तू मानव है, तू चाहे तो
पत्थर को भी पानी कर दे
जन जन के जीवन में तू
सुख समृद्धि और वैभव भर दे!
मरुस्थली में फूल खिला दे
मिट्टी से सोना उपजा दे
तेरे हाथों में वो बल है
चट्टानों को मोम बना दे
अतुल शक्ति का स्वामी है तू
विष को भी तू अमृत कर दे!
जन-जन के जीवन में तू
सुख समृद्धि और वैभव भर दे!
शांतिदूत तू समस्त विश्व का
दुःख-दारिद्य का महाकाल है
अवनि और अंबर हैं तेरे
तू ज्ञान का महाजाल है
एक बार फिर आत्मज्ञान से
विश्वपटल आलोकित कर दे!
जन जन के जीवन में तू
सुख समृद्धि और वैभव भर दे!
उठ जाये तो देवतुल्य तू
गिर जाये तो पशु से बदतर
गिरने में अपयश है तेरा
उठ जाना ही है श्रेयस्कर
एक बार फिर इतना उठ तू
देवगणों को विस्मित कर दे!
जन जन के जीवन में तू
सुख समृद्धि और वैभव भर दे!
प्रेरक कविता ............उत्तम कविता !
ReplyDeleteuttam kavita.........aabhar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक प्रेरणा देता गीत । बधाई।
ReplyDeleteअपार सम्भावनायें केवल मानव में ही हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है... सुन्दर भावों के साथ..
ReplyDeleteइंसानी सामर्थ्य पे भरोसा जताती कविता ! अच्छी कविता !
ReplyDeleteअति सुंदर रचना जी, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत अच्छी कामना है यह फलीभूत हो ।
ReplyDelete