ईश्वर ने हमें अपने विचारों को लेखनीबद्ध करने कि प्रतिभा दी है इसीलिए हम ब्लोगर हैं। जाने कितने ही लोग हैं जो चाहकर भी अपने विचारों को कागज पर उतार नहीं सकते। तीनेक साल पहले तक मैं भी स्वयं को लेखन प्रतिभा से विहीन समझता था किन्तु अभ्यास करके मैंने इस प्रतिभा को अपने भीतर विकसित कर लिया। और मुझमें जब अपने विचारों को लेखनीबद्ध करने की योग्यता आ गई तो मैं ब्लोगर बन गया।
मनुष्यमात्र का यह स्वभाव है कि वह अपनी प्रतिभा का उपयोग करता है। यह उपयोग या तो सदुपयोग हो सकता है या दुरुपयोग हो सकता है या फिर महज एक उपयोग ही हो सकता है। जब कोई अपनी योग्यता का उपयोग करता है और उस उपयोग से समाज का, राष्ट्र का या अन्य अनेक लोगों का कल्याण होता है, राष्ट्र, समाज और लोगों तक उसकी योग्यता के माध्यम से कोई सार्थक सन्देश पहुँचता है तो योग्यता का यह उपयोग निःसन्देह सदुपयोग ही होता है और यदि इसके विपरीत होता है तो दुरुपयोग। किन्तु किसी की प्रतिभा से यदि किसी का न तो कल्याण होता है और न ही राष्ट्र, समाज और लोगों को किसी प्रकार की हानि ही पहुँचती है तो यह योग्यता का महज उपयोग हुआ।
कई बार मेरे मन में प्रश्न उठता है कि मैं अपनी प्रतिभा का उपरोक्त तीन प्रकार के उपयोगों में से किस प्रकार का उपयोग कर रहा हूँ? स्वयं को ही लगने लगता है कि मैं अपनी प्रतिभा का महज उपयोग मात्र कर रहा हूँ। और शायद वह भी इसलिए क्योंकि अपनी प्रतिभा का प्रयोग करने के लिए मुझे ब्लोगर रूपी मुफ्त मंच (free plateform) मिल गया है। जी हाँ, यह सही है कि यदि मुझे ब्लोगर बनने के लिए अपनी जेब से रुपये खर्च करने पड़ते तो मैं कदापि ब्लोगर न बना होता।
मैं जानता हूँ कि जिनमें लेखन की यह प्रतिभा नहीं है वे दूसरों को पढ़ना पसन्द करते हैं। किन्तु वे लोग मुझे पढ़ने के लिए लालायित कभी नहीं होते क्योंकि मैं अपनी प्रतिभा का महज उपयोग कर रहा हूँ, सदुपयोग नहीं।
यदि कभी मैं अपनी इस प्रतिभा से राष्ट्र, समाज, भाषा तथा अन्य लोगों का किंचित मात्र भी भला कर पाया तो मैं स्वयं को धन्य मानूँगा।
निश्चय ही आप अपने स्वप्न साकार कर पायेंगे।
ReplyDeleteshubh kaamnaayen
ReplyDeleteबिलकुल अवधिया जी अब आपने जाकर सच को मुट्ठी में कस कर पकड़ लिया !
ReplyDeleteआपने अभी तक जितना किया है वह कम नहीं है, और आपसे ऐसी अपेक्षा लगातार बनी रहेगी.
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पोस्ट पढ़ी, पर समझ नहीं पा रहा कि क्या कहूं... शायद मैं अपनी 'टिप्पणी प्रतिभा' का महज उपयोग ही कर पा रहा हूँ... सदुपयोग नहीं...
यदि कभी मैं अपनी इस 'टिप्पणी प्रतिभा' से राष्ट्र, समाज, भाषा, अपना तथा अन्य लोगों का किंचित मात्र भी भला कर पाया तो मैं स्वयं को धन्य मानूँगा!
आज ही से आदरणीय अरविन्द मिश्र जी का शिष्यत्व ग्रहण कर रहा हूँ... जबरिया...
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यदि कभी मैं अपनी इस प्रतिभा से राष्ट्र, समाज, भाषा तथा अन्य लोगों का किंचित मात्र भी भला कर पाया तो मैं स्वयं को धन्य मानूँगा
ReplyDeleteपसंद आया यह अंदाज़
हम तो पैसे खर्च करके ही इसका उपयोग कर रहे हैं सदुपयोग कब करेंगे ये पता नही। आप सब का भला ही कर रहे हैं। शुभकामनायें।
ReplyDeleteशुभकामनायें आप और लिखें और आपकी दर्जनों किताबें छपें.... हमें फ़्री में भेजेंगे न एक प्रति ;)
ReplyDeleteहमारी भी शुभकामनाएं...
ReplyDeleteशुभकामनायें
ReplyDeleteshubhkamanaye
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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