Wednesday, March 16, 2011

हरि को नचन सिखावैं राधा प्यारी

जहाँ हिन्दी भक्ति साहित्य को गोप-गोपियों, ग्वालों और कृष्ण के आत्मिक प्रेम का वर्णन रसमय बनाता है, वहीं उनका यह अलौकिक प्रेम फागुन के महीने में होली के माहौल को एक अद्भुत मस्ती भी प्रदान करता है। यदि भक्त-कवियों द्वारा रचित भजनों में इस अलौकिक प्रेम का वर्णन श्रोता के भीतर श्रद्धा और भक्ति के भाव उत्पन्न करते हैं तो 'बैजनाथ', 'पल्टू हीरामन', 'चन्द्रसखी' जैसे फाग-गीतकारों द्वारा रचित फागों में वही वर्णन भंग की तरंग और होली के माहौल से मस्त होकर फाग-गीत गाने तथा सुनने वालों को ऐसी मस्ती से भर देता है कि उनके पग अनायास ही ताल-धमाल की थाप सुनते ही धिरकने लग जाते हैं।

'बैजनाथ' की रचना तो कृष्ण को सीधे-सीधे "मन का काला" ही करार देता हैः

मिला बन में मुरलियावाला सखी, मिला बन में मुरलिया वाला सखी।

कोई कहे देखो मोहन हैं आए,
कोई कहे नन्दलाला सखी।
मिला बन में मुरलिया वाला सखी।

धर पिचकारी खड़े ग्वाल सब
कोई धरे है गुलाला सखी।
मिला बन में मुरलिया वाला सखी।

सारी साड़ी मेरो भिगोए,
देखो नन्द का लाला सखी।
मिला बन में मुरलिया वाला सखी।

'बैजनाथ' कहे श्याम सलोना,
लेकिन मन का काला सखी।
मिला बन में मुरलिया वाला सखी।

और 'पल्टू हीरामन' लिखते हैं

होरी खेलत घनश्यामा बिरिज में होरी खेलत घनश्यामा।

श्याम के संग में सकल पदारथ,
राधा के संग सुख-सामां।
बिरिज में होरी खेलत घनश्यामा।

श्याम के संग में गोकुल के ग्वाला,
राधा के संग बृजवामा।
बिरिज में होरी खेलत घनश्यामा।

'पल्टू हीरामन' रंग उड़े रे,
लाल भए गोकुल ग्रामा।
बिरिज में होरी खेलत घनश्यामा।

इसी प्रकार से 'चन्द्रसखी' बताते हैं कि किस प्रकार से कृष्ण को राधा ने नृत्य सिखायाः

नचन सिखावैं राधा प्यारी हरि को नचन सिखावैं राधा प्यारी।

जमुना पुलिन निकट वंशीवट,
शरद रैन उजियारी।
हरि को नचन सिखावैं राधा प्यारी।

रूप भरे गुन छड़ी हाथ लिए,
डरपत कृष्ण मुरारी।
हरि को नचन सिखावैं राधा प्यारी।

'चन्द्रसखी' भजु बालकृष्ण छवि,
हरि के चरण बलिहारी।
हरि को नचन सिखावैं राधा प्यारी।

धन्य है यह गोप-गोपियों, ग्वालों और श्री कृष्ण का अद्भुत, अलौकिक और आत्मिक प्रेम!

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अद्भुत, आलौकिक और आत्मिक भक्ति कविता।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

sundar geet...

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छी ओर सुन्दर प्रस्तुति!