Friday, November 6, 2009

लिखना तो बहुत आसान काम है पर सूझना बहुत मुश्किल है ... आइये जानें कि लिखना सूझता कैसे है

आप एक पोस्ट लिखना चाहते हैं किन्तु आपको कुछ सूझ नहीं रहा। कल के मेरे पोस्ट की टिप्पणियों में कुछ लोगों ने पूछा है कि लिखने के लिये कुछ सूझे तो कैसे सूझे? इस प्रश्न का उत्तर देने के पहले मैं आपको एक छोटी सी कथा बताना चाहता हूँ जो इस बात पर प्रकाश डालती है कि कोई चीज कैसे सूझती है।

प्राचीन काल में एक विद्यार्थी अपनी शिक्षा पूर्ण कर के गुरु के आश्रम से अपने घर वापस आ रहा था। वह वैश्य वर्ण का था अतः उसने व्यवसाय विषय की ही शिक्षा ली थी। रास्ते में रात हो गई और उसे एक बस्ती में रुकना पड़ा। उस बस्ती के सबसे बड़े व्यवसायी ने उसे अपना अतिथि बना लिया। रात्रि के भोजन के पश्चात् उसने व्यवसायी को पुत्र के साथ वार्तालाप करते देखा। व्यवसायी अपने पुत्र की भर्त्सना करते हुए कह रहा था कि तुम किसी योग्य नहीं हो, मैंने तुम्हें अपना व्यवसाय करने के लिये तीन बार धन दिया और तीनों बार तुम असफल हुए। एक योग्य व्यवसायी तो (वहाँ पर एक मरे हुए चूहे की ओर इशारा करके) इस मरे हुए चूहे से भी अपना व्यवसाय शुरू कर सकता है। व्यवसायी का पुत्र तो शर्मिंदा होकर वहाँ से चला गया किन्तु उस विद्यार्थी ने व्यवसायी के पास आकर कहा कि वे उस मरे हुए चूहे को उसे ऋण के रूप में दे दे। व्यवसायी ने कहा कि ऋण क्या, तुम उसे वैसे ही ले लो। अब उस विद्यार्थी ने गाँव में घूम कर पता किया कि एक व्यक्ति ने बिल्ली पाला हुआ है। उसने वाक्‌पटुता (सेल्समेनशिप) का प्रयोग करके मरा हुआ चूहा उसे बेच दिया। मिले हुये पैसों से उसने एक घड़ा और कुछ सत्तू खरीद लिया और घड़े में पानी भर कर तथा सत्तू लेकर पास के जंगल वाले रास्तें में बैठ गया। जंगल से लकड़ी काट कर आने वाले लकड़हारों को उस ने सत्तू बेचकर पानी पिलाया। इस प्रकार से कमाये गये धन से वह अपना व्यवसाय बढ़ाता गया। कुछ ही वर्षों के बाद वह राज्य का प्रमुख व्यसायी बन गया और एक सोने का चूहा बनवा कर अपने ऋणदाता को वापस कर के उसने अपने ऋण से मुक्ति पाई।

इस कथा से स्पष्ट है कि "मरे हुए चूहे से भी अपना व्यवसाय शुरू किया जा सकता है" कथन ने विद्यार्थी को एक सूझ दी। वह कथन ही उसकी प्रेरणा थी। कुछ सूझने के लिये आवश्यक है एक प्रेरणा का होना और अपनी सूझ को क्रियान्वित करने के लिये भरपूर लगन तथा परिश्रम। प्रेरणाएँ आपके चारों ओर बिखरी रहती हैं। आपका लाडला आपसे एक प्रश्न करता है वह आपकी प्रेरणा बन सकती है, आपकी श्रीमती जी परेशान होती हैं कि मँहगाई में कैसे घर चलाया जाये तो वह भी आपकी एक प्रेरणा बन सकती है, आटो रिक्शा वाला अपना किसी दुर्घटना के विषय में बताता है तो वह भी आपकी प्रेरणा बन सकती है, यहाँ तक कि किसी कली का खिलना या फूल का मुरझाना भी आपकी प्रेरणा बन सकती है। और ईश्वर ने आपको अपने कार्य के प्रति भरपूर लगन एवं परिश्रम करने की क्षमता भी प्रदान की है। जरूरत है तो अपनी उस क्षमता को प्रयोग करने की।

अब देखिये ना, आज के लिये हमने एक दूसरा ही पोस्ट तैयार कर रखा था किन्तु आप लोगों की टिप्पणियों ने कुछ और सुझा दिया जिसे कि आप झेल रहे हैं। तो पहले से तैयार पोस्ट को अब हम कल आपके सामने पेश करेंगे।

चलते-चलते

हेयर कटिंग सेलून में एक आदमी एक बच्चे के साथ पहुँचा और नाई से अपनी और बच्चे की कटिंग करने के लिये कहा। नाई बच्चे की कटिंग करने के लिये कुर्सी पर पाटा लगा रहा था तो आदमी ने कहा, "देखो भाई, मुझे बाजार में कुछ जरूरी काम है। तुम पहले मेरी कटिंग बना दो ताकि जब तक तुम बच्चे की कटिंग करोगे मैं अपना काम निबटा लूंगा।"

नाई ने वैसा ही किया। कटिंग बन जाने पर आदमी बाजार के लिये निकल गया और नाई ने बच्चे की कटिंग करना शुरू किया।

बच्चे की कटिंग बन जाने पर भी आदमी वापस नहीं आया तो नाई ने बच्चे से पूछा, "बेटे, पापा किधर गये हैं?"

"वो मेरे पापा नहीं हैं।" बच्चे ने बताया।

"तो चाचा होंगे।"

"वो मेरे चाचा भी नहीं हैं।"

"तो कौन हैं?"

"उन अंकल को तो मैं जानता ही नहीं। मैं खेल रहा था तो वे आकर बोले कि बेटे फ्री का कटिंग करवाओगे? और मेरे हाँ कहने पर मुझे अपने साथ यहाँ ले आये।" बच्चे ने उत्तर दिया।


(तो देखा! यह भी एक सूझ है फ्री कटिंग करवाने की!!)


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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का अगला पोस्टः

खर-दूषण से युद्ध - अरण्यकाण्ड (7)

13 comments:

  1. प्रेरणा के स्त्रोत आस पास ही बिखरे होते हैं ..पहचानने की देर है ...प्रेरक आलेख कथा ...!!

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  2. jee...sahi kah rahen hain aap....... prerna to talaashni padti hai.......

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  3. आपके एक ही पोस्‍ट से लिखने के साथ ही साथ फ्री में हेयर कटिंग कराने की भी सूझ मिल गयी !!

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  4. वाह, अवधिया साहब, आज आपने मार्केटिंग के सारे गुर सीखा दिए ! अगली बार नाइ के पास जाऊँगा तो कुछ ऐसी ही युक्ति ढूंढ के रखूंगा :)

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  5. बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख, आभार

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  6. धन्यवाद जी! चलें मरा चूहा खोजें! :)

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  7. बढ़िया सुझाव दिया......धन्यवाद।

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  8. ज्ञानजी की तरह टहलने जाएं, आँखे खूली रखें. विश्लेषण करें और पोस्ट तैयार.

    अब आपने कहा है वैसे प्रेरणा तो कहीं से भी मिल सकती है, नियत होनी चाहिए.

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  9. आप तो फ्री कटिंग भी करा दोंगे और हमारी कर भी दोंगे। आपको नमन। सर मुंडाने पर अच्‍छे अच्‍छे को सूझ जाती है। बधाई।

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  10. प्रेरक पोस्ट्! हमारे पास लिखने की प्रेरणा भी है,विचार भी हैं लेकिन उन विचारों को शब्दों में ढालना भी तो बडी टेढी खीर है ।
    गर आपके पास कोई मरा चूहा हो तो कुछ दिनों के लिए उधार देने की कृ्पा करें :)

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  11. आपके सूझ-पुराण को प्रणाम...
    वैसे एक बात और...कहीं वो बच्चा पप्पू तो नहीं था और कटिंग करा कर पतली गली से निकल जाने वाले कहीं....तो नहीं थे....खैर जाने दीजिए...आपकी हिदायत याद आ गई...

    जय हिंद...

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