Thursday, September 9, 2010

हमारे लिए यही बहुत है कि हम ब्लोगिंग में टिके हुए हैं

हिन्दी ब्लोगिंग में टिके रहना कोई छोटी-मोटी बात नहीं है, बहुत बड़ी बात है यह! इसीलिए यह सोचकर हम खुश होते हैं कि हमारे लिए यही बहुत है कि हम ब्लोगिंग में टिके हुए हैं। 03 सितम्बर 2007 को हमने अपना ब्लोग "धान के देश में" बनाया था। तब से आज तक लगभग सवा छः सौ पोस्ट लिख चुके हैं। वैसे हमें अच्छी तरह से मालूम है कि उनमें से अधिकतर बकवास ही हैं और यदि उन्हें किसी स्तर के पत्र/पत्रिका में छपने के लिए भेजा जाए तो उनका स्थान रद्दी की टोकरी में ही होगा। अब इससे अच्छी बात क्या होगी कि हमारे पोस्ट रद्दी की टोकरी में न होकर हमारे ब्लोग की शोभा बढ़ा रहे हैं। यह अलग बात है कि नेट में आने वाले करोड़ों हिन्दीभाषियों में शायद ही उन्हें पढ़ने आता हो। पर यह क्या कम है कि उनमें से अनेक पोस्टों को उनके प्रकाशित होने के चौबीस घंटों में बहुत से ब्लोगरों ने पढ़ा और टिप्पणी के रूप में दाद भी दी।

विदेशियों का तो शुरू से ही व्यपार की ओर अधिक झुकाव रहा है; इसीलिए अंग्रेजी ब्लोगिंग में प्रायः ब्लोगिंग के द्वारा होने वाली आय का ध्यान रखा जाता है। शायद विदेशी ब्लोगरों का मानना है कि 'नाम मिलने से धन मिले या न मिले किन्तु धन मिलने से नाम अपने आप ही मिल जाता है'। धन प्राप्त होता है व्यापार से, व्यापार होता है ग्राहकों से और ग्राहक होते हैं उनके ब्लोग के पाठकगण जो कि लाखों करोड़ों की संख्या में होते हैं। वे ग्राहक ब्लोग के माध्यम से खरीदी करते हैं और ब्लोगर महोदय स्वयं का या अन्य लोगों का सामान बेचकर कमाई करता है। पाठक आते हैं स्तर की सामग्री पढ़ने के लिए, सो उन्होंने "कांटेंट इज़ किंग" को मूलमंत्र मान लिया है। पर हम भारतीय हैं, हमारी प्रवृति व्यापार की नहीं है। हम तो नाम होने से ही खुश होते हैं, नाम होता है अच्छा ब्लोगर बनने से और अच्छा ब्लोगर वह होता है जिसे खूब सारी टिप्पणियाँ मिले। हमारे लिए "कांटेंट इज़ किंग" का कुछ भी मतलब नहीं है, हमें तो "टिप्पणी महारानी" से ही मतलब होता है।

गूगल भी एक व्यापारी है और उसने शायद यही सोचकर हिन्दी ब्लोगिंग के लिए मुफ्त में सबडोमेन और होस्टिंग देना शुरू कर दिया कि हिन्दी ब्लोगिंग से भी व्यापार होगा और उसकी कमाई होने लगेगी। पर ऐसा अभी तक तो नहीं हो पाया है फिर भी गूगल आस लगाए बैठा है कि शायद कुछ समय के बाद ऐसा होना शुरू हो जाए। इसी आस में वह हिन्दी ब्लोगिंग के फ्री होस्टिंग के लिए बेशुमार धन खर्च किए जा रहा है इन्वेस्टमेंट के रूप में। यदि इतना धन इन्वेस्ट करने के बावजूद भी उसकी कमाई होनी शुरू नहीं हुई तो शायद वह आगे और इन्वेस्ट करना बंद कर दे। खैर यदि वह ब्लोगिंग की मुफ्त सुविधा देना बंद कर देगा तो हमारा क्या बिगड़ेगा, हम भी ब्लोगिंग बंद कर के "पुनर्मूष भव मूष" वाली कहावत को चरितार्थ कर लेंगे। लेकिन हमने भी ठान लिया है कि जब तक गूगल यह सुविधा हमें देता रहेगा तब तक तो हम ब्लोगिंग में बने ही रहेंगे।

27 comments:

  1. लगता है पुराने फैविकोल का मजबूत जोड़ लगा रखा है आपने :)

    ReplyDelete
  2. सही कहा आपने .... जब तक है तो चले चलो

    ( कौन हो भारतीय स्त्री का आदर्श - द्रौपदी या सीता.. )
    http://oshotheone.blogspot.com

    ReplyDelete
  3. जय हो गुरुदेव
    आपने बात पते की कही है।

    शुभकामनाएं
    आभार

    ReplyDelete
  4. भारत में एक कह‍ावत है - मुफ्‍त का चन्‍दन घिस मेरे नन्‍दन। तो हम सब घिसे जा रहे हैं, अपने विचारों को पेले जा रहे हैं। जिस दिन बन्‍द हो जाएगी कोई दूसरी दुकानदारी लग जाएगी।

    ReplyDelete
  5. पुनर्मूषको भव-हा हा

    ReplyDelete
  6. अपकी पोस्ट मे हमेशा कमेन्ट की चुभन क्यों होती है? आप बहुत अच्छा लिख रहे हैं भगवान करे आपका ये काम जीवन भर चलता रहे और हम पढते रहें। धन्यवाद।

    ReplyDelete
  7. सही है हम लिखेंगे....चाहे कोई पढे न पढे हम लिखते रहेंगे हिंदी मै....कोई अखबार हमारी बात क्यों लिखेगा ...उनको भी तो कमाई करनी है...जो विज्ञापन देते हैं उनको कौन छापेगा फिर ...जय हो गूगल बाबा कीा

    ReplyDelete
  8. भारत में एक कह‍ावत है - मुफ्‍त का चन्‍दन घिस मेरे नन्‍दन। तो हम सब घिसे जा रहे हैं, अपने विचारों को पेले जा रहे हैं। जिस दिन बन्‍द हो जाएगी कोई दूसरी दुकानदारी लग जाएगी।
    ajit gupta ji ki bt se sahmat hu

    ReplyDelete
  9. आप बहुत अच्छा लिख रहे हैं

    ReplyDelete
  10. साहेब दिल कि बात कह गए.............

    ReplyDelete
  11. लगे रहो अवधिया भाई !

    ReplyDelete
  12. अवधिया जी, जब होगा ऐसा तब देखेंगे। अभी तो लिखे जाईये, हम सब हैं न पढ़ने वाले।

    ReplyDelete
  13. कहाँ लगे हैं आप भाई साब एक दुकान बंद होगी तो ब्लागिंग के लिए और दुकानें ब्लागिंग मार्केट में आ जायेगी ..... जैसा डेस्कटॉप वैसा लेपटॉप ... आखिर चल तो रहे है न .... आभार

    ReplyDelete
  14. लगे रहो , कुछ न कुछ दे ही रहे हो ।

    ReplyDelete
  15. बड़े पते के बिन्दु उठाये हैं।

    ReplyDelete
  16. आप इसी तरह हमेशा लिखते रहे यही शुभकामना है
    अक्सर रुखी रातों में

    ReplyDelete
  17. लगे रहिए अवधिया जी ना जाने बिल्ली के भाग से कब झीका टूट जाय .बढ़िया पोस्ट

    ReplyDelete
  18. गुगल महाराज को रोज सुबह एक अगरबत्ती लगा देते हैं कि महाराज, कृपा दृष्टि बनाये रखिये.

    ReplyDelete
  19. बिल्कुल सही तथ्यों में आईना दिखाया है आपने हिन्दी ब्लॉगरी का, वास्तव में हम वैश्विक स्तर पर कब आ पायेंगे ये देखने वाली बात होगी।

    ReplyDelete
  20. फ़्री का चन्दन घिस मेरे नन्दन .... के मारे मै भी खटर पटर करता हूं

    ReplyDelete
  21. आप अच्छा लिखते हैं, उम्मीद है ऐसे ही लिखते रहेंगे..... शुभकामनाएं!

    ReplyDelete
  22. सही लेख और अजित जी कि टिपण्णी से सहमत

    ReplyDelete
  23. .
    यदि वह ब्लोगिंग की मुफ्त सुविधा देना बंद कर देगा तो हमारा क्या बिगड़ेगा, हम भी ब्लोगिंग बंद ...

    Why to stop blogging then ? Isn't it wise to start writing in English then .

    We will make then understand that that we are fond of free services. If not Hindi then publish our English posts at least.

    I am aware of Google's intentions so i had a blog in English as well . -- " Paradise "

    Google Dev zindabaad !

    Let's flow with the current.

    Nice post Awadhiya ji .
    ..

    ReplyDelete
  24. धान के देश मैं , जहाँ धान को सींचने के लिए पानी नहीं, बिजली नहीं. फिर भी आप टिके हैं,सहस का काम है.
    वैसे यहाँ टिकने के लिए क्या चहिये? अच्छा लेख़ या बस लिखते रहो कुछ भी?

    ReplyDelete
  25. "आज तक लगभग सवा छः सौ पोस्ट लिख चुके हैं। वैसे हमें अच्छी तरह से मालूम है कि उनमें से अधिकतर बकवास ही हैं और यदि उन्हें किसी स्तर के पत्र/पत्रिका में छपने के लिए भेजा जाए तो उनका स्थान रद्दी की टोकरी में ही होगा। अब इससे अच्छी बात क्या होगी कि हमारे पोस्ट रद्दी की टोकरी में न होकर हमारे ब्लोग की शोभा बढ़ा रहे हैं।"
    अवधिया जी हमारे दिल कि बात कह गए आप !!!

    ReplyDelete