जी.के. अवधिया का ब्लॉग
सही संकल्प है..उठाये रहिये. यूँ तो साईकिल भी सस्ती कहाँ रही, मगर फिर भी चल जायेगा. :)
हा हा हा. बढ़िया कविता जोड़ी है
सरजी अपन को तो साइकिल भी चलानी नहीं आती.मेरा क्या होगा?बू हू हू हू
सही संकल्प है..उठाये रहिये. यूँ तो साईकिल भी सस्ती कहाँ रही, मगर फिर भी चल जायेगा. :)
ReplyDeleteहा हा हा. बढ़िया कविता जोड़ी है
ReplyDeleteसरजी अपन को तो साइकिल भी चलानी नहीं आती.
ReplyDeleteमेरा क्या होगा?
बू हू हू हू