मैं नहीं कह रहा कि हिन्दी में अच्छा कन्टेन्ट नहीं है बल्कि "गूगल को शिकायत: हिन्दी में अच्छा कन्टेन्ट नहीं है" बता रही है इस बात को।
जब दिन ब दिन हिन्दी ब्लोग की संख्या बढ़ते जा रही है तो क्यों नहीं आ पा रहे हैं इन्टरनेट पर हिन्दी में अच्छे कंटेंट?
इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिये हमें सबसे पहले तो यह जानना होगा कि अच्छा कंटेंट क्या होता है?
अच्छा कंटेंट वह होता है जिसे कि पाठक पढ़ना चाहता है।
तो क्या पढ़ना चाहता है पाठक?
पाठक ऐसे पोस्ट पढ़ना चाहता है जिससे कि उसे कुछ नई जानकारी मिले, उसका ज्ञान बढ़े। कुछ नयापन मिले उसे। घिसी पिटी बातें नहीं चाहिये उसे। वह ऐसे पोस्ट पढ़ना चाहता है जिसे पढ़कर उसे लगे कि उसके पढ़ने से उसके समय का सदुपयोग हुआ है, कुछ काम की चीज मिली है उसे। जिस बात को वह पहले से ही टी.व्ही. या प्रिंट मीडिया से पहले ही जान चुका है उसी बात को किसी पोस्ट में पढ़ने के लिये भला क्यों अपना समय खराब करेगा वह? विवादित पोस्ट भी नहीं चाहिये उसे, किसी भी प्रकार के विवाद से भला क्या लेना देना है उसे? पोस्ट पढ़कर जानकारी चाहता है वह।
गूगल जैसी कंपनियाँ भी चाहती हैं कि इंटरनेट में हिन्दी में अच्छे कंटेंट आयें। अब गूगल बाबा भी भिड़ गये हैं इंटरनेट पर अच्छे हिन्दी कंटेंट लाने के लिये। यही कारण है कि अब Google और LiveHindustan।com ने मिलकर आयोजित किया है 'है बातों में दम?' प्रतियोगिता! और अच्छे लेखों के लिये अनेक पुरस्कार भी रखे गये हैं। इस प्रतियोगिता में वे ही लेख शामिल हो पायेंगे जो जानकारीयुक्त होंगे, जिसे पढ़ने के लिये पाठकों की भीड़ इकट्ठी होगी।
गूगल और अन्य कंपनियाँ क्यों चाहती हैं इंटरनेट पर हिन्दी में अच्छ कंटेंट?
क्योंकि ये कंपनियाँ संसार के अन्य देशों की तरह भारत में भी अपने व्यवसाय का विस्तार करना चाहती हैं। उनके व्यापार चलते हैं पाठकों की भीड़ से और पाठकों की भीड़ इकट्ठा करते हैं अच्छे कंटेंट।
हमें यह स्मरण रखना होगा कि गूगल और अन्य कंपनियों के इस प्रयास से यदि हिन्दी व्यावसायिक हो जाती है तो इन कंपनियों के व्यवसाय बढ़ने के साथ ही साथ हम ब्लोगरों की आमदनी के अवसर भी अवश्य ही बढ़ेंगे।
चलते-चलते
एक सिंधी व्यापारी सुबह दुकान जाता था तो रात को ही वापस घर लौटता था। एक बार किसी अति आवश्यक कार्य से बीच में ही उसे घर आना पड़ा तो उसने अपनी पत्नी को पड़ोसी के साथ संदिग्धावस्था में देख लिया। क्रोध में आकर उसने रिवाल्व्हर निकाल लिया किन्तु इसी बीच पड़ोसी भाग कर अपने घर पहुँच गया। व्यापारी भी उसके पीछे पीछे उसके घर में घुस गया।
कुछ देर बाद व्यापारी वापस अपने घर आया तो डरी हुई उसकी पत्नी ने पूछा, "मार डाला क्या उसे?"
"नहीं, अपना रिवाल्व्हर बेच आया उसके पास भारी मुनाफा लेकर!"
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यदि यह बता दोगे कि मेरी थैली में क्या है तो मैं पुरस्कार के रूप में थैले के अंडों में से दो अंडे दूँगा और यदि बता दोगे कि थैली में कितने अंडे हैं तो मैं थैली के दसों अंडे पुरस्कार के रूप में दे दूँगा।
"नहीं, अपना रिवाल्व्हर बेच आया उसके पास भारी मुनाफा लेकर!"
ReplyDeleteहा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हमर अवधिया जी ग्रेट।
बड़ा मुश्किल है ये जान पाना कि आख़िर पाठक चाहता क्या है. अलबत्ता हर तरह के पाठक के लिए उसकी पसंद की ढेरों जानकारी इंटरनेट पर है तो सही पर दिक़्कत ये है कि अभी किसी ने इस दिशा में समुचित प्रयास नहीं किया है कि उसे सर्च इंजन से आगे भी सोचना चाहिए
ReplyDeleteबहुत अच्छा आलेख। चलते-चलते बहुत ही मज़ेदार।
ReplyDeleteकाजल कुमार जी सहमत, विज्ञान पर अब सलीम साहब बहुत कुछ देंगे, ब्लागवाणी पर 13 चटकों से पता चलता है कि उधर उनका स्वागत किया जा रहा है, आज आपने इतनी अच्छी बात रखी लेकिन चलते-चलते आज भी अच्छा होते हुए पसंद न आया, उससे बात हंसी में उड जाती है,
ReplyDeleteआप भी शायद अभी तक हंस रहे हैं, इसी लिए चटका देना भूल गए, खेर 1 भी 2 भी मुबारक हो,
achaa laga
ReplyDeletebahut achha laga aapka mat
chalte chalte ke liye..ha ha ha ha
इन पाठों की निरंतर आवश्यकता है. भारी मुनाफे के लालच से परे.
ReplyDeleteपढ़ने वाले आएंगे तो लिखने वाले भी आएंगे.
ReplyDelete"पढ़ने वाले आएंगे तो लिखने वाले भी आएंगे."
ReplyDeleteSanjay jee se poorn sahmat !
ये भी ज़रूरी नही की अच्छी पोस्ट पर ही भीड़ नज़र आती है।
ReplyDeleteवैसे भीड़ की ज़रूरत भी कहाँ है।
अवधिया जी,
ReplyDeleteइंसान को नतीजे की परवाह किए बिना जो भी काम करना चाहिए, दिल से करना चाहिए, डूब कर करना चाहिए, दिल से कही बातें कभी बेकार नहीं जाती...
रही बात रिवाल्वर की तो ये तो साफ कर देते कि आखिर वो खरीदी कितने में गई थी...
जय हिंद...
wah wah थैली में मुर्गा-मुर्गी की दस संतान हैं जो पुरस्कार के रूप में भेजने वाले हैं अवधिया जी
ReplyDeleteजानकारीपूर्ण आलेख.
ReplyDeleteक्या पता थेली में क्या और कितना है. लगता है अंडे जीतना बड़ा मुश्किल है आज!! :)
जरूरत बस इतनी है कि क्वांटिटी की बजाय क्वालिटी की ओर ध्यान दिया जाए......
ReplyDeleteबाकी आपके चलते चलते ने सिद्ध कर दिया कि सिंधी आदमी वाकई पैदाईशी बिजनेसमेन होता हैं :)
.... मजेदार, वाह-वाह !!!!!
ReplyDeleteपाठक तो नहीं ही हैं। कण्टेण्ट भी बढ़िया नहीं है हिन्दी में।
ReplyDeleteनयी पीढ़ी मैं हिंदी के प्रति लगाव नहीं के बराबर है ... तो नए लोग हिंदी पढने आ नहीं पाते ....
ReplyDeleteचलते चलते मजेदार रही