Showing posts with label नापसन्द. Show all posts
Showing posts with label नापसन्द. Show all posts

Tuesday, June 15, 2010

कल हमारे नापसन्दीलाल छुट्टी पर थे

जब कोई वस्तु अनायास ही उपलब्ध हो, और वह भी मुफ्त में, तो उस वस्तु का उपयोग करने की इच्छा जागृत हो ही जाया करती है। ब्लोगवाणी ने भी हम सभी को नापसन्द वाला बटन उपलब्ध करवाया हुआ है; और वह भी बिल्कुल मुफ्त में। यह तो आप जानते ही हैं कि "माल-ए-मुफ्त दिल-ए-बेरहम"! तो इस बटन को क्लिकियाने का शौक भला किसे नहीं होगा। नापसन्द का एक चटका लगा देने में भला अपने बाप का क्या जाता है याने कि आजकल की भाषा में What goes of my father? और फिर खूब मजा भी तो आता है नापसन्द का चटका लगाने में! संकलक के हॉटलिस्ट में ऊपर चढ़ता हुआ पोस्ट दन्न से नीचे आ जाता है और पोस्ट लिखने वाले का हाल तो "कइसा फड़फड़ा रिया है स्साला" वाला हो जाता है। नापसन्द का चटका लगाने वाला उसके इस हाल को रू-ब-रू देख तो नहीं पाता, पर उसकी कल्पना कर के खूब खुश हो लेता है।

तो बात चल रही थी नापसन्द वाले बटन को प्रयोग करने की। जब इसे प्रयोग करने की इच्छा जोर मारने लगती है तो सोचना पड़ता है कि आखिर कहाँ पर प्रयोग किया जाये इसका? ज्योंही दिमाग में यह प्रश्न उठता है, तत्काल भीतर से आवाज आती है जो भी ब्लोगर हमें पसन्द नहीं है उस पर इस बटन का प्रयोग कर दो। किसी ब्लोगर के पसन्द होने या ना होने के लिये किसी कारण का होना जरूरी थोड़े ही होता है, कई बार तो लोग अकारण ही हमें पसन्द नहीं होते। सामान्य जीवन में भी आपने अनेक बार अनुभव किया होगा कि हम किसी व्यक्ति को जीवन में पहली बार देखते हैं और देखते ही हमें लगने लगता है कि "स्साला एक नंबर का टुच्चा है"। बताइये कई बार ऐसा लगता है कि नहीं? वैसे कई बार इसका उलटा भी होता है कि किसी अनजान व्यक्ति को देखते ही हमें लगने लगता है कि "यार ये तो बहुत ही अच्छा आदमी है"। तो यही बात किसी ब्लोगर के विषय में भी हो जाना अस्वाभाविक तो नहीं है। बस फिर क्या है? जो ब्लोगर मन को नहीं भाता, उसके पोस्ट पर दन्न से चटका लग जाता है नापसन्द का। अब नापसन्द का चटका लगाने के लिये किसी के पोस्ट को पढ़ना जरूरी थोड़े ही होता है!

तो हम बता रहे थे कि किसी ब्लोगर को नापसन्द करने के लिये किसी कारण का होना जरूरी नहीं है पर हमें नापसन्द करने के लिये तो एक नहीं अनेक कारण हैं। जैसे कि सठियाने के उम्र में भी ब्लोगिंग कर रहा है स्साला। भला ब्लोगिंग भी कोई बुड्ढों की करने की चीज है। पर ये हैं कि किये जा रहा है ब्लोगिंग। सींग कटा कर बछड़ों में शामिल हो गया है। कब्र में पाँव लटके हुए हैं पर छपास की चाह नहीं छूटती। शिरीष के फल के जैसे, सारे फूल-पत्ते के झड़ जाने के बावजूद भी, लटका हुआ है डाली से। अरे भाई, अब गिर भी जाओ नीचे, दूसरे फल को आने के लिये जगह दो।

चलो, अब जब ये ब्लोगिंग कर ही रहे हैं तो हमारे जैसे भलेमानुष को इन पर तरस भी आ जाता है और हम टिप्पणी भी दे देते हैं इन्हें पर ये हैं कि हमें टिप्पणी देना तो दूर, भूल कर भी कभी झाँकने तक नहीं आते हमारे ब्लोग में। भला ये भी कोई बात हुई? ऊपर से तुर्रा यह कि कई बार हमारी टिप्पणी को मिटा तक देते हैं यह कहते हुए कि तुम्हारी टिप्पणी का हमारे पोस्ट के विषय से कुछ सम्बन्ध ही नहीं है। अब भला किसी टिप्पणी का पोस्ट के विषय से सम्बन्ध होना कोई जरूरी है क्या?

कहने का तात्पर्य यह है कि हमें नापसन्द करने के लिये बहुत सारे कारण हैं। ऐसे में यदि कोई हमें नापसन्द करने लगे तो ऐसा होना तो स्वाभाविक ही है। तो साहब, एक अरसे से हम देख रहे हैं कि हमारा पोस्ट ब्लोगवाणी में ज्योंही आता है, तड़ाक से उस पर एक चटका लग जाता है नापसन्द का। हम तो यह सोच कर दिल को तसल्ली दे लेते हैं कि यह सिर्फ एक हमारा ही ग़म नहीं है बल्कि और भी बहुत से लोग इस दर्द के मारे हुए हैं।

पर कल हमें यह देख कर बहुत ही आश्चर्य हुआ कि हमारा पोस्ट संकलक में आ गया है पर नापसन्द का चटका नहीं लगा है। खैर हमने सोचा कि आज हमारे नापसन्दीलाल जी शायद कहीं व्यस्त हैं, बाद में आकर हमें चटका दे जायेंगे। हम इन्तजार करते रहे पर हमारे इन्तजार का कुछ भी सार्थक नतीजा नहीं निकला। यहाँ तक कि कल का दिन बीत गया और आज का दिन आ गया पर वह चटका अभी भी नदारद है। अब हमें लग रहा है कि हमारे नापसन्दी लाल जी शायद कल छुट्टी पर थे। या फिर शायद उन्हे उनके डॉक्टर ने नापसन्द का चटका लगाने के लिये मना कर दिया हो। हमें तो में आशंका हो रही है कि भगवान ना करे कि कहीं बीमार-वीमार ना पड़ गये हों। यदि ऐसा कुछ हो तो हम तो ऊपर वाले से यही दुआ करेंगे कि वे जल्द ही स्वास्थ्यलाभ प्राप्त करें।

Thursday, June 10, 2010

भगवान राम भला करे उसका जो "वाल्मीकि रामायण" पर भी नापसन्द का चटका लगाता है

सभी की अपनी अपनी पसन्दगी और नापसन्दगी होती है। हम जानते हैं कि पसन्द और नापसन्द व्यक्ति का अपना निजी मामला होता है इसीलिये हमारे ब्लोग "धान के देश में" में किसी पोस्ट के प्रकाशित होते ही नापसन्द का चटका लग जाने पर हमें कभी भी आश्चर्य नहीं होता। किन्तु हमारे "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" के कल के अन्तिम पोस्ट में एक नापसन्द का चटका लगे देखकर हमें किंचित आश्चर्य अवश्य हुआ क्योंकि प्रायः देखा यही गया है कि किसी ऐसे ग्रंथ को जिसे कि सम्पूर्ण विश्व में मान्यता प्राप्त हो यदि कोई पसन्द नहीं कर पाता तो उसके प्रति, शिष्टाचार के नाते ही सही, अपनी नापसन्दी भी नहीं जताता।



अस्तु, किसी की पसन्द और नापसन्द से हमें भला करना ही क्या है, हम तो भगवान श्री राम से यही प्रार्थना करते हैं कि उस भले मानुष का कल्याण करे!

भले ही किसी की पसन्द और नापसन्द से हमें कुछ लेना देना ना हो किन्तु ब्लोगवाणी नापसन्द बटन के विषय में जरूर कुछ कहना चाहेंगे क्योंकि यह बहुत सारे ब्लोगर्स को प्रभावित करता है। इस विषय में हम एक बार फिर से अपने पोस्ट "नापसन्द बटन याने कि बन्दर के हाथ में उस्तरा" कही गई बात को दुहराना चाहेंगे कि:

खुन्नस रखने वालों के लिये नापसन्द का यह बटन "बन्दर के हाथों उस्तरा" ही साबित हो रहा है।


चलते-चलते

A good man in an evil society seems the greatest villain of all.

खराब समाज में सभी लोगों को एक अच्छा आदमी सबसे बड़ा खलनायक जैसा लगता है।

A lie can be halfway around the world before the truth gets its boots on.

सत्य से पराजित होने के पूर्व झूठ आधी दुनिया की यात्रा कर लेता है।

Bad news travels fast.

खराब समाचार तेजी से फैलता है।

An empty vessel makes the most noise.

खाली बर्तन अधिक आवाज करता है। अधजल गगरी छलकत जाय।

All that glisters is not gold.

हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।

Tuesday, May 4, 2010

नापसन्द बटन याने कि बन्दर के हाथ में उस्तरा

कितना लिखें इस नापसन्द के बारे में? अब तो इस विषय में लिखने के लिये हमारी लेखनी भी सकुचाती है। वैसे भी नापसन्द के विषय में बहुत से लोगों के विचार पोस्ट और टिप्पणियों के माध्यम से आ ही चुके हैं। इतना होने के बावजूद भी हमें इस विषय में लिखना ही पड़ रहा है क्योंकि यह नापसन्द बटन कुछ विघ्नसन्तोषियों के लिये वरदान सिद्ध हो रहा है।

भले ही ब्लोगवाणी ने नापसन्द बटन को इसके सदुपयोग के लिये बनाया होगा किन्तु इस बटन का सदुपयोग तो आज तक कहीं नजर नहीं आया, दिखाई देता है तो सिर्फ इसके दुरुपयोग ही दुरुपयोग। डॉ. श्रीमती अजित गुप्ता, पं.डी.के.शर्मा"वत्स", प्रशान्त प्रियदर्शी जैसे और भी कई अन्य ब्लोगर्स, जो बगैर किसी के निन्दाचारी किये सामान्य पोस्टें लिखते हैं, के पोस्टों पर भी नापसन्द के चटके लग चुके हैं। और तो और ब्लोगर्स के जन्मदिन दर्शाने वाले ब्लोग पर प्रायः ही नापसन्द का चटका पाया जाता है, पता नहीं किन लोगों को ब्लोगर्स के जन्मदिन भी नापसन्द हैं?

कल तो हमारा पोस्ट "क्या आपने कभी आलू, प्याज, टमाटर के विज्ञापन देखे हैं?" ब्लोगवाणी में प्रकाशित होते ही फटाफट दो नापसन्द के चटके लग गये उस पर जबकि हमने उस पोस्ट में ऐसी कोई बात नहीं लिखी थी जिसे कोई भला आदमी नापसन्द कर पाये। ऐसा लगा हमें कि ये नापसन्दीलाल लोग इन्तिजार करते हुए बैठे थे कि कब हमारा पोस्ट प्रकाशित हो और हम उस पर नापसन्द का चटका लगायें। वैसे इन लोगों के नापसन्द करने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हम तो नापसन्द के इन चटकों से निरुत्साहित होने से रहे, उलटे हम और उत्साहित हो कर दस बीस और पोस्ट लिख दें और कहें कि करो नापसन्द जितना कर सकते हो। तुम जितना नापसन्द करोगे उससे दुगुना हम पोस्ट लिख देंगे।

हमारे विचार से तो कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि खुन्नस रखने वालों के लिये नापसन्द का यह बटन "बन्दर के हाथों उस्तरा" ही साबित हो रहा है।

Wednesday, April 28, 2010

बिना बात कोई नापसंद का चटका लगाता है क्या?

नापसन्द है .. नापसन्द है .. नापसन्द है ..

अब नापसन्द है तो नापसन्द है। कोई हमें नापसन्द का चटका लगाने से रोक सकता है क्या? हम तो लगायेंगे जी नापसन्द का चटका।

कल के हमारे पोस्ट "ट्रिक्स टिप्पणियाँ बढ़ाने के"  में अदा बहन ने अपनी टिप्पणी में यह लिखते हुए कि "आज कल एक नया ट्रेंड चला है पोस्ट को नीचे लाने का...बिना बात के लोग नापसंद का चटका जो लगा रहे हैं" हमसे नापसन्द के बारे में लिखने के लिये अनुरोध किया था। हमें भी लगा कि इस पर कुछ लिखा जाये। और कुछ हो या न हो कुछ नापसन्द के चटके ही मिल जायेंगे हमें।

बिना बात के कोई बात नहीं होती। प्रत्येक कार्य के लिये कुछ ना कुछ कारण होना जरूरी होता है। नापसन्द करने के लिये भी कारण होते हैं। नापसन्द का चटका लगाने के पीछे पोस्ट का नापसन्द होना कारण नहीं होता बल्कि पोस्ट लिखने वाले का नापसन्द होना होता है। पोस्ट लिखने वाले को नापसन्द करने के भी अनेक कारण होते हैं मसलनः

  • हम इतना अच्छा लिखते हैं पर ब्लोगवाणी के हॉटलिस्ट में कभी आ ही नहीं पाता। और इस स्साले को देखो रोज ही इसका पोस्ट चढ़ जाता है हॉटलिस्ट में। नापसन्द का चटका लगा कर खींच दो इसकी टाँगे।

  • अरे इस स्साले ने तो बड़ी छीछालेदर की थी हमारी, आज देखते हैं इसका पोस्ट कैसे ऊपर चढ़ पाता है?

  • ये तो फलाँ क्षेत्र का ब्लोगर है जहाँ से बहुत सारे ब्लोगर हिट हो रहे हैं, क्यों ना इसके पोस्ट को नापसन्द का चटका लगाया जाये?

  • ये आदमी तो हमें फूटी आँखों नहीं सुहाता।

  • अरे इसने तो उसके बारे में पोस्ट लिखा है जो हमें फूटी आँखों नहीं सुहाता। लगा दो स्साले को नापसन्द का चटका।

  • ये तो विधर्मी है और हमारे धर्म के विरुद्ध लिखता है।
आदि आदि इत्यादि ...

दोस्तों, नापसन्द बटन बनाने का उद्देश्य पोस्ट के विषयवस्तु के लिये था किन्तु इसका प्रयोग पोस्ट लिखने वाले के लिये हो रहा है। कई बार आपने ब्लोगवाणी में ऐसे पोस्ट भी देखे होंगे जिसका व्ह्यू 0 होता है किन्तु  पसन्द दिखाता है -1, याने कि पोस्ट को बिना पढ़े और उसकी विषयवस्तु को बिना जाने ही नापसन्द का चटका लगा दिया जाता है।

धन्य है ऐसे लोग! ऐसे ही लोगों के लिये गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा हैः

पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं॥