Thursday, December 6, 2007

या देवी सर्व भूतेषु

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

या देवी सर्व भूतेषु
'कैब्रे' रूपेण संस्थिता।
हे देवी, तुम 'कैब्रे' बन कर,
दिल दिल से मिल नाच रही हो;
जन-गण-मन की दुर्बलता को,
थिरक-थिरक कर माप रही हो।
महाकालिका ने ऐसे ही,
असुरों का संहार किया था;
पर देवी, तुम तो देवों को भी,
चुम्बक-सी ललकार रही हो।
नमस्तस्यै कैसे कहें?
और तुम्हारी ललकार को-
भावुक कविगण कैस सहें!

या देवी सर्व भूतेषु
'बेल बॉटम' रूपेण संस्थिता।
बेल बॉटम में सिमट सुन्दरी,
महापुरुष-सी लगती हो;
पुरषों से दूरी दूर किये,
नये ज्ञान में जगती हो।
बालक भी एकाकार हुये,
बेल बॉटम का ले आश्रय;
डरा न करते वे तुमसे अब,
रहा न तुमको भी उनका भय।
तुम कहो नमस्तस्मै,
वे कहें नमस्त्यै;
सब करतल ध्वनि कर चीखें
जय बेल बॉटम जय जय जय।

या देवी सर्व भूतेषु
'गाउन' रूपेण संस्थिता।
स्लीपिंग गाउन, वाकिंग गाउन,
देख देख हो जाते डाउन;
वीरों को खूब पछाड़ा है,
भारत में बहुत दहाड़ा है।
तरुणी युवती वृद्धा प्रौढा,
सभी पुजारिन गाउन के;
साड़ी फाड़ बनायें गाउन,
सदा सुलभ शुभ दर्शन उनके।
देसी घोड़ी परदेसी लगाम,
क्यों न करें हम उन्हें प्रणाम!
गति-यति-लय से चीखेंगे-
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

या देवी सर्व भूतेषु
'ब्लाउज' रूपेण संस्थिता।
आस्तीन हीन इठलाती हो,
चौड़ी गर्दन-मुसकाती हो;
फिर भी देवी कहलाती हो,
टुनटुन-सी वज्र गिराती हो।
पूरब-पश्चिम के भेद सभी,
चबा चबा कर खाती हो;
ऊँची एँड़ी के सैण्डिल में,
खटखट खटखट आती हो।
चारों ओर शोर मचता है,
हर स्वर हर दम यह रटता है;
या देवी सर्व भूतेषु
चण्डी रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

(रचना तिथिः 28-11-1980)

Saturday, December 1, 2007

राष्ट्रीय एकता

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

ब्रह्म एक पर बन अनेक शक्ति बाँटता,
सब में स्वयं ही विराजमान रहता है;
ऐसे ही, राष्ट्र एक पर अनेक राज्य बन,
जन-मानस में शक्ति बन सँवरता है;
शरीर एक में अनेक अंग, एक श्वास में-
अभिन्न होते, एक स्पन्दन लहराता है,
वैसे ही, भिन्नता में अदम्य अभिन्नता बन,
राष्ट्रीय एकता का हृदय धड़कता है।

मर्यादा पुरुषोत्तम राम और कृष्ण ने,
इसी देश में राष्ट्रीय चेतना भर दी थी;
पुरु ने राष्ट्रीय एकता का शंख फूँक कर,
भारतवर्ष की अलेक्षेन्द्र से रक्षा की थी;
सम्राट चन्द्रगुप्त ने एक किया भारत को,
प्रियदर्शी अशोक ने जग को दीक्षा दी थी;
रामतीर्थ और विवेकानन्द ने, आध्यात्मिक-
बल से विषम राष्ट्र वेदना हर ली थी।

गांधी-सुभाष बोस-जवाहर शास्त्री-इन्दिरा,
भगतसिंह और चन्द्रशेखर आजाद;
बाल-पाल-लाल स्वाधीनता के मतवालों ने,
सबल राष्ट्रीय एकता को किया आबाद;
अधिकार हमें क्या है जो स्वार्थ-सिद्धि के हित,
इस राष्ट्रीय एकता को कर दें बर्बाद,
हमें चाहिये कि जीवन में पल प्रति-पल,
करते रहें राष्ट्रीय एकता को ही याद।

जागृत हों, सत्यवाद से हृदय विभूषित,
अग्रगण्य हों स्वार्थवाद के सर्वनाश में;
मनु बन कर मानवता की रक्षा कर लें,
बन जावें कवच भावी विश्व-विनाश में;
नई सृष्टि नई दृष्टि ले कर बढ़ते जावें,
बँधने न दें विश्व को तुच्छ स्वार्थ पाश में;
राष्ट्रीय एकता का सम्बल, शान्ति दल बनें,
अड़े रहें निस्वार्थ विश्व की हर आश में।

न्यौछावर कर दें प्राणों को राष्ट्र सुरक्षा में,
किंचित् आँच न भारत पर आने पाये;
सर्वश्रेष्ठ बन जग में उभरे भारत,
जन जन के मन में तिरंगा लहराये;
विज्ञान ज्ञान संस्कृति भारत की, अविराम-
विश्व में शान्ति और आत्म बल बन जाये;
आध्यात्मिक बल से राष्ट्रीय एकता से हम,
उज्ज्वल नई शताब्दी में विश्व को ले जायें।

(रचना तिथिः 08-10-1985)