(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
मैं विद्वान हूँ, ज्ञानवान हूँ,
तोता मुझसे डरता है;
डरना ही होगा उसको क्योंकि,
जितना मैं रटता हूँ, क्या वह रटता है?
भाषा-ज्ञान असीमित मेरा,
पर अंग्रेजी है वह भाषा;
'आफ्टन' 'शुल्ड' 'वुल्ड' कहता हूँ मैं,
इंग्लैंड जाने की है अभिलाषा।
गणित? गणित को तो चुटकी में ही-
मसल दिया करता हूँ;
माडर्न मैथ्स का कीड़ा मैं-
पागलपन अमल किया करता हूँ।
इतिहास! पढ़ने की क्या है जरूरत,
मैं स्वयं इतिहास बना करता हूँ;
अपने काले करतब स्वर्णाक्षर से,
दिन रात लिखा करता हूँ।
यदि मैं शिक्षक बन पाता तो-
मौज मजे के दिन होते;
राजनीति में उलझ जूझता,
और पढ़ाता सोते-सोते।
विद्वानों में विद्वान बड़ा मैं,
अधिवक्ता कहलाता हूँ;
काला कोट ज्ञान में उत्तम,
सुलझे को उलझाता हूँ।
मैं नेता विद्या में माहिर,
अंगूठे से लिख लेता हूँ;
शिक्षा मंत्री बन जाता हूँ और,
नाव देश की खेता हूँ।
पास परीक्षा मैंने की है,
पर इम्तिहान में कभी न बैठा;
पैसे के बल डिग्री ले ली,
और लोगों से डट कर ऐंठा।
विद्वान बड़ा मैं भी तो हूँ,
घण्टी नित्य बजाता टिन टिन;
बेकारी का मारा मैं तो,
रिक्शा खींच रहा हूँ प्रतिदिन।
(रचना तिथिः शनिवार 27-01-1980)
1 comment:
वाह!! आनन्द आ जाता है स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया जी की कविता पढ़्कर. पेश करने के लिये बहुत साधुवाद एवं आभार.
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