इसलिये बार-बार आँखे मिचमिचा कर देख रहा था पर संख्या 31 ही दिखाई पड़ रही थी। एक बार मन में यह विचार भी आया कि शायद रात की अभी तक नहीं उतरी है। चिट्ठाजगत को खोलकर देखा तो वहाँ भी उसके हॉटलिस्ट में मेरी पोस्ट बहुत ऊपर है, इतना ऊपर कि पहले शायद ही उतना ऊपर पहुँचा हो।

ये बात अलग है कि मैं कई बार अपने पोस्टों में लिखते रहता हूँ कि विषय से असम्बन्धित टिप्पणियों का और टिप्पणियों की अधिक से अधिक संख्या का कोई महत्व नहीं होता, मैं ऐसी टिप्पणियों का विरोध करता हूँ। इस विषय में कई बार मेरी कई लोगों से बहस भी हो चुकी है। पर हूँ तो आखिर मैं एक तुच्छ ब्लोगिया ही! कोई ब्लोगिया हो और उसे बड़ी संख्या में टिप्पणी मिले तो उसका मन प्रसन्नता से ना झूमे यह तो हो ही नहीं सकता। मेरे मन में भी गुदगुदी होने लगी। बिना पिये ही तीन-तीन पैग का मजा आने लग गया।

टिप्पणी पाने का अर्थ एक प्रकार से प्रशंसा और सम्मान पाना ही होता है और प्रशंसा और सम्मान भला कौन नहीं पाना चाहता? प्रशंसा और सम्मान तो ऐसे हथियार हैं जिनसे आप हर किसी को घायल कर सकते हैं। पर याद रखने की बात यह है कि ये हथियार दोधारी होते हैं और इनके द्वारा आपको भी घायल किया जा सकता है। इसलिये जब कोई आपको प्रशंसा और सम्मान दे तो तनिक सतर्क रहना आवश्यक है और यदि कभी स्वयं की श्रीमती जी दे तो सतर्क रहना अति आवश्यक है क्योंकि समझ लीजिये कि उस दिन जरूर आपकी जेब कटने वाली है।

अस्तु, 31 टिप्पणियों का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है, बड़े-बड़े ब्लोगरों को तो सैकड़ों की तादाद में टिप्पणियाँ पाते हैं। खैर, उनकी तो बात ही निराली है पर मुझ जैसे तुच्छ ब्लोगर को 31 टिप्पणियाँ मिलना तो बहुत भारी आश्चर्य की बात है। उत्सुकता हुई जानने की कि आखिर किन-किन भले लोगों ने हमें टिप्पणियाँ दी हैं। देखा तो वे सभी मेरे प्रेमीजन तो हैं हीं टिप्पणियाँ देने वाले जो कि प्रायः रोज मुझे टिप्पणी दे जाते हैं किन्तु तारीफबाज़ नामी एक मेरे नये प्रेमी आ गये हैं जिन्होंने मुझे एक साथ 19 टिप्पणियाँ दी हैं। मैं इन सज्जन को जानता तो नहीं पर इनके इस प्रगाढ़ प्रेम ने तो मुझे एवरेस्ट की चोटी पर ही चढ़ा दिया।

अब मैंने उनकी टिप्पणियों को पढ़ना शुरू किया तो पाया कि अपनी 13 टिप्पणियों में उन्होंने मेरे प्रोफाइल में दिये गये मेरे परिचय को कॉपी करके पेस्ट कर दिया है और 5 टिप्पणियों में अन्य लोगों के द्वारा दी गई टिप्पणियों को कॉपी-पेस्ट किया है। अवश्य ही वे मेरे बहुत बड़े हितचिन्तक हैं जो चाहते हैं कि मेरा पोस्ट हॉटलिस्ट में ऊपर रहे! मैं उनका अत्यन्त आभारी भी हूँ।

जब भी मैनें इस प्रकार की असम्बद्ध टिप्पणियों को किसी पोस्ट में देखा है तो मेरे मन में यही विचार आया है कि लोग स्वयं को चढ़ाने के लिये क्या क्या तिकड़म नहीं करते! अब मुझे भय होने लगा कि आज मेरे पोस्ट में इन टिप्पणियों को देख कर लोग यही सोचेंगे कि कहीं ये बुढ़उ भी तो टिप्पणियाँ के तिकड़म से खुद को नहीं बढ़ा रहा है? सो मैंने अपने अनन्य हितचिन्तक महोदय की टिप्पणियों को मिटा डाला।

यह खयाल करके कि अपनी सारी टिप्पणियों के मिट जाने से तारीफबाज़ जी का दिल पूरी तरह से ना टूट जाये और वे गाने लगें कि "इस दिल के टुकड़े हजार हुए कोई यहाँ गिरा कोई वहाँ गिरा...", मैंने उनकी निम्न टिप्पणी को रहने दियाः
Tafribaz on July 16, 2010 10:36 PM said...

    बहुत बढिया
अन्त में मैं तारीफबाज़ जी को एक बार पुनः धन्यवाद देता हूँ और उनकी टिप्पणियाँ मिटाने के लिये खेद भी प्रकट करता हूँ। आशा है कि वे मेरे इस कार्य को अन्यथा नहीं लेंगे।

9 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी पोस्ट आज चर्चा मंच पर भी है...

http://charchamanch.blogspot.com/2010/07/217_17.html

राज भाटिय़ा said...

जी.के. अवधिया जी एक तो आप ने यह तुच्छ शव्द लिखा यह अच्छा नही लगा, अजी आप से तो हम बहुत कुछ सीख रहे है, दुसरा आदमी बुढ़उ होता है ८० साल के बाद,आप तो अभी ८० के नही हुये:) बाकी आप की कल की पोस्ट पढी थी,शायद कोई आप को तंग कर रहा है, ओर इन पर ध्यान ही मत दे, क्योकि यही तो है..."जिन्दगी के रंग कई रे" ... उन मै से एक रंग यह भी है. धन्यवाद

सूर्यकान्त गुप्ता said...

अवधिया जी नमस्कार! मै हा ओ पोस्ट म जाके झट ले देखेंव। देखत हौं 14 ठन हे। लेकिन अच्छा करेव आप जउन संकेत देत हुए ओमन ला मिटा के बने बने मन ल राखेव अउ लिखेव अइसे के समझइया बर "इशारी काफ़ा है"। सुग्घर!

शिवम् मिश्रा said...

यह भाई साहब मेरी पोस्ट पर भी आये थे पर मैंने इन का स्वागत नहीं किया !

VICHAAR SHOONYA said...

अवधिया साहब ये ताफरिबज महोदय आपके ही कोई पुराने मुरीद लगते हैं. अभी मेरी पोस्ट पर भी इनका तारकेश्वर गिरी जी कि टांग खीचने का प्रयास था अतः मैंने इनका कमेन्ट हटा दिया. ये वास्तव में सभी से तफरी ले रहे हैं. मेरे ख्याल से लोगों को आप पर शक नहीं करना चाहिए कि आप खुद अपनी टिप्पणिया बढ़ने के लिए ये कार्य कर रहे हैं.. आप निश्चिन्त रहें. आपका लेखन ३१ क्या १३१ टिप्पणियों के काबिल होता है.

प्रवीण पाण्डेय said...

आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है पर तफरीबाज को इतनी बार तफरी नहीं करना था।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

ऎसे तफरीबाज मौसमी जीव होते हैं, जो कि बिल से सिर्फ बरसाती मौसम में ही निकलते हैं...

Gyan Darpan said...

चलो इस बहाने टिप्पणियों की संख्या बढ़ने से लानत से तो बच गए वरना आजकल ब्लॉग पोस्ट कम टिप्पणियाँ देखकर लोग लानत टिप्पणीं भी देने लग गए है |
आज सुबह मेल खोला तो एक पुरानी पोस्ट पर टिप्पणी मिली
"le bhai likh deta hu comments par yaar ek baat hai Follower 156 , par comments kul jama , 7 comments."

अब कम टिप्पणियाँ मिलने के लिए ये लानत नहीं तो क्या है ?

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बुढव का कहीं कोई जुगाड़ तो है:)
मस्त रहो मस्ती में,आग लगे बस्ती में

मर्द को दर्द,श्रेष्ठता का पैमाना,पुरुष दिवस,एक त्यौहार-यहाँ भी आएं