जी हाँ, दूसरों के मैटर चुराता हूँ मैं। चुराता हूँ क्या अभी कल ही एक मैटर चुराया है मैंने और ऊपर से तुर्रा यह कि जिनका मैटर चुराया है उन्हें मेल करके बता भी दिया कि मैंने उनका मैटर चुराया है याने कि "एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी"!
मैं बात कर रहा हूँ 'श्री सुरेश चिपलूनकर' जी के लेख "साइट पर विज्ञापन/खबरें देखिये, पैसा कमाईये…" की जिसे कि कुछ फेरबदल करके मैंने अपने ब्लोग "इंटरनेट भारत" में "कमाई करें साइट पर विज्ञापन/खबरें देखकर" नाम से पोस्ट कर दिया।
पर मैं चोर नहीं कलाकार हूँ। मैं अपनी इस चोरी को चोरी न कह कर कलाकारी का नाम दूँगा क्योंकि चोरी करना चौंसठ कलाओं में से एक है - "चौर्यकला"। चाणक्य की राजनीति में भी चौर्यकला को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। संस्कृत के प्रसिद्ध नाट्यों में चौर्यकला को यथोचित स्थान दिया गया है। महाकवि 'विशाखदत्त' रचित संस्कृत नाट्य "मुद्राराक्षस" में राक्षस की मुद्रा अर्थात् अंगूठी को चाणक्य का एक शिष्य चोरी कर के ही लाता है। 'शूद्रक' रचित संस्कृत नाट्यकाव्य "मृच्छकटिकम" के आधार पर अभिनेता शशिकपूर जी ने फिल्म "उत्सव" बनाया था जिसमें "चौर्यकला" को महत्व देने के लिये एक चोर की भी भूमिका थी। 'स्व. श्री हबीब तनवीर' जी का नाटक "चरणदास चोर" का नायक "चौर्यकला" का उत्कृष्ट प्रदर्शन करता है!
इंटरनेट के वर्तमान युग में तो चौर्यकला सबसे महत्वपूर्ण कला हो गई हैं। कुछ भी लिखना है, खासकर अंग्रेजी में, तो गूगल सर्च कीजिये। चार-पाँच लेखो से अलग-अलग पैराग्राफ को कॉपी करके पेस्ट कर दीजिये और हो गया आपका लेख तैयार। याने कि "हींग लगे न फिटकिरी और रंग आये चोखा"! आप चाहें तो किसी एक लेख को ही कॉपी पेस्ट कर सकते हैं किन्तु ऐसी स्थिति में उसे रीराइट कर लेना बेहतर होता है।
हमारे पाठकों में से शायद ही कोई ऐसा हो जिसने अपने जीवन में कभी कोई चीज चुराई न हो। मतलब कि "हम सब चोर हैं" और यह तो आप जानते ही हैं कि "चोर चोर मौसेरे भाई" होते हैं। मैं मान कर चल रहा हूँ कि आप सब मेरे मौसेरे भाई हैं, इसीलिये मैंने इस पोस्ट को लिखा है।
चलते-चलते
हाँ या ना में जवाब दो।
"क्या तुमने चोरी करना छोड़ दिया?"
"गुनाहगारों पे जो देखी रहमत-ए-खुदा,
ReplyDeleteबेगुनाहों ने भी कहा कि हम भी गुनाहगार है"
आज एक पिरियड "चौर्यकला" पे बढिया रहा।
नही तो इसकी क्लास खुले आम नही लगती।
वाह क्या बात है-अवधिया जी
हाँ बोल सकते है ना ना. :)
ReplyDeleteना
ReplyDeleteभईया,
ReplyDeleteतभी ता हम कहें की इ "चौर्यकला" में हम इतना निपुण कैसे हो गए हैं...अब तो पक्की बात है हम आपकी बहन है.....
हम तो कई बार पूरा का पूरा कहानी छाप दिए हैं फर्क सिर्फ इनता है की नाम और फोटो उन्ही का रहा है..... ख़ाली ब्लॉग हमारा रहा है...."चौर्यकला" की जानकारी महत्वपूर्ण है....इसको पढ़ कर मन में अब कोई ग्लानी नहीं है...पता तो चला की हम भी किसी कला में पारंगत है...हाँ नै तो..!!
ना, आपसे इस बात में भी सहमत कि चोरी करना चौंसठ कलाओं में से एक परन्तु हमने चाणक्य पर उपलब्ध किताब पढी है उसमें इन कलाओं की सूची नहीं थी, वरना हम देख लेते कौन सी कला हम अभी नहीं सीख सके, शायद हटा दिया गया होगा जैसे वेश्यालय हटा दिया गया है,
ReplyDeleteचलते-चलते बता देते किस नंगे ने आपको चोर कहा, हमारी नज़र में तो आपको समझने वाले इधर बहुत कम हैं
हाँ ना!!
ReplyDeleteबी एस पाबला
चौर्यकला में तो हम शुरू से उस्ताद रहे हैं। हम बता दें कि अगर कोई लेख कहीं भी किसी भी विषय में छपा हो हम उस लेख का विषय लेकर तत्काल दूसरा लेख और कोई कविता है तो उस कविता का जवाब लिखने का काम बरसों से करते रहे हैं। मजाल है कि कोई पहचान जाए कि हमने उसके लेख से लेख बनाया है। इसी तरह से शाम के अखबारों से खबर लेकर बनाने का काम बरसों से किया है। खबरों से तत्थों को लेकर खबर को अपने शब्दों में लिख दिया जाए तो कोई दावा नहीं कर सकता है कि खबर उसकी है। लेकिन आप अगर खबर को पूरी की पूरी जस का तस लिख दें तो कोई भी कह सकता है कि यह तो उसकी खबर है।
ReplyDeleteचोर तब तक चोर नहीं होता जब तक वह थाने के दर्शन न कर ले... उसके बाद तो वह कुछ भी हो सकता है.... महा शरीफ़ या फ़िर महा बदमाश ;)
ReplyDeleteशायद किसी का दिल न चुरा सका मैं कभी ..
ReplyDeleteजी कर रहा है आपका अवधिया नाम चुरा लूं...
ReplyDeleteजय हिंद...
कला में पारंगत होने पर बधाई शुभकामनाऐं.. ताजमहल बचाना पडेगा अब शायद.
ReplyDelete२०० रुपये खर्च कर के hollywood से चोरी की हुई स्टोरी और संवाद वाली हिंदी फिल्म से अच्ही, सुरेश जी के ब्लॉग है |
ReplyDeleteकम से कम आपको थोड़ी म्हणत करने के लिए तो प्रेरित करते है | वैसे चोरी पे आपना ब्लॉग भी आचा है |
२०० रुपये खर्च कर के hollywood से चोरी की हुई स्टोरी और संवाद वाली हिंदी फिल्म से अच्ही, सुरेश जी के ब्लॉग है |
ReplyDeleteकम से कम आपको थोड़ी म्हणत करने के लिए तो प्रेरित करते है | वैसे चोरी पे आपना ब्लॉग भी आचा है |
हाँ :)
ReplyDeleteचलो कुछ तो सीखा. वैसे चोरी तो सभी कर रहें हैं ,बस ज़रा तरीक़े अलग हैं ?
ReplyDeleteअवधिया जी...आज तो आपने सबको चक्कर में उलझा दिया...हमारा जवाब भी हाँ ही समझिए :)
ReplyDeleteमौसेरे भाई को राम-राम :)
ReplyDeleteमुझे राजकपूर पर फिल्माया यह गाना याद आ रहा है
ReplyDelete" मै चोर हूँ काम है चोरी दुनिया में हूँ बदनाम..दिल को चुराता आया हूँ मैं यही मेरा काम .. आना तू गवाही देने ओ चन्दा..... "
बाकी गाने आगे आने वाले टिप्पणीकार लिखेंगे .. आपके इस काम पर
Copy & pest
ReplyDeleteललित शर्मा said...
"गुनाहगारों पे जो देखी रहमत-ए-खुदा,
बेगुनाहों ने भी कहा कि हम भी गुनाहगार है"
आज एक पिरियड "चौर्यकला" पे बढिया रहा।
नही तो इसकी क्लास खुले आम नही लगती।
वाह क्या बात है-अवधिया जी
गुरु ऊपर से पहली टिप्पणी हम भी चुरा लाए
अब ठीक है गुरु
अजी कई बार हम् टिपण्णियो की चोरी भी तो करते है, जेसे तीन चार टिपण्णियां को बीच बीच मै जोडा ओर बन गई टिपण्णी, ऎसा तभी जब लिखने की आलस हो, लेकिन कोई पकड कर दिखाये तो माने,
ReplyDeleteअरे भैया, चोरी कैसी... सुरेश जी ने खुदै इजाज़्त दी है... हम तो अपने आप को चोर नहीं समझे जी और न उन्हें सूचित करने की ज़हमत ही की :)
ReplyDeleteवाह क्या से क्या मामला बना दिया आपने,
ReplyDeleteचोरी करना भी एक कला बना दिया आपने,
बहुत बढ़िया ....
मैं तो कहता हूँ चौर्यकला पर क्यों न एक क्लास ही ले लिया जाय :)
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