"चिट्ठाकारी तो अभी शौकिया ही रहेगी"
उपरोक्त वाक्यांश श्री दिनेशराय द्विवेदी जी के पोस्ट 'चिट्ठाकारों के लिए सबसे जरुरी क्या है?' में श्री नीरज रोहिल्ला द्वारा की गई टिप्पणी का अंश है। यह वाक्यांश एक बहुत बड़े सत्य को उद्घाटित करता है। वास्तव में हिन्दी चिट्ठाकारी 'शौकिया' है और अभी बहुत दिनों तक 'शौकिया' ही रहेगी क्योंकि हिन्दी चिट्ठाकार केवल अपने लिये (या अपने जैसे चिट्ठाकारों के) लिये लिखता है न कि पाठकों के लिये। और इसीलिये हिन्दी चिट्ठों के पाठक भी आम लोग नहीं बल्कि सिर्फ हिन्दी चिट्ठाकार ही होते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि वकील का मुवक्किल वकील ही नहीं होता, डॉक्टर का मरीज डॉक्टर ही नहीं होता किन्तु हिन्दी चिट्ठाकार का पाठक हिन्दी चिट्ठाकार ही होता है।
ऐसे बहुत कम वकील मिलेंगे जो केवल शौक के लिये वकालत करते हैं, ऐसे बहुत कम डॉक्टर मिलेंगे जो केवल शौक के लिये डॉक्टरी करते हैं पर ऐसे बहुत से चिट्ठाकार मिलेंगे जो केवल शौक के लिये चिट्ठाकारी करते हैं। 'वकालत' एक प्रोफेशन है, 'डॉक्टरी' एक प्रोफेशन है, 'अंग्रेजी और अन्य भाषा में चिट्ठाकारी' भी एक प्रोफेशन है क्योंकि इनसे अनेकों लोगों की आजीविका चलती है किन्तु हिन्दी चिट्ठाकार की आजीविका 'हिन्दी चिट्ठाकारी' से नहीं चलती इसलिये 'हिन्दी चिट्ठाकारी' प्रोफेशन नहीं है। हिन्दी चिट्ठाकार 'चिट्ठाकारी' को अपने आय का साधन नहीं समझता। भले ही वह यह समझता है कि चिट्ठाकारी से कुछ कमाई भी हो जाये तो अच्छा है किन्तु वह चिट्ठाकारी को केवल कमाई का साधन ही नहीं समझता, क्योंकि चिट्ठाकारी उसका शौक है प्रोफेशन नहीं। हिन्दी चिट्ठाकार की यह सोच आनन-फानन में तुरन्त बदल जाने वाली नहीं है इसलिये अभी हिन्दी चिट्ठाकार को प्रोफेशनल बनने में बहुत समय लगेगा।
आप का कहना सही है। पर एक सच्चा प्रोफेशनल होने का कमाई से अधिक संबन्ध व्यक्तित्व और उस के उत्पादन से है, कमाई केवल उस का प्रतिफल। हम तो फिर "कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचिन" को मानने वाले हैं।
ReplyDeleteचिट्ठाकारी भी एक कर्म है, जिसे हमें उसी तरह नहीं करना चाहिए जैसे हम पूजा, इबादत और प्रार्थना करते हैं?
और कमाई हो न हो हमें व्यक्तित्व के रूप में उस का प्रतिफल तो मिलेगा। चिट्ठाकारों को प्रोफेशनल होने में भले ही अभी अरसा लगे, लेकिन उस ओर कदम तो बढ़ाना ही चाहिए।
अवधियाजी,
ReplyDeleteआपने एक महत्वपूर्ण बात उठायी है, इंटरनेट पर हिन्दी ब्लॉग पढने वालों की संख्या बढ़ रही है लेकिन अभी भी संख्या कम ही है, इसी से लेखक ही पाठक हैं |
दिनेश जी की प्रोफेशनल होने वाली बात अपनी जगह सही है लेकिन इसमे मेरे जैसे लोगों के लिए बड़ी समस्याएं हैं | मैं अभी विद्यार्थी हूँ, घर से दूर रहता हूँ, रसोई से लेकर, सब्जी खरीदने के काम ख़ुद करने होते हैं | पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों से भी जुडा हुआ हूँ, मसलन संगीत, नियमित दौड़ना, इधर उधर का पढ़ना, राजनीति के बारे में ख़बर रखना जैसे मेरे अन्य शगल भी हैं जो समय मांगते हैं | सभी के पास केवल २४ घंटे ही होते हैं और उसी में प्राथमिकताएं बनानी पड़ती हैं | कल को पढ़ाई का डंडा पड़े तो गाज चिट्ठाकारी पर भी गिर सकती है |
इसके अलावा चाहकर भी चिट्ठे पढ़ना कम नहीं हो रहा है, टिपण्णी भले ही हर जगह न लिख सकूं अधिकतर चिट्ठे पढता जरूर हूँ |
प्रोफेशनल होने के लिए उसके आर्थिक अथवा व्यावसायिक पहलू पर ध्यान देना ही जरूरी नहीं है | मेरे चिट्ठे पर कोई विज्ञापन नहीं हैं, शायद भविष्य में भी कभी न हों | मेरे लिए प्रोफेशनल होने के मायने हैं की ईमानदारी से लिखूं और अन्य लोगों को यथाचित सम्मान दूँ |
लेकिन, मैं अभी मेरी स्थिति में मैं अपने चिट्ठे को यदा कदा संवाद का माध्यम ही समझता हूँ |कई बार संगीत संबन्धी पोस्ट लिखते हुए रूककर सोचता हूँ, लेकिन फ़िर पोस्ट कर देता हूँ कि शायद किसी को पसंद आ ही जाए |
एक अन्य प्रश्न मुझे काफी अरसे से परेशान कर रहा है | शनिवार और रविवार को हिन्दी ब्लागजगत में पाठकों और लेखकों में कमी क्यों आ जाती है ? ज्ञानदत्त जी ने अपनी एक पोस्ट में विश्लेषण करके कहा था कि चिट्ठाकार रविवार को अपना शटर बंद रख सकते हैं |
मेरा प्रश्न है, कि क्या अधिकतर चिट्ठाकार अपने कार्यस्थल/कार्य के घंटों में से चिट्ठे पढ़ते और लिखते हैं ? अगर ऐसा है तो ये कितना सही है? क्या ये स्वयं में प्रोफेशनल व्यवहार है ? मैं स्वयं स्कूल के कम्प्यूटर से चिट्ठे लिखता पढता हूँ लेकिन मैं इस आदत को नियंत्रित कर रहा हूँ |
देखिये यही होता है कभी कभी, टिपण्णी लिखते लिखते पोस्ट बन जाती है :-)
अवधिया जी, आपकी बात कुछ हद तक सही है। पर आप अगर पुराने ब्लागरों जैसे जीतू , रवि रतलामी, अनूप शुक्ल की साइट स्टैटिक्स देखेंगे तो पाएँगे कि इनके चिट्ठों पर जितना ट्राफिक एग्रगेटर यानी चिट्ठाजगत की ओर से आता है उससे कहीं ज्यादा गूगल सर्च इंजनों के आम पाठकों से आता है । मेरा अपना अनुभव भी कुछ इसी तरह का है। अपनी चिट्ठाकारी के पहले साल में मुझे सर्च इंजन से ना के बराबर पाठक मिलते थे जबकि दूसरे साल में ये संख्या कुल पेजलोड्स का ६० प्रतिशत से भी ज्यादा हो गई।
ReplyDeleteमेरे चिट्ठे के १०० सब्सक्राइबर्स में मात्र पाँच छः ही ब्लॉगजगत से हैं .जो इस बात को दर्शाते हैं कि हर तरह के लेखन के लिए पाठक वर्ग निकल ही आता है। अंग्रेजी ब्लाग जगत की तुलना में ये संख्या अभी भी बेहद कम है।
व्यक्ति विषय वही चुन सकता है जिस पर उसकी पकड़ हो और जिससे वो इस तरह व्यक्त करे कि कुछ नया मिले। अगर हम अपनी विषयवस्तु को स्तरीय बनाए रखेंगे तो ये संख्या भविष्य में भी बढ़ेगी ऍसी उम्मीद है।
मेरे ख्याल से ऐसे अनुभव मेरे साथी चिट्ठाकारों के भी होंगे।
सहमत है । आपसे भी टिप्पणी करनेवालों से भी।
ReplyDeleteनीरज भाई की तरह मुझे भी लगता है कि मेरे ब्लाग पर कभी विज्ञापन नहीं होंगे। उसकी एक वजह तो यह भी होगी कि मुझे तकनीकी ज्ञान नहीं। दूसरी - इस ओर रुझान नहीं , तीसरी-जो आय बताई जा रही है वो इतनी कम है कि आकर्षण पैदा नहीं होता।
बहस का एक अच्छा और रोचक मुद्दा बनता जा रहा है.
ReplyDeleteऔर एक ऐसी बहस की शुरुवात लग रही है जिससे हिन्दी चिठ्ठाजगत और चिठ्ठाकार दोनों को फायदा होगा.
आप सबको बधाई.
ये कमेन्ट दिनेश जी की पोस्ट पट करना चाह रहा था पर शायद हो नहीं पा रहा. अगर वो देख सकें तो यंहा कर रहा हूँ. उपरोक्त पोस्ट से संबंधित ही है इसलिए कर देने का साहस किया.
ReplyDeleteनेक सलाह के लिए धन्यवाद.
आपका मार्ग दर्शन मिलता रहा तो मैं भी शायद प्रोफेशनल ब्लोगर बन पाऊं.
लेकिन आपके द्वारा बताये उपरोक्त मानदंडों की कसौटी पर ख़ुद को कसने के बाद तो मुझे स्वयं में एक शौकिया ब्लोगर ही ज्यादा नज़र आता है.
प्रयास करूँगा.
(तकरीबन १० बार प्रयास करने के बाद कमेन्ट करने में सफल हुआ हूँ. शायद आपके ब्लॉग की कोई समस्या है.
क्योंकि मेरे कंप्युटर पर कोई समस्या होती तो दूसरो को भी पढने और कमेन्ट करने में परेशानी होती. आपके ब्लॉग पर पहले भी इस समस्या से सामना करना पड़ा है.)