tag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post8893484374366911179..comments2024-02-01T17:17:24.739+05:30Comments on धान के देश में!: क्या आप चाहेंगे कि आपके बच्चों के साथ गरीब बच्चे भी एक ही स्कूल में पढ़ें?Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-20381020693641427632011-04-29T10:29:55.701+05:302011-04-29T10:29:55.701+05:30हिंदी ब्लॉग्गिंग ने मेरे विचारों को और मेरे बहुत स...हिंदी ब्लॉग्गिंग ने मेरे विचारों को और मेरे बहुत से साथियों के विचारों को पर लगा दिए हैं . धन्यवाद् ब्लागस्पाट एंड गूगलशाकिर खानhttps://www.blogger.com/profile/07946440129267707761noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-84507693541322421482010-04-25T10:17:44.887+05:302010-04-25T10:17:44.887+05:30अवधिया साहब , शायद गरीब की व्याख्या या तो मैं ठीक ...अवधिया साहब , शायद गरीब की व्याख्या या तो मैं ठीक से नहीं कर पाया या शायद आप लोग समझने में गलती कर रहे है, गरीब से मेरा मतलब उस गरीब के बच्चे से नहीं जो वाकई किसी न किसी स्कूल में जाता है , गरीब के मायने मैंने अपनी टिपण्णी में वो लिए जो हाल ही में हमारे सिक्षा मंत्री ने कही है, यानी जुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले वे बच्चे जो स्कूल नहीं जा पाते और जिन्हें सरकार चाहती है की पब्लिक स्कूल भी सरकारी स्कूलों की तरह अपने यहाँ एडमिशन दे कोटे के तहत ! उस हिसाब से तो हम कौन से अमरी है , हम भी गरीब ही है भाई ,मगर मैंने आपके लेख का आशय शीधे कपिल सिब्बल जी वाली बात पर लिया थापी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-13900480992948129072010-04-25T05:55:53.145+05:302010-04-25T05:55:53.145+05:30आप लिखते हैं,
"हम साधारण शिक्षक के बेटे थे कि...आप लिखते हैं,<br />"हम साधारण शिक्षक के बेटे थे किन्तु हमारे साथ हमारे शहर के पूँजीपति व्यापारियों के बेटे भी गव्हर्नमेंट स्कूल में पढ़ते थे। हमारे बीच कभी भी गरीबी-अमीरी का भेद-भाव नहीं आया।"<br />और<br />"हमारे देश में शुरू से ही 'नारायण' और 'दरिद्रनारायण' की एक साथ शिक्षा की व्यवस्था रही है । जिस आश्रम में राजपुत्र राम को शिक्षा मिलती थी वहीं केवटपुत्र भी शिक्षा पाते थे। संदीपनी जहाँ कृष्ण को ज्ञान प्रदान करते थे वहीं सुदामा को भी। भेद-भाव का कहीं भी स्थान नहीं होता था।"<br />आर्थिक विकास के इस पूंजीवादी मॉडल का अंजाम तो यही होता है कि कंगाली के समुद्र में खुशहाली की चंद मीनारें. एक आदर्शवाद हो सकता है और पूंजीपति और नये पैदा हुए मध्यमवर्ग द्वारा इस प्रकार की भावुक बातें की जा सकती हैं कि गरीब और अमीर के बच्चे एक साथ पढ़ें. पूंजीपति अपनी फैक्ट्री या खेत में मजदूर को कोई छूट देने को तैयार नहीं होता (ध्यान रहे उसका मुनाफा मजदूर से निचोड़े गये बेशी मूल्य से आता है और यह पूंजीवाद का नैसर्गिक नियम है) तो भला स्कूल में कैसे इस प्रकार का माहौल पैदा किया जा सकता है " स्कूल भी तो उसी प्रसंग में आते हैं जिसमें हमारे समाज का ढांचा विकसित हुआ है. इसे एकांगी नहीं रखा जा सकता.<br /><br />किसी विद्वान् ने कहा है कि जिन लोगों का भविष्य नहीं होता वे अपने गौरवमयी अतीत का स्मरण कर कुढ़ते रहते हैं. जबकि दूसरे विश्व-युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार रहे, प्रसिद्ध विज्ञानी जॉन डेस्मोंड बरनाल ने लिखा है, ” प्रचुरता और अवकाश के एक युग की समूची संभावनाएं हमारे पास हैं, लेकिन हमारा यथार्थ एक विभाजित विश्व का है, जिसमें इतनी भूखमरी, मूर्खता और क्रूरता है जितनी आज तक कभी नहीं रही.”एक बेहतर समाज संभव है लेकिन वह आदर्श से नहीं मजदूर और बुर्जुआ वर्ग के बीच संघर्ष से मजदूर वर्ग के सत्ता में आने से ही शुरू होगा.मध्यमवर्गीय, आदर्शवादी और भावुक बातें सदियों से होती रही है, इनका कई भौतिक आधार नहीं होता.JAGSEERhttps://www.blogger.com/profile/11579517883697487576noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-18757185668759166472010-04-24T18:10:44.947+05:302010-04-24T18:10:44.947+05:30अब हम क्या बतायें? आज अर्थ प्रधान युग है और जब इतन...अब हम क्या बतायें? आज अर्थ प्रधान युग है और जब इतनी आर्थिक असमानताएं हैं तो ये सब बुराईयां पैदा होंगी ही. <br /><br />आपने बिल्कुल सटीक मुद्दा उठाया है.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-60064135355934646582010-04-24T17:16:16.150+05:302010-04-24T17:16:16.150+05:30ऐसे बेहाल बेवाइन सों भये, पग कंटक-जाल लगे पुनि जोय...ऐसे बेहाल बेवाइन सों भये, पग कंटक-जाल लगे पुनि जोये।<br />हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न कितै दिन खोये॥<br />देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।<br />पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैंनन के जल सौं पग धोये॥<br />कलजुग मां ऐसो सोच सकत हौ, सखा ही सखा के बैरी जो होये<br />"शासकीय" शाला के गुरुवर सबै दिन, वेतन कम, स्ट्राईक जो करके, आये दिन घर मे जो सोये <br />प्राइवेट स्कूल मे भले कम वेतन, जिनगी कैसो भी करके जो ढोये <br />वैसे बहुत ही अच्छा विषय चुना आपने अवधिया जी!सूर्यकान्त गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/05578755806551691839noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-54202206851146296522010-04-24T14:59:55.959+05:302010-04-24T14:59:55.959+05:30आज के जमाने मै मेने देखा है लोग अपने बच्चे को उच्च...आज के जमाने मै मेने देखा है लोग अपने बच्चे को उच्च संस्थानो( मेरी नजर मै यह संस्थान सब से गिरे है)ही पढाते है, ओर उस की फ़ीस जुटाने के लिये पता नही किस किस का गला काटते है.... अब आप ही सोचे जब हम किसी पोधे को गंदे पानी से सींचेगे तो वो बडा हो कर खुश्बू तो नही देगा.... गरीबो के बच्चो से ज्यादा गंदगी अमीरो के बच्चे फ़ेलाते है..... आज समाज मै खुद ही देख ले....राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-49603334060411514622010-04-24T13:13:24.038+05:302010-04-24T13:13:24.038+05:30गोंदियाल जी की बात समझ से परे है।
बड़े-बड़े स्कूल...गोंदियाल जी की बात समझ से परे है।<br /><br />बड़े-बड़े स्कूलों में वपढ़ रहे हैं जिनके पितरों ने पास 'काली कमाई' की है। वे 'संस्कारित' हो गये और जो मेहनत, मजदूरी, इमानदारी से रहकर गरीब रहा वह 'गाली सिखाने वाला' हो गया? क्या ये दो करोड़ का घूस गरीब लोग लेते हैं?अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-26905009201246567102010-04-24T12:57:01.198+05:302010-04-24T12:57:01.198+05:30हम जब पढ़ते थे तब तो कौन गरीब है और कौन अमीर पता ही...हम जब पढ़ते थे तब तो कौन गरीब है और कौन अमीर पता ही नहीं लगता था। आज अर्थ प्रधान समाज बनता जा रहा है तो अर्थ के सारे ही गुण और अवगुण समाज को भुगतने पडेंगे।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-78605352829921721892010-04-24T12:10:46.218+05:302010-04-24T12:10:46.218+05:30गोदियाल जी,
क्या सारे गरीबों के बच्चे गाली देते ह...गोदियाल जी,<br /><br />क्या सारे गरीबों के बच्चे गाली देते हैं और सारे अमीरों के बच्चे कभी गाली नहीं देते?<br /><br />मैंने सैकड़ों अमीरों और उनके बच्चों को भद्दी गालियाँ देते हुए सुना है और कई ऐसे भी गरीब तथा गरीब बच्चे देखे हैं जो गालियों का प्रयोग नहीं करते।<br /><br />हमें अपने भीतर के इस पूर्वाग्रह को कि गरीब बुरे ही होते है और अमीर अच्छे, निकालना ही होगा।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-66778319711607708892010-04-24T11:49:19.505+05:302010-04-24T11:49:19.505+05:30अवधिया साहब, समाज और देश को ध्यान में रखकर भले ही ...अवधिया साहब, समाज और देश को ध्यान में रखकर भले ही कितनी ही बाते नैतिकता की हों, लेकिन सत्यता यही है कि कुछ मायनों में फर्क भी जरूरी है ! खून पसीने की गाढी कमाई से बच्चे की हजारों रूपये फीस भरकर माँ-बाप यह उम्मीद नहीं करना चाहते कि दोपहर में बच्चा कोई भद्दी गाली सीख कर घर आये ! हाँ, अगर इस अंतर को मिटाना है तो सरकार कुछ ठोस कदम उठा कर हर स्कूल में ऐंसी व्यवस्था करवा सकती है कि बच्चा चाहे वो अमीर का हो या फिर गरीब का पढ़े सभी साथ ही एक क्लास में मगर कुछ ऐसी व्यवस्था के साथ कि बच्चा गरीब बच्चे की किसी गलत संगत्ति में न आये! उस गरीब बच्चे को गलत बाते भी इसी समाज मं मिली है मगर इसका भार वे माता पिता ही क्यों ढोए जिन्होंने अपना पेट काटकर अपने बच्चे को अच्छी तालीम दिलवाने की कोशिश की ?पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7873472974131739342.post-23443177192184740342010-04-24T10:15:35.709+05:302010-04-24T10:15:35.709+05:30मैकाले की शिक्षा पद्धति ही वर्ग भेद पैदा करने वाली...<i><b> मैकाले की शिक्षा पद्धति ही वर्ग भेद पैदा करने वाली थी,<br />जिसका पोषण अभी तक हो रहा हैं। आज मंहगी शिक्षा ने अविभावकों की कमर तोड़ दी है। जिसका पास पैसा है वही अपने बच्चों को शिक्षा दिला सकता है। सरकारी स्कूल के मास्टरों को भी अपने स्कूल की गुणवत्ता पर विश्वास नही है। वे स्वयं के बच्चों को प्राईवेट स्कूलों में पढाते हैं। <br /><br />अब कृष्ण और सुदामा एक साथ नहीं पढ सकते। क्योंकि दोनो के बीच में अमीर गरीब की एक बड़ी खाई है।<br /><br />बहुत ही अच्छी पोस्ट लिखी गुरुदेव<br />आभार</b></i>ब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com