Tuesday, August 1, 2017

अंग्रेजी के कैपिटल्स का प्रयोग


यह तो आप सभी जानते हैं कि अंग्रेजी में अक्षरों को दो प्रकार से लिखा जाता है; कैपिटल और स्माल। पर क्या आप जानते हैं कि अंग्रेजी के कैपिटल लेटर का प्रयोग कहाँ-कहाँ पर होता है?

तो आइये जानें कि अंग्रेजी के कैपिटल लेटर का प्रयोग कहाँ-कहाँ पर होता है।

अंग्रेजी के कैपिटल लेटर का प्रयोग

  • प्रत्येक वाक्य का पहला अक्षर (The first letter of every sentence.)

  • पुस्तकों तथा व्यक्तियो के टाइटिल के पहले अक्षर (The title of a book or person; as, My First Book, Ramayan, Mahabharat, His Excellency, Maharaja, Rai Bhahadur etc.)

व्यक्तिवाचक संज्ञा का पहला अक्षर (Proper nouns; as, William Shakespeare, Kalidas, Washington, London, Avanti, Varanasi etc.)

  • व्यक्तिवाचक संज्ञा से बनाये गए प्रायः विशेषणों का पहला अक्षर (Most adjectives derived from Proper nouns; as Indian, English, Pakistani etc.)


  • (The first word of a quotation; as, you told, In my opinion Ramayan, written by Maharshi Valmiki is the greatest epic.)


  • (The personal pronoun I is always written in Capitals.)


  • (The names of the Deity and the Persons that refer to Him; as, God, the Almighty, Lord Rama, Goddes Durga, it was His will etc.)


  • (Every line of poetry.)


  • (Single letters forming abbreviations; as, M.A., B.Sc., Ph.D.)


Tuesday, July 25, 2017

गिरिधर की कुण्डलियाँ


सुप्रसिद्ध कवि गिरिधर ने अनेक कुण्डलियाँ लिखी हैं।

प्रस्तुत है गिरिधर कवि रचित गिरिधर की कुण्डलियाँ।

बिना विचारे जो करै

बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछिताय।
काम बिगारै आपनो, जग में होत हंसाय॥
जग में होत हंसाय, चित्त चित्त में चैन न पावै।
खान पान सन्मान, राग रंग मनहिं न भावै॥
कह 'गिरिधर कविराय, दु:ख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय मांहि, कियो जो बिना बिचारे॥

गुनके गाहक सहस नर

गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबे सुहावन।
दोऊ को इक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुनके॥

साँईं सब संसार में

साँईं सब संसार में, मतलब को व्यवहार।
जब लग पैसा गांठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संगही संग डोलैं।
पैसा रहा न पास, यार मुख से नहिं बोलैं॥
कह 'गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति यार बिरला कोई साँईं॥

बीती ताहि बिसारि दे

बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ॥
ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हंसे न कोइ, चित्त मैं खता न पावै॥
कह 'गिरिधर कविराय यहै करु मन परतीती।
आगे को सुख समुझि, होइ बीती सो बीती॥

साँईं अवसर के परे

साँईं अवसर के परे, को न सहै दु:ख द्वंद।
जाय बिकाने डोम घर, वै राजा हरिचंद॥
वै राजा हरिचंद, करैं मरघट रखवारी।
धरे तपस्वी वेष, फिरै अर्जुन बलधारी॥
कह 'गिरिधर कविराय, तपै वह भीम रसोई।
को न करै घटि काम, परे अवसर के साई॥

साँईं अपने चित्त की

साँईं अपने चित्त की भूलि न कहिये कोइ।
तब लगि मन में राखिये जब लगि कारज होइ॥
जब लगि कारज होइ भूलि कबहु नहिं कहिये।
दुरजन हँसै न कोय आप सियरे ह्वै रहिये।
कह 'गिरिधर' कविराय बात चतुरन के र्ताईं।
करतूती कहि देत, आप कहिये नहिं साँईं॥

साईं ये न विरुद्धिए

साईं ये न विरुद्धिए गुरु पंडित कवि यार।
बेटा बनिता पौरिया यज्ञ करावनहार॥
यज्ञ करावनहार राजमंत्री जो होई।
विप्र पड़ोसी वैद आपकी जो तपै रसोई॥
कह 'गिरिधर' कविराय जुगन ते यह चलि आई।
इन तेरह सों तरह दिये बनि आवे साईं॥

झूठा मीठे वचन कहि

झूठा मीठे वचन कहि, ॠण उधार ले जाय।
लेत परम सुख उपजै, लैके दियो न जाय॥
लैके दियो न जाय, ऊँच अरु नीच बतावै।
ॠण उधार की रीति, मांगते मारन धावै॥
कह गिरिधर कविराय, जानी रह मन में रूठा।
बहुत दिना हो जाय, कहै तेरो कागज झूठा॥

कमरी थोरे दाम की

कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह 'गिरिधर कविराय', मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥

राजा के दरबार में

राजा के दरबार में, जैसे समया पाय।
साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥
जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिये।
हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिये॥
कह 'गिरिधर कविराय', समय सों कीजै काजा।
अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥

सोना लादन पिय गए

सोना लादन पिय गए, सूना करि गए देस।
सोना मिले न पिय मिले, रूपा ह्वै गए केस॥
रूपा ह्वै गए केस, रोर रंग रूप गंवावा।
सेजन को बिसराम, पिया बिन कबहुं न पावा॥
कह 'गिरिधर कविराय लोन बिन सबै अलोना।
बहुरि पिया घर आव, कहा करिहौ लै सोना॥

पानी बाढो नाव में

पानी बाढो नाव में, घर में बाढो दाम।
दोनों हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
परमारथ के काज, सीस आगै धरि दीजै॥
कह 'गिरिधर कविराय, बडेन की याही बानी।
चलिये चाल सुचाल, राखिये अपनो पानी॥

जाको धन धरती हरी

जाको धन धरती हरी ताहि न लीजै संग।
ओ संग राखै ही बनै तो करि राखु अपंग॥
तो करि राखु अपंग भीलि परतीति न कीजै।
सौ सौगन्धें खाय चित्त में एक न दीजै॥
कह गिरिधर कविराय कबहुँ विश्वास न वाको।
रिपु समान परिहरिय हरी धन धरती जाको॥

Saturday, July 15, 2017

आयो सखि सावन.....

दामिनी दमक, सुरचाप की चमक, स्याम
घटा की घमक अति घोर घनघोर तै।
कोकिला, कलापी कल कूजत हैं जित-तित
सीतल है हीतल, समीर झकझोर तै॥
सेनापति आवन कह्यों हैं मनभावन, सु
लाग्यो तरसावन विरह-जुर जोर तै।
आयो सखि सावन, मदन सरसावन
लग्यो है बरसावन सलिल चहुँ ओर तै॥

- सेनापति

Thursday, July 13, 2017

प्रसिद्ध रोमांचक रचनाएँ

एक रोमांचक रचना (Adventure Book) मानव मन को हिलोर कर रख देती है। यही कारण है कि प्रायः लोग रोमांचक रचनाओं (Adventure Books) के दीवाने रहते हैं। प्रस्तुत है विश्व प्रसिद्ध रोमांचक रचनाओं (Famous Adventure Books) से संबंधित जानकारी।

लुई स्टीवेंसन (Louis Stevenson) रचित ट्रेजर आइलैंड (Treasure Island)

रोमांचक उपन्यासों में यह सबसे अधिक जाना जाने वाला उपन्यास है। यह लुई स्टीवेंसन की सर्वश्रेष्ठ कृति है। समुद्री डाकुओं और गड़े सोने की खोज पर लिखी गई यह कथा प्रति पल पाठक के मन में रोमांच पैदा करता है।
   

जोहान डेविड विस (Johann David Wyss) रचित स्विस फैमिली राबिंसन (Swiss Family Robinson)

यह विनाशकारी जहाज़ की तबाही के परिणामस्वरूप एक रेगिस्तानी द्वीप में फँसे परिवार की कहानी है जिसे अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए केवल प्राकृतिक रूप से उपलब्ध संसाधनों पर गुजारा करना पड़ता है। अत्यंत रोचक पुस्तक है।
   

टीपः उपरोक्त लिंक अंग्रेजी पुस्तक की है।

रुडयार्ड किपलिंग (Rudyard Kipling) रचित कैप्टन करेजियस (Captains Courageous) 

यह एक धनाड्य उद्योगपति के बेटे हार्वे चीने के कारनामों की कहानी है जिसे यात्रा के दौरान पानी में फेंक दिया गया था और मछुआरों द्वारा बचा लिया गया था। अंततः उस बच्चे का संघर्ष उस एक सच्चा नाविक बना देता है।
   

एच. राइडर हैगर्ड (H. Rider Haggard) रचित शी (She)

कॉलेज के एक प्रोफेसर और उनके युवा शिष्य एक प्राचीन पेटी में मिले दस्तावेज के निर्देशों का पालन करते हुए अफ्रीका के जंगलों में पहुँच जाते हैं, जहाँ उनकी भेंट उस क्षेत्र में शासन करने वाली एक अमर महिला शासिका से होती है। हर पल रोमांच पैदा करने वाली कहानी है।
   

टीपः उपरोक्त लिंक अंग्रेजी पुस्तक की है।

एच. राइडर हैगर्ड (H. Rider Haggard) रचित अयेशाः द रिटर्न आफ शी (Ayesha: The Return of She)

यह उपरोक्त कहानी का ही दूसरा भाग हैं जिसकी पृष्ठभूमि हिमालय का एक गुप्त दुर्गम स्थल है। यह कहानी भी अत्यंत रोचक है।
   

टीपः उपरोक्त लिंक अंग्रेजी पुस्तक की है।

एच. राइडर हैगर्ड (H. Rider Haggard) रचित किंग सालोमंस माइंस (King Solomon’s Mines)

एलन क्वाटारेमेन को एक खोज और बचाव दल के साथ अफ़्रीका के अज्ञात क्षेत्र में जाता है और प्राचीन सभ्यता की खोज करता है। अफवाहों में प्रचलित राजा सुलैमान की खानों के स्थान की खोज के विषय में यह एक अत्यंत रोमांचक कथा है।
   

टीपः उपरोक्त लिंक अंग्रेजी पुस्तक की है।

आर्थर कॉनन डायल (Arthur Conan Doyle) रचित द लोस्ट वर्ल्ड (The Lost World)

आर्थर कॉनन डायल की यह कालातीत रचना है। इस क्लासिक ने अनगिनत युवावों की कल्पना को प्रेरित किया है। कथा का नायक, प्रोफेसर चैलेंजर, दक्षिण अमेरिका में एक अनदेखे पठार के दौरे पर जाता है जो डायनासोर और अन्य रहस्यमय प्राणियों से भरी हुई है।
   

टीपः उपरोक्त लिंक अंग्रेजी पुस्तक की है।

माइकल क्रिचटन (Michael Crichton) रचित जुरासिक पार्क (Jurassic Park)

जॉन हैमोंड का "जैविक संरक्षण" जुरासिक पार्क के रूप में जाना जाता है, जहां डायनासोर, एक बार फिर धरती पर घूमते हैं। अत्यंत रोमांचक कहानी जिस पर फिल्म भी बन चुकी है।
 

Monday, July 10, 2017

भारत में कृषि से संबंधित सामान्य ज्ञान


रबी की फसलों की बुआई अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर में की जाती है।

गेहूँ, जौ, चना मटर, सरसों व आलू आदि रबी की फसलों के अंतर्गत आती हैं।

खरीफ की फसलों की बुआई जून-जुलाई में की जाती है।

धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, तिल, मूँगफली, अरहर आदि खरीफ की फसलों के अंतर्गत आती हैं।

जायद की फसलों को मार्च से जुलाई के मध्य बोया जाता है।

तरबूज, खरबूज, ककड़ी तथा पशुचारा जायद की फसलों के अंतर्गत आती हैं।

कपास, गन्ना, तिलहन, चाय, जूट तथा तंबाकू व्यापारिक या नकदी फसलें हैं।

भारत में सर्वाधिक मात्रा में चावल का उत्पादन होता है।

भारत में नाइट्रोजन उर्वरकों का सबसे अधिक उपयोग होता है।

विश्व में भारत मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक देश है।

रबड़ के उत्पादन में भारत का विश्व में चौथा स्थान है।

रबड़ की प्रति हेक्टेयर उत्पादक में भारत का विश्व में पहला स्थान है।

हरित क्रांति से गेहूँ के उत्पादन में सबसे अधिक वृद्धि हुई।

अंगूर की प्रति हेक्टेयर उपज में भारत का विश्व में पहला स्थान है।

ट्रैक्टर्स के उपयोग की दृष्टि से भारत का विश्व में चौथा स्थान है।

भारत काली चाय का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है।

भारत का विश्व दुग्ध उत्पादन में पहला स्थान है।

अंडों के उत्पादन में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है।

भारत विश्व का सबसे बड़ा चमड़ा उत्पादक देश है।

‘ऑपरेशन फ्लड’ कार्यक्रम सन् 1970 में शुरू किया गया था।

‘ऑपरेशन फ्लड’ कार्यक्रम का संबंध दूध के उत्पादन में बढ़ोतरी से है।

‘ऑपरेशन फ्लड’ कार्यक्रम के सूत्रधार डॉ. वर्गीज कूरियन थे।

विश्व में समुद्री मत्स्य उत्पादन में भारत का छठा स्थान है।

विश्व में अंतर्देशीय मत्स्य उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है।

मोती देने वाली मछलियाँ मन्नार की खाड़ी में पकड़ी जाती हैं।

गुजरात में सबसे अधिक समुद्री मछलियाँ पकड़ी जाती हैं।

ताजे पानी की सर्वाधिक मछलियाँ पश्चिम बंगाल में पकड़ी जाती है।

मछली उत्पादन में पश्चिम बंगाल पहले स्थान पर है।

Saturday, July 1, 2017

अंतरराष्ट्रीय हिंदी ब्लॉग दिवस - टिप्पण्यानन्द जी लिखेंगे पावस पर पोस्ट!

“नमस्कार लिख्खाड़ानन्द जी!”

“नमस्काऽऽर! आइये आइये टिप्पण्यानन्द जी!”

“सुना है लिख्खाड़ानन्द जी, १ जुलाई, याने कि आज अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस मनाया जा रहा है।”

“जी हाँ टिप्पण्यानन्द जी, ताऊ रामपुरिया जी/ ने इसका आगाज किया है, और खुशदीप सहगल जी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस के लिए टैग का चुनाव करने हेतु खून पसीना एक कर रहे हैं।”

“तो अब तो हिन्दी ब्लॉगरों की बल्ले बल्ले हो गई”

“होगी क्यों नहीं भइ! आप टिपियाने वालों को भी तो टिपयाने बहुत चांस मिलेता। तो टिप्पण्यानन्द जी, हिन्दी ब्लॉग दिवस के इस शुभ अवसर पर आप क्या करेंगे? मेरा तो सुझाव है कि आप अब टिपियाने के साथ जोरदार पोस्ट लिखना भी शुरू कर दें। कहिये कैसा रहेगा?”

“सुझाव तो आपका बहुत बढ़िया है लिख्खाड़ानन्द जी! पर हम लिखें क्या? हमें तो कुछ सूझता ही नहीं। क्या लिखें और किस पर लिखें?”

“अरे बरसात का मौसम शुरू हो है टिप्पण्यानन्द जी। आप वर्षा ऋतु पर ही पोस्ट लिख डालिए।”

“चलिए, मैं सुझाता हूँ आपको। पर पोस्ट आपको ही लिखना होगा।”

“ऐसा है, मैं जरूर लिखूँगा जी।”

“तो अपने पोस्ट में पहले आप यह बताएँ कि हमारा देश भारत ही विश्व में ऐसा देश है जहाँ तीन ऋतुएँ (ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु और शीत ऋतु) होती हैं, अन्य देशों में केवल ग्रीष्म ऋतु और शीत ऋतु होती है, वर्षा ऋतु नहीं होती। उन देशों में वर्षा या तो ग्रीष्म ऋतु के दौरान होती है या फिर शीत ऋतु के दौरान। इसक मतलब यह हुआ कि वर्षा ऋतु का आनन्द हम भारतवासी है ले सकते हैं, विश्व के अन्य देशों के लोग इसका आनन्द नहीं उठा सकते।”

“वाह! वाह!! लिख्खाड़ानन्द जी। यह तो हमें पता ही नहीं था कि वर्षा ऋतु सिर्फ भारत में होती है।”

“अब तो पता चल गया ना! तो फिर अपने पोस्ट के माध्यम से यह जानकारी और लोगों को भी दीजिए।

ग्रीष्म ऋतु के अंतिम दिनों में लोग जब भगवान भास्कर के प्रकोप से त्राहि-त्राहि करने लगते हैं तो वे सिर्फ यही चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी बारिश हो जाये और इस भीषण गर्मी से निजात मिले।”

“हाँ यह तो होता है।”

“किसान की आँखें आसमान को तकती रहती हैं कि कब बादल बरसे और कब वह अपनी खेती बाड़ी का काम शुरू करे।”

“जी हाँ, बरसात के बिना तो खेती हो ही नहीं सकती”

“अच्छा बताइये कि वर्षा ऋतु को हिन्दी में और क्या कहते हैं?”

“शायद पावस कहते हैँ।”

“शायद नहीं, पावस ही कहा जाता है वर्षा ऋतु को। आदिकवि वाल्मीकि से लेकर आज के आधुनिक कवि, सभी पावस के दीवाने रहे हैं। रामायण महाकाव्य में महर्षि वाल्मीकि ने राम के मुख से कहलाया है -

क्वचिद् वाष्पाभिसंरुद्धान वर्षागमसमुत्सुकान्।
कुटजान् पश्य सौमित्रे पुष्पितान् गिरिसानुषु।
माम शोकाभिभतस्य कासंदीपनान् स्थितान्॥
(सामायण - 4-28-14)

अर्थ - हे सौमित्र, देखो! इस पर्वत के शिखरों पर खिले हुए कुटज कैसी शोभा पाते हैं। कहीं पहली बार वर्षा होने पर भूमि से निकले हुए भाप व्याप्त हो रहे हैं, तो कहीं वर्षा के आगमन से अत्यंत उत्सुक दिखाई देते हैं। मैं तो प्रिया-विरह के शोक से पीड़ित हूँ और ये कुटज मेरी प्रेमाग्नि को उद्दीप्त कर रहे हैं।

वर्षा ऋतु के विषय में राम यह भी कहते हैं - 'हे लक्ष्मण! देखो इस वर्षा ऋतु में प्रकृति कितनी सुन्दर प्रतीत होती है। ये दीर्घाकार मेघ पर्वतों का रूप धारण किये आकाश में दौड़ रहे हैं। इस वर्षा ऋतु में ये मेघ अमृत की वर्षा करेंगे। उस अमृत से भूतलवासियों का कल्याण करने वाली नाना प्रकार की औषधियाँ, वनस्पति, अन्न आदि उत्पन्न होंगे। इधर इन बादलों को देखो, एक के ऊपर एक खड़े हुये ये ऐसे प्रतीत होते हैं मानो प्रकृति ने सूर्य तक पहुँचने के लिये इन कृष्ण-श्वेत सीढ़ियों का निर्माण किया है। शीतल, मंद, सुगन्धित समीर हृदय को किस प्रकार प्रफुल्लित करने का प्रयत्न कर रही हैं, किन्तु विरहीजनों के लिये यह अत्यधिक दुःखदायी भी है। उधर पर्वत पर से जो जलधारा बह रही है, उसे देख कर मुझे ऐसा आभास होता है कि सीता भी मेरे वियोग में इसी प्रकार अश्रुधारा बहा रही होगी। इन पर्वतों को देखो, इन्हें देखकर लगता है जैसे ब्रह्मचारी बैठे हों। ये काले-काले बादल इनकी मृगछालाएँ हों। नद-नाले इनके यज्ञोपववीत हों और बादलों की गम्भीर गर्जना वेदमंत्रों का पाठ हो। कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है कि ये बादल गरज नहीं रहे हैं अपितु बिजली के कोड़ों से प्रताड़ित हो कर पीड़ा से कराहते हुये आर्तनाद कर रहे हैं। काले बादलों में चमकती हुई बिजली ऐसी प्रतीत हो रही है मानो राक्षसराज रावण की गोद में मूर्छित पड़ी जानकी हो। हे लक्ष्मण! जब भी मैं वर्षा के दृश्यों को देख कर अपने मन को बहलाने की चेष्टा करता हूँ तभी मुझे सीता का स्मरण हो आता है। यह देखो, काले मेघों ने दसों दिशाओं को अपनी काली चादर से इस प्रकार आवृत कर लिया है जैसे मेरे हृदय की समस्त भावनाओं को जानकी के वियोग ने आच्छादित कर लिया है।

“इस वर्षा ऋतु में राजा लोग अपने शत्रु पर आक्रमण नहीं करते, गृहस्थ लोग घर से परदेस नहीं जाते। घर उनके लिये अत्यन्त प्रिय हो जाता है। राजहंस भीमानसरोवर की ओर चल पड़ते हैं। चकवे अपनी प्रिय चकवियों के साथ मिलने को आतुर हो जाते हैं और उनसे मिल कर अपूर्व प्राप्त करते हैं। किन्तु मैं एक ऐसा अभागा हूँ जिसकी चकवी रूपी सीता अपने चकवे से दूर है। मोर अपनी प्रियाओं के साथ नृत्य कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि बगुलों की पंक्तियों से शोभायमान, जल से भरे, श्यामवर्ण मेघ मानो किसी लम्बी यात्रा पर जा रहे हैं। वे पर्वतों के शिखरों पर विश्राम करते हुये चल रहे हैं। पृथ्वी पर नई-नई घास उग आई है और उस पर बिखरी हुई लाल-लाल बीरबहूटियाँ ऐसी प्रतीत होती हैं मानो कोई नवयौवना कामिनी हरे परिधान पर लाल बूटे वाली बेल लगाये लेटी हो। सारी पृथ्वी इस वर्षा के कारण हरीतिमामय हो रही हैं। सरिताएँ कलकल नाद करती हुईं बह रही हैं। वानर वृक्षों पर अठखेलियाँ कर रहे हैं। इस सुखद वातावरण में केवल विरहीजन अपनी प्रियाओं के वियोग में तड़प रहे हैं। उन्हें इस वर्षा की सुखद फुहार में भी शान्ति नहीं मिलती। देखो, ये पक्षी कैसे प्रसन्न होकर वर्षा की मंद-मंद फुहारों में स्नान कर रहे हैं। उधर वह पक्षी पत्तों में अटकी हुई वर्षा की बूँद को चाट रहा है। सूखी मिट्टी में सोये हुये मेंढक मेघों की गर्जना से जाग कर ऊपर आ गये हैं और टर्र-टर्र की गर्जना करते हुये बादलों की गर्जना से स्पर्द्धा करने लगे हैं। जल की वेगवती धाराओं से निर्मल पर्वत-शिखरों से पृथ्वी की ओर दौड़ती हुई सरिताओं की पंक्तियाँ इस प्रकार बिखर कर बह रही हैं जैसे किसी के धवल कण्ठ से मोतियों की माला टूट कर बिखर रही हो। लो, अब पक्षी घोंसलों में छिपने लगे हैं, कमल सकुचाने लगे हैं और मालती खिलने लगी है, इससे प्रतीत होता है कि अब शीघ्र ही पृथ्वी पर सन्ध्या की लालिमा बिखर जायेगी।'

गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में श्री राम के मुख से कहलाया है -

घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा॥

ऋतु वर्णन में पारंगत 'सेनापति' ने वर्षा ऋतु का वर्णन इस प्रकार से किया है -

दामिनी दमक, सुरचाप की चमक, स्याम
घटा की घमक अति घोर घनघोर तै।
कोकिला, कलापी कल कूजत हैं जित-तित
सीतल है हीतल, समीर झकझोर तै॥
सेनापति आवन कह्यों हैं मनभावन, सु
लाग्यो तरसावन विरह-जुर जोर तै।
आयो सखि सावन, मदन सरसावन
लग्यो है बरसावन सलिल चहुँ ओर तै॥”

“लिख्खाड़ानन्द जी! हमारे फिल्मी गीतकारों ने भी तो वर्षा ऋृतु और सावन पर अनेक सुन्दर गीत लिखे हैं, जैसे -

बरसात में हम से मिले तुम सजन तुम से मिले हम...

छाई बरखा बहार पड़े अँगना फुहार सैंया आ के गले लग जा...

गरजन बरसत सावन आयो रे...

पड़ गए झूले सावन रुत आई रे...

ओ सजना बरखा बहार आई रस की फुहार लाई...

रिमझिम के तराने ले के आई बरसात...

काली घटा छाए मेरा जिया तरसाये...

ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी बरसात की रात...

सावन का महीना पवन करे शोर...

मेघा छाये आधी रात बैरन बन गई निंदिया...

रिमझिम गिरे सावन...

काली घटाओं ने ठंडी हवाओं ने साजन को नटखट बना दिया...

बादल यूँ बरसता है डर कुछ ऐसा लगता है...”

“देखा! अब आपको भी सूझने लगा ना! तो फिर देर क्या है? जल्दी से लिख डालिये पावस पर पोस्ट”

“अच्छा, आपका हुकम सर आँखों पर, जा रहा हूं पोस्ट लिखने।”

“अरे चाय तो पीकर जाइये।”

“जी नहीं, मुझे पोस्ट लिखने की जल्दी है। नमस्कार!”

“नमस्कार”