Saturday, January 5, 2008

नया साल है

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

नया साल है-
लेकिन कौन खुशहाल है?
जो पहले चलता था
वही अब भी बहाल है।

नये वर्ष में-
क्या स्वभाव बदल जायेगा?
जो बदरंग रंग जमा था अब तक,
वही रंग फिर रंग लायेगा।
दुनिया पशुता का कमाल है
नया साल है।

वर्ष आते और जाते रहते हैं,
साथ में खुशियाँ और गम लाते रहते हैं,
सच तो यह है कि-
काल का चक्र एक-सा चलता है,
वर्ष नहीं बदलते पर
भावना का संसार बदलता है
और संसार एक जंजाल है,
नया साल है।

कल्याण का संकल्प दृढ़ है तो,
अवश्य ही नया साल है,
अन्यथा न नूतन है न पुरातन है वरन्
सृष्टि में निरन्तर महाकाल है,
नया साल है।

(रचना तिथिः 01-01-1982)

Friday, January 4, 2008

ये का होथै छत्तीसगढ़ में

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित छत्तीसगढ़ी कविता)

कहाँ बिलागै गोबर खाद
अब आगै फास्फेट के जमाना,
खेती-बारी चौपट हो गै,
फुटहा करम के ताना-बाना।

गइया-बइला सबे नँदा गैं
कहाँ ले आही गोबर?
परबुधिया बन गैं छत्तिसगढ़िया
नेता हो गैं ढोबर।

फास्फेट डारेन तो भुइयाँ जर गै
अउ हो गै टकरहा
घेरी-बेरी फास्फेट मांग थै,
नइ रहि गै गोबरहा।

बिरथा जाथै नांगर-जाँगर,
मूड़ धर के रोथैं किसान,
उसर-पुसर के अकाल परथै
माई कोठी में नइ ऐ धान।

गाँव-गाँव में फूट मात गै,
पार्टी बन्दी के भइन सिकार,
मार-काट में जिव हर जाथै,
कोन्नो के नइ ऐ बेला-बिचार।

ऊपर ले सेठ महाजन मन
रकसा कस डेरुआथैं,
ढेकुना-किरनी जइसे वो मन
लहू-रकत ला चूसत जाथैं।

गिद्ध-मसानी आपस में लड़थैं
छत्तिसगढ़ के रहवइया मन,
अपने मन में अँइठत रहिथैं
छत्तिसगढ़िया कहवइया मन।

अपने भासा ला हीनत रहिथैं
पढ़े-लिखे कहवइया मन,
चमचा बन के पूछी हलाथै
आगू-आगू बढ़वइया मन।

वीर नरायन सिंग ला भूलिन
बिसराइन ठाकुर प्यारे लाल,
कतको नइ जानैं, कोन रहिन हैं
राजिम के शर्मा सुन्दर लाल।

(रचना तिथिः 07-02-1982)

Thursday, January 3, 2008

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित छत्तीसगढ़ी कविता)

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया
अड़बढ़िया खेती करथँयँ,
झटपटइया कूकुर मन के सेती
चुरमुरा के लांघन मरथँयँ।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया
हाँ तौ अब एक-जुट हो जावव;
लहू पिवइया कूकुर मन ला
छत्तीसगढ़ ले मार भगावव।

छत्तीसगढ़ी मां विद्या सीखव
जनम-भूमि ला मूड़ नवावव,
छत्तीसगढ़ महतारी ला भइया
हँस-हँस के बलिदान चढ़ावव।

वीर नारायन सिंह रहिन हँयँ,
मरहा-खुरहा के सुनवइया;
उनखर वीरता ला अपनावव,
तुम हौ बघवा अस गरजइया।

शर्मा सुन्दर लाल बनव तुम,
अत्याचारी ला थर्रा दव;
नवा जागरन के मंतर से,
दुश्मन ला बोइर-अस झर्रा दव।

सिंघ सरिख जिनगी भर गरजिन,
त्यागी ठाकुर प्यारेलाल;
पनप न पाइन ठाकुर साहब,
झेलिन पर के टेड़गा चाल।

खूबचन्द तो खूब रहिन हँयँ,
छत्तीसगढ़ भ्रातृ संघ के प्रान;
उर प्रेरक अँयँ ये नेता मन,
धरत रहव ये सब झन के ध्यान।

महानदी शिवरीनारायण,
राजिम सिरपुर भोरमदेव;
चाँपाझर खल्लारी बस्तर,
बमलाई के पूजा कर लेव।

छत्तीसगढ़ के सीमा ला जानव,
चार दिसा मां देवी चार;
हमर सक्ति के रच्छा करथँयँ,
माई के जस अपरम्पार।

रतनपूर मां महामाया हय अउ
डोंगरगढ़ मां बमलाई;
बस्तर मां दन्तेस्वरि देवी,
सम्बलपुर मां समलाई।

अइसन छत्तीसगढ़ के हम छत्तीसगढ़िया,
तेखरे सेती छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया

हिन्दी सार

छत्तीसगढ़िया सब से अच्छे होते हैं, खूब खेती करते हैं लेकिन झपटने वाले कुत्तों (नेताओं) के कारण भूखे ही मरते हैं।

तो अच्छे छत्तीसगढ़ियों एक जुट हो जाओ और खून पीने वाले कुत्तों को छत्तीसगढ़ से मार भगाओ।

छत्तीसगढ़ी में विद्या सीखो, जन्म-भूमि के प्रति सिर झुकाओ, हँस-हँस छत्तीसगढ़ माता को बलिदान चढ़ाओ।

निर्बल लोगों की बात सुनने वाले वीर नारायण सिंह थे, उनकी वीरता को अपना कर शेर जैसे दहाड़ो।

तुम सुन्दरलाल शर्मा बनो और अत्याचारियों को थर्रा दो; नव-जागरण के मन्त्र से दुश्मनों को बेर जैसे टपका दो।

त्यागी ठाकुर प्यारेलाल सिंह जिंदगी भर सिंह के समान गरजते रहे पर दूसरों की टेढ़ी चाल के कारण पनप न पाये।

छत्तीसगढ़ भ्रातृ संघ के प्राण खूबचन्द जी तो खूब थे। ये सब हमारे प्रेरक नेता रहे हैं, इन्हीं का ध्यान धरते रहो।

महानदी, शिवरीनारायण, राजिम, सिरपुर, भोरमदेव, चाँपाझर, खल्लारी, बस्तर जैसे पावन स्थलों और बमलाई माता की पूजा करो।

छत्तीसगढ़ की सीमा को जानो, यहाँ चारों दिशाओं में चार देवियाँ हैं जो हमारी शक्ति की रक्षा करते हैं, इन माताओं का यश अपरम्पार है।

रतनपुर में महामाया देवी हैं, डोंगरगढ़ में बमलाई देवी हैं, बस्तर में दन्तेश्वरी देवी हैं और सम्बलपुर में समलाई देवी हैं।

ऐसे महान छत्तीसगढ़ के हम छत्तीसगढ़िया हैं और इसीलिये हम सबसे अच्छे हैं।

(रचना तिथिः 29-11-1980)

Wednesday, January 2, 2008

नया साल तुम क्या लाये हो?

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

नया साल तुम क्या लाये हो?
विश्व-शान्ति है क्या तुममें?
या उर में विस्फोट छियाये हो?
नया साल तुम क्या लाये हो?

उल्लास नया है,
आभास नया है,
पर थोड़े दिन के ही खातिर,
फिर तो दिन और रात बनेंगे
बदमाशी में शातिर
वर्तमान में तुम भाये हो,
नया साल तुम क्या लाये हो?

असुर न देव बनेंगे,
जो जो हैं वे वही रहेंगे,
शोषण कभी न पोषण बनेगा
रक्त पियेगा बर्बर मानव
जो चलता था वही चलेगा।
फिर क्यों जग को भरमाये हो?
नया साल तुम क्या लाये हो?

पिछला वर्ष गया है,
आया समय नया है।
क्या भीषण आघातों से
मानवता का किला ढहेगा?
बोलो, तुम क्यों सकुचाये हो?
नया साल तुम क्या लाये हो?

(रचना तिथिः 01-01-1981)