Friday, June 17, 2011

खरबपति मैं सदा रहूँ भले देश बिक जाय

रुपया...

जो सबको नाच नचाती है!

कोई बहुत बड़ा व्यापारी बनना चाहता है। किसलिए?

ढेर सारा रुपया कमाने के लिए!

कोई पढ़-लिख कर ऊँचा से ऊँचा ओहदा पाना चाहता है। किसलिए?

ढेर सारा रुपया कमाने के लिए!

जिसे देखो ढेर सारा रुपया पाने के लिए पागल है।

इस रुपये को यदि कुत्ते के सामने रख दें तो वह उसे सूँघेगा तक नहीं पर इसी रुपये के लिए आदमी कुछ भी करने के लिए तैयार है - चोरी, बेईमानी, रिश्वतखोरी, एक दूसरे का गला काटना, खून कर कर देना.....

रुपया कमाने में कोई बुराई नहीं है बल्कि कहा जाए तो जीवन निर्वाह के लिए रुपया कमाना जरूरी भी है क्योंकि रुपये के बिना न तो आदमी पेट की आग बुझा सकता है और न तन ढकने के लिए कपड़ा ही प्राप्त कर सकता है। पर पेट की आग बुझाने, तन ढकने आदि के लिए एक सीमा के भीतर रुपये की जरूरत होती है न कि ढेर सारे रुपये की -

साईं इतना दीजिए जामे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाय॥

तो ढेर सारा रुपया पाने का यह हवस क्यों? यह पागलपन क्यों?

ऐसी बात नहीं है कि बहुत सारा धन कमाने की हवस कोई नई बात हो, ऐसी हवस का होना हमेशा से ही चला आ रहा है। रावण ने विपुल सम्पदा प्राप्त करने के लिए देवता, गन्धर्व आदि को बलपूर्वक प्रताड़ित किया था, यहाँ तक कि अपने भाई कुबेर की सारी सम्पत्ति, जिसमें पुष्पक विमान भी सम्मिलित था, छीन ली थी। ऐसे ही दुर्योधन ने पाण्डवों पर अत्याचार किया था।

किन्तु प्राचीनकाल में ऐसे हवस वाले व्यक्तियों की संख्या नगण्य थी क्योंकि ऐसे लोगों को कुबुद्धि और दुराचारी की संज्ञा प्राप्त थी। अधिकतर लोग उतने ही धन से सन्तुष्ट रहा करते थे जितने में उनका गुजर-बसर हो जाए।

किन्तु ज्यों-ज्यों कालचक्र घूमता गया त्यों-त्यों ऐसे हवस वाले लोगों की संख्या अधिक से अधिक होती गई। यद्यपि हमारे देश में इस प्रकार के हवस वाले लोगों की संख्या नहीं के बराबर थी फिर भी इस हवस का सबसे बड़ा शिकार हमारा देश बना क्योंकि दूसरे देशों के लुटेरों ने इस देश में आकर हमें लूटना शुरू कर दिया। इस देश के चार करोड़ लोगों का निर्मम वध करके चंगेज खान ने सिर्फ सोना बटोरा और उसे घोड़ों पर लाद कर अपने देश पहुँचा दिया। गज़नी का महमूद ने सोने तथा हीरे जवाहिरात के लिए इस देश को पदाक्रान्त किया। पुर्तगालियों नें जी भर कर इस देश से सोना लूट कर अपने देश पहुँचा दिया। किन्तु इतनी लूट के बावजूद भी भारत की धन-सम्पदा अकूत ही रही, किंचित मात्र भी कमी नहीं आई भारत के वैभव में। विश्व का सर्वाधिक धनाड्य देश था भारत जिसे संसार सोने की चिड़िया के नाम से जानता था।

भारत को कंगाल बनाया तो अंग्रेजों ने। भारत की समस्त सम्पदा को लूट कर अपने देश में पहुँचा दिया और वे मालामाल बन गए। यदि भारत का धन इंग्लैंड में न गया होता तो उनके एक भी कल-कारखाने न खुल पाते। उनके यहाँ विकास की गंगा कभी भी न बह पाती।

किन्तु भारत की कंगाली कभी भी अधिक समय तक नहीं रही। वह भारत भारत ही क्या जो दरिद्र और कंगाल हो! यही कारण है कि आज भी भारत माता के पास कुछ भी कमी नहीं है। अपनी दरिद्रता से पूरी तरह से उबर गया हमारा देश। भारत को आज विश्व के सबसे बड़े बाजार के रूप में देखा जा रहा है। एक बार फिर से विश्व के सर्वाधिक धनाड्य देश बनने की क्षमता है हमारे देश में। किन्तु अब हमारे देश को उसके कपूत ही लूट रहे हैं सैकड़ों लाखों रुपयों को इन कपूत लुटेरों ने विदेशों में भेज कर रख दिया है।

किसी को इतना अधिक रुपये की जरूरत क्यों हो जाती है कि उसे वह अपने देश में ही न रख सके, विदेशों में जमा करने की नौबत आ जाए?

विदेशों में जमा रुपए से आखिर किसका भला हो सकता है? देश और समाज का भला तो हो ही नहीं सकता, हाँ उन रुपयों से विदेशी बैंक और विदेशी सरकार का अवश्य ही भला होता है।

यदि विदेशों में जमा ये रुपये वापस देश में आ जाएँ तो क्या नहीं हो सकता? शिक्षा के इतने सारे केन्द्र स्थापित हो जाएँ कि कोई भी निरक्षर न रहे, कृषि के क्षेत्र में ऐसी उन्नति हो जाए कि कभी किसी किसान को आत्महत्या करने की नौबत ही न आए, चिकित्सा इतनी सुलभ हो जाए कि कभी कोई व्यक्ति अस्वस्थ रहे, बेरोजगारी का तो नामोनिशान मिट जाए।

किन्तु कैसे वापस आएँगे ये रुपये? कौन वापस लाने देगा इन्हें? रावण के दुराचारों का अन्त तो श्री राम ने कर दिया, कौरवों को उनके अत्याचारों का दण्ड दिलवाने के लिए श्री कृष्ण आ गए, पर आज के भ्रष्टाचारियों के मुखौटे हटा कर उनके घिनौने रूप को कौन सामने लाएगा? यदि कोई सामने आए भी तो क्या सरकार उसे सामने आने देगी? आज की सरकार तो चुनी गई है भारत की जनता के द्वारा किन्तु उसे उसी जनता के हित की परवाह नहीं है, परवाह है तो उन चन्द स्वार्थी लोगों के स्वार्थ की जिनका तो सिद्धान्त है -

साईं मैं खाता रहूँ अन्य भूख मर जाँय।
खरबपति मैं सदा रहूँ भले देश बिक जाय॥