Tuesday, February 14, 2012

वैलेन्टाइन सभा

कल्लू काटा और लल्लू लाटा हमारे मुहल्ले के मुहल्ला विकास समिति के सबसे अधिक सक्रिय सदस्य हैं, बल्कि वास्तव में कहा जाए तो वे दोनों ही मुहल्ला विकास समिति के सर्वेसर्वा हैं। दोनों ही चाहते हैं कि मुहल्ले में कुछ न कुछ आधुनिक कार्यक्रम हों। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने मुहल्ले में वैलेन्टाइन सभा का आयोजन किया।

वैलेन्टाइन सभा में मुहल्ले के गणमान्य जन एकत्रित हो गए। कल्लू काटा ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा, "प्रिय मुहल्लावासियों! हमारे मुहल्ले में हर साल जन्माष्टमी, गणेशोत्सव, दुर्गोत्सव जैसे कार्यक्रम होते हैं। किन्तु आपको मालूम होना चाहिए कि सदियों से चले आ रहे ये कार्यक्रम अब किसी काम के नहीं रह गए हैं। ये सारे कार्यक्रम पोंगा-पंथियों के हैं और आज के जमाने में अब इनकी कुछ भी व्हैल्यु नहीं रह गई है। आज जरूरत है नए और आधुनिक कार्यक्रमों की। मुहल्ला विकास समिति ने मुहल्ले में इस वर्ष बड़े धूम-धाम से वैलेन्टाइन डे कार्यक्रम मनाने का निश्चय किया है और इस सन्दर्भ में आप लोगों की राय जानने के लिए इस वैलेन्टाइन सभा का आयोजन किया गया है।"

धरणीधर जी, जो कि मुहल्ले के बुजुर्ग और भारतीय सभ्यता के पक्षपाती थे, ने कहा, "आपने जन्माष्टमी, दुर्गोत्सव आदि को पोंगापंथी कार्यक्रम कैसे कह दिया? हमें लगता है कि आप वैलेन्टाइन डे मना कर मुहल्ले में मलेच्छ संस्कृति का प्रचार करना चाहते हैं।"

कल्लू काटा ने जवाब दिया, "देखिए धरणीधर जी, आप हमारे बुजुर्ग हैं इसलिए मैं आपका पूरा-पूरा सम्मान करता हूँ। पर यह सभा नौजवानों की है, आपको हमने यहाँ बुलाया भी नहीं है। अच्छा यही होगा कि आप चुपचाप  यहाँ से निकल लें।"

धरणीधर कुछ और बोल पाते इसके पहले ही लल्लू लाटा ने उन्हें सभा से जबरदस्ती बाहर कर दिया।

कल्लू काटा ने कहना जारी रखा, "मित्रों, मैंने जो कुछ भी कहा, उसका आशय यह नहीं है कि जन्माष्टमी, दुर्गोत्सव आदि मनाने में कुछ बुराई है। मैं तो यह कहना चाहता हूँ कि उनमें अब कुछ चार्म नहीं रह गया है। वैलेन्टाइन हमारे मुहल्ले के लिए भले नया हो पर हमारे देश भारत के लिए यह बहुत पुराना है। देखा जाए तो त्रेता युग में कैकसी के द्वारा विश्रवा ऋषि से प्रणय निवेदन करना वैलेन्टाइन ही था। और कैकसी ने विश्रवा से प्रणय निवेदन अपने पिता सुमाली के कहने से किया था याने कि उस समय के पैरेन्ट्स भी बेहद जागरूक थे। शूर्पणखा ने लक्ष्मण को अपना वैलेन्टाइन बनाया था, यह बात और है कि लक्ष्मण को वह वैलेन्टाइन के रूप में पसन्द नहीं आई। आज हम अपने वैलेन्टाइन को मोबाइल करके बुलाते हैं, कुन्ती के जमाने में मोबाइल नहीं था, मोबाइल की जगह मन्त्र था। कुन्ती ने क्या किया? अपने वैलेन्टाइन सूर्य को मन्त्र के द्वारा बुला लिया। वैलेन्टाइन में हम लोग प्रपोज करते हैं ना? तो दुष्यन्त ने भी तो अपने वैलेन्टाइन शकुन्तला को प्रपोज ही तो किया था। अर्जुन और सुभद्रा एक दूसरे के वैलेन्टाइन ही तो थे। सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु की वैलेन्टाइन थी उत्तरा। अभिमन्यु अपनी वैलेन्टाइन उत्तरा को अवश्य प्राप्त करे यही सोचकर तो उसके चचेरे भाई घटोत्कच ने अभिमन्यु का साथ दिया था! पृथ्वीराज और संयोगिता एक-दूसरे के वैलेन्टाइन ही तो थे। भारत का पूरा इतिहास भरा पड़ा है वैलेन्टाइनों से। इसलिए आप लोग यह जरा भी न सोचें कि वैलेन्टाइन डे या वीक भारत में बाहर से आया है। यह तो प्राचीनकाल से ही भारत का रहा है और विदेशियों ने इसे हमसे ही लिया है। और इसीलिए मुहल्ला विकास समिति ने हर साल बड़े धूम-धाम से वैलेन्टाइन उत्सव मनाने का निश्चय किया है।"

कल्लू काटा के इस भाषण पर तालियों की गड़गड़ाहट से सभा गूँज उठी।

गंगू बाई, जो मुहल्ले के घरों में कामवाली का काम करती थी, ने कहा, "वैलेन्टाइन उत्सव मनाने का बना के आपने बहुत अच्छा किया साहेब! अइसा करने से अब मेरी परेशानी कम हो जाएगी। अब लोग मेरे से साल भर प्रपोज करने के बदले इस त्यौहार में ही करेंगे। अभी 'किस डे' के दिन मैं कितना परेशान थी, जिस घर में काम करने जाती थी वहीं का साहेब मेरे को किस करने को कहता था। मोहिनी बाई ने तो देख भी लिया के उसका घरवाला मेरे को किस किया है। वो  मेरे को नौकरी से निकाल रही थी तो मैंने कहा बाई माफ कर दे अपने साहब को। किसन भगवान भी तो गोपियों से रास रचाते थे पर रुकमनी, सतभामा ने उने माफ किया के नइ? तू साहब को माफ कर देगी तो साहब तेरे लिए हीरे का नेकलेस ला देने को भी तैयार हैं। और तू मेरे को नौकरी से निकालेगी तो सोच तेरे घर का काम कौन करेगा? मैं किसी दूसरे कामवाली बाई को तो आनेच् नइ दूँगी ये मोहल्ले में। तो साहेब, ये वैलेन्टाइन उत्सव हो जाने से मेरी किल्लत कम होयेंगी।"

फेकूलाल जी ने कहा, "वैलेन्टाइन उत्सव मनाना शुरू करना वास्तव में ही राष्ट्रहित का काम है, इससे हमारी प्राचीन परम्परा कायम रहेगी। इस उत्सव को तो हर शहर के हर गली-कूचे में मनाया जाना चाहिए। हमें यह भी कोशिश करना चाहिए कि हमारी सरकार इस उत्सव को विशेष महत्व दे और इस अवसर पर अवकाश या कम से कम अविवाहितों के लिए विशेष आकस्मिक अवकाश की घोषणा करे।"

इतने में ही किसी ने आकर बताया कि धरणीधर वैलेन्टाइ विरोधियों के दल को लेकर इसी तरफ आ रहे हैं और सभा से सारे लोग ऐसे गायब हो गए जैसे कि गधे के सिर से सींग।

Monday, February 13, 2012

ऐसा रहा हमारा वैलेन्टाइन

देखा कि श्रीमती जी का मूड अच्छा था सो हमने कह दिया, " हैप्पी हग डे डार्लिंग!"

श्रीमती जी ने नाक को आँचल से दबाकर, मुख-मुद्रा को वीभत्स बनाते हुए, कहा, "छिः छिः, क्या गन्दगी वाली बातें कहते हैं आप भी।"

हमने कहा, "अरे मैं हिन्दी के 'हग' के बारे में नहीं, अंग्रेजी के 'हग' के बारे में कह रहा हूँ। ग्रेजुएशन कैसे कर लिया था तुमने जब कि अंग्रेजी का 'हग' भी नहीं जानती?"

"क्या मैं कन्व्हेंट में पढ़ती थी जो ये सब जानूँ? आप अच्छी तरह से जानते हैं कि मेरा मीडियम हिन्दी था।"

"आज वैलेन्टाइन वीक का छठवाँ दिन है 'हग डे', इसीलिए मैंने 'हैप्पी हग डे डार्लिंग' कहकर तुम्हें विश किया था।"

"इतनी उम्र हो गई आपकी और आपको शर्म भी नहीं आती ऐसा कहते हुए? बच्चे सुन लें तो जाने क्या सोचें?"

"बच्चे अब बच्चे नहीं रह गए हैं, गृहस्थी वाले हो गए हैं, वो सब समझते हैं बल्कि खुद भी बहुओं को यही कह रहे होंगे।"

"वो कुछ भी करें, वो नये जमाने के हैं। पर आपको अपने जमाने के साथ चलना चाहिए। 'सींग कटा कर बछड़ों में शामिल होना' भला कोई अच्छी बात है?"

"कुछ भी कहो, पर मुझे तो लगता है कि मेरे और तुम्हारे साथ तो वही मिसल हो गई कि 'बन्दर क्या जाने अरदक का स्वाद' या कहें कि 'अन्धा क्या जाने बसन्त बहार'!"

श्रीमती जी ने तत्काल तुनक कर जवाब दिया, "देखिये जी, न तो आप बन्दर हैं और न मैं बन्दरिया। हम दोनों अन्धे भी नहीं हैं। अगर आप समझते हैं कि लच्छेदार भाषा में मुझसे बात करके आप मुझ पर रौब गाँठ लेंगे, तो जान लीजिए कि आप गलत समझ रहे हैं।"

'खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे' के अन्दाज में हमने कहा, "अरे भई, मैं तो यह कह रहा था हमारे जमाने में वैलेन्टाइन वीक होती ही नहीं थी और हम उसका मजा उठा ही नहीं पाए।"

"अच्छा, अगर उस जमाने में वैलेन्टाइन वीक होता तो क्या करते आप?" श्रीमती जी ने हम पर तरस खाने के अन्दाज में कहा।

"तो मैं 7 फरवरी याने कि 'रोज डे' के दिन तुम्हें गुलाब के बहुत सारे खूबसूरत फूल उपहार में देता।"

"येल्लो, थर्ड क्लास में फिल्म देखने के लिए तो आपके पास चालीस पैसे तो होते नहीं थे उन दिनों। अपनी छोटी बहन तक से पैसे माँग लेते थे टिकट के लिए। मैं ही चुपके से आपकी बहन को पैसे दे दिया करती थी जिसे वो आपको देती थी। फिर मेरे लिए ढेर सारे गुलाब लाने के लिए कहाँ से पैसे आते आपके पास? और क्या आप समझते हैं कि आप मुझे गुलाब का फूल देते तो मैं खुश हो जाती? जबकि आप जानते हैं कि मेरे घर के बगीचे में गुलाब के फूलों की कोई कमी नहीं थी, हर प्रकार के गुलाब खिलते थे वहाँ पर।"

"अरे भई, 'रोज डे' के दिन प्रेमिका को गुलाब के फूल देना रिवाज है।"

"मतलब ये कि जिसके पास ढेर सारे गुलाब हों उसे भी उपहार में गुलाब ही दो। ये तो वैसा ही हुआ कि भरपेट खाना खाये आदमी को और खाने को दो।"

"तुम नहीं समझोगी इस रिवाज को।"

"हाँ मैं कैसे समझूँगी? मैं तो बेवकूफ हूँ। आप सीधे-सीधे मुझे बेवकूफ कह रहे हैं। जबकि अकल खुद आपमें नहीं है, अगर होती तो आप मुझे गुलाब देने के बदले गोलगप्पे खिलाते।"

मन ही मन हमने सोचा कि कह तो ये ठीक ही रही है, अगर हम में अकल होता तो इससे शादी ही क्यों करते? फिर प्रत्यक्ष कहा, "तुम तो जुबान पकड़ लेती हो, मैंनें तुम्हें बेवकूफ नहीं कहा, मेरी क्या शामत आई है जो तुम्हें बेवकूफ कहूँ? क्या इतना भी मैं नहीं जानता कि जिस तरह से काने को काना नहीं कहना चाहिए उसी तरह से बेवकूफ को भी बेवकूफ नहीं कहना चाहिए। फिर भी अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि मैंने कहा है तो माफ कर दो। हाँ फिर 8 फरवरी याने कि प्रपोज डे के दिन मैं तुम्हें प्रपोज करता।"

"हुँह, खाक प्रपोज करते। किसी लड़की से बात तक करने में तो नानी मरती थी आपकी।"

"अरे भई कर ही लेता कैसे भी करके प्रपोज। फिर चॉकलेट डे के दिन मैं तुम्हें चॉकलेट लाकर देता।"

"आप जानते हैं ना कि चॉकलेट मुझे जरा भी पसन्द नहीं है। हाँ चॉकलेट की जगह अगर रसमलाई होता तो शायद मैं खुश हो जाती।"

"पर चॉकलेट डे के दिन चॉकलेट ही दिया जाता है।"

"अगर आप मुझे चॉकलेट देते मैं आपके सामने ही उसे फेंक देती।"

"और फिर किस डे के दिन मैं तुम्हें किस करता।"

"इतनी हिम्मत थी आपमें? और कैसे भी हिम्मत करके शादी से पहले आप मुझे किस करने की कोशिश करते तो किस-विस तो मिलता नहीं उल्टे मेरे हाथ के दो-चार झापड़ जरूर मिल गए होते।"

"तुम वैलेन्टाइन के लायक हो ही नहीं।"

"तो मैंने कब कहा कि मैं हूँ। बड़े आए हैं वैलेन्टाइन वाले। अपनी संस्कृति-सभ्यता भूल कर ऊल-जलूल रिवाज अपनाने वाले। भलाई इसी में है कि आप अपनी खाल में ही रहिये। और अब मेरा टाइम खोटा करने के बजाय जाइये, सब्जी लेकर आइये। और खबरदार जो फिर कभी वैलेन्टाइन-फैलेन्टाइन का नाम लिया मेरे सामने।"

इसके बाद भला हम क्या कर सकते थे? चुपचाप उठकर चले गए सब्जी लेने।